कृषि विज्ञान केन्द्र पन्ना के डॉ.. बी.एस. किरार, वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं प्रमुख, वैज्ञानिक डॉ. आर.के. जायसवाल एवं डॉ. आर.पी. सिहं द्वारा विगत दिवस ग्राम- श्यामगिरि (कल्दा पठार) के कृषको को मुनगा उत्पादन तकनीक पर प्रशिक्षण दिया गया साथ ही उन्हे मुनगा (किस्म पी.के.एम. 1) के पौधे भी वितरित किये गये।
प्रशिक्षण के दौरान कृषको को मुनगा के बारे में बताया गया कि इसके जड़, तना, पत्तियों एवं फलियो आदि भागो के औषधीय एवं पोषक महत्व है। इसका प्रयोग प्रायः बुखार, गठिया, अतिसार, आखो की बीमारियो, भूख, या हृदय रोगो तथा अन्य कई तरह की बिमारियों में लाभकारी होता है। इसके बीज से प्राप्त तेल का उपयोग घड़ियों तथा मशीनो आदि के लुब्रिकेशन में किया जाता है और इसकी खली का उपयोग खेतो में खाद के रूप में किया जाता है। इसके पत्तियों का उपयोग पशुओ के चारे के उपयोग में किया जाता हैं।
मुनगा में आयरन, कैल्षियम तथा विटामिन ए. एवं. सी. प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। प्रशिक्षण में कृषको को मुनगा उत्पादन तकनीक के अन्तर्गत भूमि का चुनाव, जलवायु, उन्नत किस्में- पी.के.एम.1 , के. एम. 1, रोहित, कोयम्बटूर 2 तथा रोपड़ तकनीक के अन्तर्गत गड्ढे का आकार 45 से. मी. लम्बा, 45 से. मी. चैड़ा, 45 से. मी. गहरा बनाये और पौधे से पौधे की दूरी 2.5 से 3 मी. रखने के बारे में बताया गया।
पुराने मुनगा के पौधे से एक वर्ष के तना को काटकर पहले से तैयार गड्ढो में लगा दे तथा तने से शीघ्र जड़ निकलने के लिये रूटेक्स-सी हारमोन्स का उपयोग करें। पौधा लगाने के तीन माह बाद प्रति गड्ढे 40-50 ग्राम नाइट्रोजन, 20-25 ग्राम फास्फोरस तथा 30 ग्राम पोटाश प्रति पौधा गुडाई उपरान्त मिलाकर सिंचाई कर देनी चाहिए। प्रशिक्षण के दौरान रबी फसलो के रोग एव कीट-व्याधियों के प्रबन्धन के बारे में भी विस्तार से जानकारी दी गयी।
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