
भारत में चावल के बाद गेहूं लोगों की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली प्रमुख फसल है. यही कारण है कि देशभर के किसान अपनी आय बढ़ाने और बेहतर उत्पादन के लिए गेहूं की आधुनिक और उन्नत किस्मों की खेती पर विशेष ध्यान देते हैं. आज बाजार में कई ऐसी अगेती (शरद ऋतु में बोई जाने वाली) और पछेती (रबी या बसंत ऋतु में बोई जाने वाली) गेहूं की किस्में उपलब्ध हैं, जो कम समय में अधिक पैदावार देने में सक्षम हैं. इन उन्नत किस्मों को अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल की गुणवत्ता बेहतर कर सकते हैं, बल्कि उत्पादन में भी काफी वृद्धि कर सकते हैं.
इसके साथ ही, इन किस्मों में बीमारियों और पर्यावरणीय बदलावों के प्रति सहनशीलता भी बेहतर होती है, जिससे फसल सुरक्षा मजबूत होती है. इसके अलावा, इन उन्नत किस्मों की खेती से किसान लागत को भी कम कर सकते हैं क्योंकि ये किस्में कम पानी और पोषक तत्वों की मांग करती हैं. ऐसे में आइए आज ऐसे ही गेहूं की टॉप 3 किस्मों को बारे में विस्तार से जानते हैं.
1.एच डी 3086 पूसा गौतमी
भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान (IARI) द्वारा विकसित गेहूं की उन्नत किस्म एचडी 3086, जिसे पूसा गौतमी भी कहा जाता है, किसानों के लिए अत्यंत लाभकारी साबित हो रही है. यह किस्म न केवल अधिक पैदावार देती हैं बल्कि पीले एवं भूरे रतुए जैसी बीमारियों के प्रति भी प्रतिरोधक क्षमता रखती है. इसकी औसत अवधि लगभग 145 दिन है और यह विशेष रूप से उत्तर पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों के लिए उपयुक्त मानी जाती हैं. बेहतर प्रबंधन और वैज्ञानिक तकनीकों के साथ किसान इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 55 से 60 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं. यह किस्म मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा, दिल्ली, राजस्थान कोटा और उदयपुर संभाग को छोड़कर, पश्चिमी उत्तर प्रदेश झांसी डिवीजन को छोड़कर, जम्मू-कश्मीर के कठुआ जिले, हिमाचल प्रदेश के ऊना व पांवटा क्षेत्र और उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में अधिक सफल मानी जाती है.
2.एच आई 8737 (पूसा अनमोल) डुरम
गेहूं की उन्नत किस्म एच आई 8737 (पूसा अनमोल) डुरम उच्च गुणवत्ता वाले सूजी उत्पादन के लिए जानी जाती है, जिसका उपयोग पास्ता, मैकरोनी, नूडल्स और बेकरी उत्पादों में किया जाता है. इसकी दानों में प्रोटीन की मात्रा अधिक होती हैं और ग्लूटेन की गुणवत्ता भी बेहतरीन मानी जाती है. वहीं पूसा अनमोल HI 8737 की औसत अवधि लगभग 125 दिन होती है. और यह मध्य भारत तथा उत्तर-पश्चिमी मैदानी क्षेत्रों मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, कोटा और राजस्थान के उदयपुर डिवीजन और उत्तरप्रदेश के झांसी डिवीजन खेती के लिए उपयुक्त स्थान है. यह किस्म पीले व भूरे रतुए (rust) जैसी प्रमुख बीमारियों के प्रति सहनशील है, जिससे किसानों को फसल सुरक्षा पर अतिरिक्त खर्च नहीं करना पड़ता. इसकी औसत उपज 45 से 50 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पाई गई है, जबकि अनुकूल परिस्थितियों में 78.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उत्पादन संभव है.
3.एचडी सीएसडब्ल्यू 18 (HD CSW 18)
एचडी सीएसडब्ल्यू 18 एक उन्नत गेहूं की किस्म है, जो किसानों के लिए उच्च पैदावार और बेहतर गुणवत्ता का विकल्प प्रदान करती है. यह किस्म मुख्य रूप से उत्तर पश्चिमी और उत्तर पूर्वी मैदानी क्षेत्रों में रबी मौसम के दौरान बोई जाती है. इसकी औसत अवधि लगभग 150 दिन होती है, जिससे यह समय पर पकने वाली किस्मों में गिनी जाती है. और इस किस्म खासियत इसकी अधिक उपज क्षमता और रोग प्रतिरोधक शक्ति है. यह किस्म पीले व भूरे रतुए तथा झुलसा जैसी बीमारियों के प्रति सहनशील हैं. इस वजह से किसानों को कम लागत पर बेहतर उत्पादन प्राप्त होता है. इसकी औसत उपज 62.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दर्ज की गई है, जबकि अनुकूल परिस्थितियों में यह 70.0 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से भी अधिक उत्पादन देने में सक्षम है.
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