भारत के इस गांव में 12000 फीट की उंचाई पर होती है खेती, मुनाफा कमा रहा गांव

क्यों न कहीं घूम कर आया जाए? घूमना सेहत के लिए काफी अच्छा है और शरीर के लिए भी! आप सोच रहे होंगे की हम आज खेती छोड़कर ये घूमने की बाते क्यों कर रहे हैं... चलिए वो भी बता देते हैं... अगर मन में कभी घूमने का ख्याल आता है तो हम अक्सर उंचाई वाले जगह पर घूमना ज्यादा पसंद करते हैं... हां हां हम जानते हैं आप भी यही कहना चाह रहे हैं की आपको भी उंचाई वाली जगहों पर घूमना काफी पसंद है...
लेकिन उंचाई वाली जगह पर घूमने के अलावा कभी आपने वहां हो रहे खेती के बारे में सोचा है! हमें पता है आपका जवाब ना ही होगा! कोई बात नहीं आपकी यह जानकारी को हम पूरा कर देते हैं, बस आखिरी में आप हमें धन्यवाद कह दीजिएगा. अब हमें धन्यवाद कहने के बारे में बाद में सोच लीजिएगा पहले ये खास बात जान लीजिए. आज आपको हम एक ऐसे गांव के बारे में बताएंगे जहां खेती लगभग 12000 मीटर की उंचाइ पर की जाती है. हम आपको बताएंगे लद्दाख के नांग गांव में हो रहे खेती के बारे में...
लद्दाख समुद्र तल से लगभग 10,000 फीट की उंचाई पर बसा हुआ है और वहां लोगों का जीवन भी मुश्किलों से भरा हुआ है... बता दें की समुद्र तल से उंचाई होने के कारण यहां पर पेड़ों की कमी है और इस वजह से यहां ज्यादातर जमीन खेती में प्रयोग के लायक नहीं या यूं कहे की बंजर है. लद्दाख के जगह में एक छोटा सा गांव है नांग, जो की समुद्र तल से 12,400 फीट की उंचाई पर स्थित है. इस गांव में ऑक्सीजन की काफी कमी है... ना ना! आप ज्यादा सोच रहे हैं उतनी है जीतनी की सांस ली जा सके.
लेह से 40 किमी की दूरी पर स्थित इस नांग गांव में 74 परिवार के 400 लोग अपनी पैतृक कृषि परंपरा को मानते हुए जीवनयापन करते हैं... और 300 एकड़ में फैले इस गांव में बस उस वक्त खेती की जाती है जब गर्मियों की वजह से ग्लैशियर का पानी उनके पास पहुंचता है.चेवांग नॉरफेल ने गांव के लिए मानव निर्मित ग्लेशियर तैयार किया था जिसके बाद गांव वालों के लिए इसकी जरूरत बढ़ गई है और उसके बाद कई संस्थानों ने भी ऐसे ग्लेशियर तैयार किए जो गांव वालों के लिए मददगार साबित हुआ.
बता दें कि नांग के किसान अप्रैल में अपनी फसलों की बोआई करते हैं और ठंड शुरू होने से पहले सितंबर-अक्टूबर तक इसकी कटाई कर लेते हैं और उंचाई पर सब्जियों को स्टोर करने के लिए डिफेंस इंस्टियूट ऑल हाइ एलटिट्यूड रिसर्च के वैज्ञानिकों ने. सेलर्श(Cellers) बनाए जो काफी मददगार है.
साथ ही इसके इस्तेमाल से लोग पनी उगाई गई सब्जियों को बाजार में बेच कर अच्छा मुनाफा भी कमा रहे हैं... बता दें कि इन सेलर्स को एक कमरे के आकार के रूप में बनाया जाता हैं, जो जमीन के नीचे छह फीट और दो फिट ऊपर हैं... ये लकड़ी, मिट्टी और घास से बने होते हैं और खास बात यह है कि ये पूरी तरह से नेचुरल है...
इसके प्रयोग से नांग के ग्रामीण अब चरम तापमान में भी आलू और कृषि उपज के नुकसान को रोकने में सक्षम हैं... साथ ही गाजर, मूली, सलिप, गोभी, और प्याज जैसे रूट फसलों को भी इन पर्यावरण-अनुकूल भूमिगत वॉल्ट्स में भी संग्रहीत किया जाता है...
हमें पता है अब आप क्या सोच रहे हैं...देखिए हमें धन्यवाद करने के लिए आपको ज्यादा परेशान होने की जरूरत नहीं... फोन, मैसेज कुछ भी कर लीजिए या कमेंट ही कर दीजिए....
जिम्मी
English Summary: This village of India is at an altitude of 12000 feet, farming, profit making village
कृषि पत्रकारिता के लिए अपना समर्थन दिखाएं..!!
प्रिय पाठक, हमसे जुड़ने के लिए आपका धन्यवाद। कृषि पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए आप जैसे पाठक हमारे लिए एक प्रेरणा हैं। हमें कृषि पत्रकारिता को और सशक्त बनाने और ग्रामीण भारत के हर कोने में किसानों और लोगों तक पहुंचने के लिए आपके समर्थन या सहयोग की आवश्यकता है। हमारे भविष्य के लिए आपका हर सहयोग मूल्यवान है।
आप हमें सहयोग जरूर करें (Contribute Now)
Share your comments