जहां एक तरफ हम विकास की गति में सवार होकर आगे बढ़ रहे हैं, तो वहीं दूसरी तरफ विकास पर्यावरण के लिए विनाश साबित हो रहा है. ऐसा हम इसलिए कह रहे हैं, क्योंकि विकास के लिए पेड़ों को काटा जा रहा है और हमारी देश की नदियां दूषित हो रही हैं.
फैक्ट्रियों से निकला कचरा सीधे नदियों में फैंका जा रहा है. यह हाल ज्यादातर हमारे शहरों का है. जहां पर नदियां नालों में तब्दिल हो चुकी हैं. अब इसके लिए सरकार एक नई रणनीति लेकर आई है. जिसके लिए नदियों को बचाने के लिए एमसीडी बायो-रेमेडिएशन का सहारा ले रही है. जिसकी द्वारा खास पौधे छोटे नालों से पहले ही केमिकल को सोख लेंगे.
दिल्ली में एमसीडी की रणनीति
नालों व नदियों की सफाई हमेशा से ही एक अहम मुद्दा रहा है. नदी-नालों को साफ रखने का एक ही तरीका है, यदि कूड़ा कचरा व कैमिकल पदार्थ पहले से ही अलग कर दिए जाएं. इसी कड़ी में दिल्ली एमसीडी व आईआईटी दिल्ली मिलकर नालों की सफाई को लिए बायो रेमेडिएशन तकनीक को अपना रही है. जिसके लिए राजधानी के पुष्प विहार, चिराग दिल्ली के नालों की सफाई शुरू कर दी गई है.
दिल्ली में नालों की संख्या
दिल्ली राजधानी होने के साथ हर क्षेत्र में आगे है. रोजगार की तलाश में लोग दिल्ली में ही बस जाते हैं. मगर जिस तेजी से दिल्ली की जनसंख्या में विस्तार देखने को मिल रहा है उसी तेजी से राजधानी में नालों की संख्या भी बढ़ते जा रही है. आंकड़ों में नजर डालें तो अभी दिल्ली के 12 जोन में कुल 645 नाले हैं. जिससे सीधे पानी यमुना व पड़ोसी राज्यों की नदियों में जाकर मिलता है. एमसीडी वर्तमान में नालों को साफ करने के लिए पूरे साल गाद निकालती है, जिसमें बहुत वक्त व खर्चा भी अधिक आता है. मगर अब दिल्ली के नालों को साफ करने के लिए बायो रेमेडिएशन तकनीक अपनाई जा रही है जिससे पर्यावरण को फायदा तो पहुंचेगा ही साथ ही लंबे वक्त तक कारगर भी साबित होगी.
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बायो रेमेडिएशन क्या है?
बायो रेमेडिएशन तकनीक में नाले के पानी को रोका जाता है. जिसके बाद बीच में कुछ ऐसे पौधों को रोपित किया जाता है जो नाले में मौजूद हानिकारक कैमिकल व विषैले कण को पहले ही सोख लेते हैं. जिससे पानी से कैमिकल खत्म हो जाता है साथ ही ऑक्सीजन की मात्रा भी बढ़ती है. जो कि यदि बाद में नदियों में मिल भी जाए तो नदियों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा.
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