भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने उत्तराखंड के देहरादून में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में वन क्षेत्र के रूप में नामित 79.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र है। यह देश का लगभग 19.32% है। वर्ष 1952 की वन नीति के मुताबिक देश में उपलब्ध कुल भूमि का एक-तिहाई हिस्सा वन क्षेत्र का होना चाहिए। ऐसे में साफ देखा जा सकता है कि अभी करीब 15 प्रतिशत का अंतर है जिसे भरा जाना है। वास्तव में 1966 में भारतीय वन सेवा की स्थापना के पीछे 33% वनक्षेत्र को प्राप्त करने लक्ष्य भी था। और अब समय आ गया है कि इस दिशा में ठोस उपाय सुनिश्चित जाएं।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय वन सेवा के पास सिर्फ देश में क्षेत्र की सेवा करने की ही जिम्मेदारी नहीं है, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण व वन आवरण को बढ़ाने एवं वन आधारित आजीविका को प्रोत्साहित करने के अलावा जलवायु परिवर्तन के कारणों को भी खत्म करने का दायित्व है। यह निश्चित तौर पर संतुष्टि की बात है कि ई-सर्विलांस व जीआईएस एप्लीकेशन जैसे तकनीकों व अधिकारियों के परिश्रम की बदौलत देश का वन आवरण ताजा रिपोर्ट्स के मुताबिक 1987 के 64.2 मिलियन हेक्टेयर से बढ़कर 79.4 मिलियन हेक्टेयर हो गया है। यह अपने आप में शानदार उपलब्धि है लेकिन अभी काफी कुछ हासिल किया जाना बाकी है। इस मौके पर कई गणमान्य मौजूद थे जिनमें उत्तराखंड के राज्यपाल डॉ. कृष्ण कांत पॉल, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री श्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत, पर्यावरण वन तथा जलवायु परिवर्तन राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) श्री अनिल माधव दवे शामिल हैं।
वन संरक्षण और आवरण को बढाने पर जोर होना चाहिए :राष्ट्रपति
भारत के राष्ट्रपति श्री प्रणब मुखर्जी ने उत्तराखंड के देहरादून में इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय वन अकादमी के वार्षिक दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि भारत में वन क्षेत्र के रूप में नामित 79.4 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र है। यह देश का लगभग 19.32% है। वर्ष 1952 की वन नीति के मुताबिक देश में उपलब्ध कुल भूमि का एक-तिहाई हिस्सा वन क्षेत्र का होना चाहिए। ऐसे में साफ देखा जा सकता है कि अभी करीब 15 प्रतिशत का अंतर है जिसे भरा जाना है। वास्तव में 1966 में भारतीय वन सेवा की स्थापना के पीछे 33% वनक्षेत्र को प्राप्त करने लक्ष्य भी था। और अब समय आ गया है कि इस दिशा में ठोस उपाय सुनिश्चित जाएं।
Share your comments