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आ गयी बैगन की नई किस्म “डॉक्टर बैगन”, हर सीजन 1.5 लाख का मुनाफा...

बैंगन का नाम सुनकर नाक मुंह सिकोड़ने की बजाय अब इसे अपने भोजन का अहम हिस्सा बनाएं क्योंकि कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी ऐसी किस्म विकसित की है जो न केवल बीमारियों से बचाएगी बल्कि बुढ़ापे को भी रोकेगी।

नई दिल्ली। बैंगन का नाम सुनकर नाक मुंह सिकोड़ने की बजाय अब इसे अपने भोजन का अहम हिस्सा बनाएं क्योंकि कृषि वैज्ञानिकों ने इसकी ऐसी किस्म विकसित की है जो न केवल बीमारियों से बचाएगी बल्कि बुढ़ापे को भी रोकेगी।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान पूसा ने बैंगन की एक नई किस्म पूसा हरा बैंगन-एक का विकास किया है जिसमें भारी मात्रा में क्यूप्रेक, फ्रेक और फिनोर जैसे पोषक तत्व हैं जो इसे एंटीआक्सीडेंट बनाते हैं। इसके चलते यह बीमारियों से बचाने और बुढ़ापा रोकने में मददगार है।

एंटीआक्सीडेंट वह तत्व है जो हमारे शरीर को विषैले पदार्थों से बचाता है और यह ऊर्जा प्रदान करने के साथ ही कई प्रकार की बीमारियों से सुरक्षा प्रदान करता है। पाचनक्रिया के दौरान शरीर भोजन से अपने लिए पोषक तत्व ले लेता है और उन तत्वों को अलग कर देता है जो नुकसानदेह होते हैं। एंटीआक्सीडेंट कैंसर, हृदय रोग, रक्तचाप, अल्जाइमर और दृष्टिहीनता से बचाता है।

विषैले पदार्थों के शरीर में इकट्ठा होने से कोशिकाओं के मरने का अनुपात बढ़ जाता है और बुढ़ापा तेजी से प्रभावी होने लगता है लेकिन एंटीआक्सीडेंट शरीर में होने से विषैले पदार्थ निकलते रहते हैं और अधिक संख्या में नई कोशिकाओं का निर्माण होता है जो बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर देता है। बैंगन की नई किस्म शरीर में एंटीआक्सीडेंट तत्व को बढ़ाने में सहायक हैं।

संस्थान के सब्जी अनुसंधान से जुड़े वैज्ञानिक तुषार कांति बेहरा ने बताया कि नई किस्म में पूर्व की किस्मों की तुलना में रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक है जिसके कारण इसमें कीटनाशकों का कम छिड़काव किया जाता है। इसकी पैदावार काफी अधिक है। इसकी प्रति हेक्टेयर 45 टन तक पैदावर ली जा सकती है। इसके एक फल का औसत वजन 220 ग्राम है। 

हरे रंग के अंडाकार गोल बैंगन की यह पहली प्रजाति है जिसकी खेती खरीफ मौसम में उत्तर भारत के मैदानी क्षेत्र में की जा सकती है। इसकी एक विशेषता यह भी है कि इसे गमले में लगाया जा सकता है। गोल हरे रंग के इसके फल पर हल्के बैंगनी रंग के धब्बे होते हैं और बाह्य दलपूंज कांटे रहित होते हैं ।

डॉ. बेहरा ने बताया कि बैंगन की नई किस्म रोपायी के 55 से 60 दिनों में फलने लगता है। खरीफ मौसम के दौरान बैंगन की इस किस्म की खेती से किसान प्रति हेक्टेयर एक से डेढ़ लाख रुपए तक कमा सकते हैं। इसमें बीमारियां कम लगती हैं जिसके कारण इसमें कीटनाशकों का कम इस्तेमाल किया जाता है।

कुछ लोगों को बैंगन से भले ही एलर्जी हो लेकिन बंगाली संस्कृति से प्रभावित खानपान का यह अभिन्न हिस्सा है। खाने में बैंगन भाजा नहीं हो तो वह अधूरा सा लगता है। इसलिए मेहमानों के आने पर बैंगन भाजा जरूर बनाया जाता है। बिहार और पूर्वी उत्तर प्रदेश में बैंगन के भर्ते का विशेष प्रचलन है। पंजाबी लोग भी बैंगन का भुना हुआ भर्ता विशेष रुप से तैयार करते हैं। बैंगन के गुदेदार होने और इसमें खास तरह के मसालों के उपयोग से इसका स्वाद बेहद लजीज हो जाता है। 

बिहार, पश्चिम बंगाल, उत्तर प्रदेश, ओडिशा, महाराष्ट्र, कर्नाटक,मध्य प्रदेश तथा आन्ध्र प्रदेश में बैंगन की व्यावसायिक पैमाने पर खेती की जाती है और किसान सालों भर इसकी फसल लेते हैं। खाड़ी तथा कुछ अन्य देशों को बैंगन का निर्यात भी किया जाता है। देश में तीन लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में बैंगन की खेती की जाती है और इसका सालाना करीब 50 लाख टन उत्पादन होता है।

 

English Summary: The new type of brinjal came "Doctor Brinjal", every season 1.5 million profits ... Published on: 07 March 2018, 11:44 PM IST

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