प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना किसानों ने अपनी फसलो की सुरक्षा के लिए ली थी, इस योजना को लेने के समय किसानों को उम्मीद थी कि उनकी फसलों के ख़राब होने पर इस योजना का लाभ वो प्राप्त कर पाएंगे. लेकिन एक बार फिर से किसानों को धोखा ही मिला, और उनकी मजबूरी की खिल्ली सरकार द्वारा दी गई राशि प्रदर्शित करती है. सरकार ने किसानों को बीमा का क्लेम दिया भी तो महज 2 रूपये.
जब फसल का बीमा सरकारी अफसरों ने अपनी निगरानी में करवाया था और बीमा करने वाली एजेंसिया भी सरकार द्वारा ही बताई गई थी. तो सवाल यही है कि किसान कहाँ अपनी बात रखे, किससे कहे और कौन सुनेगा. आपको बता दें बीमा कम्पनियों द्वारा छले गए किसान कुछ हजार नहीं है बल्कि इनकी संख्या तो लाखों के पार है.
छत्तीसगढ़ में फसल बीमा योजना मानसून के ठीक पहले किसी अनहोनी की तरह साबित हुई है. किसानों को यह योजना अब किसी प्राकृतिक आपदा के रूप में नजर आने लगी है, क्योंकि उनकी कोई सहायता ना तो सरकारी अफसर कर रहे है, और ना ही सरकार.
दरअसल इन किसानों ने फसल बीमा योजना के तहत अपनी फसलों का बीमा करवाया था. बैंक के जरिये प्रीमियम की रकम हर माह इनके खाते से कटती चली गयी. किसानों ने राजी ख़ुशी प्रीमियम इस उम्मीद में जमा किया कि जरूरत पड़ने पर इन्हें क्लेम की रकम मिल जायेगी.
फसल बीमा होने के बाद किसानों ने राहत की सांस ली. लेकिन राज्य में लगातार दूसरी बार पड़े सूखे ने उन्हें सोचने पर मजबूर कर दिया. इस बीच सरकार ने भरोसा दिलाया कि ऐसे कठिन समय में फसल बीमा योजना उनके लिए वरदान साबित हुई है. उन्हें उनकी फसल के नुकसान का भरपूर क्लेम दिलाया जाएगा.
कड़ी मशक्क्त के बाद बीमा कंपनियों ने किसानों के खेत खलियानो का रुख किया. कृषि विभाग और प्रशासन के अफसरों ने भी फसल के नुकसान का सर्वे कर रिपोर्ट तैयार की. किसानों को आश्वस्त किया गया कि उनके खाते में बीमा की रकम आ जायेगी. वे बिलकुल भी परेशान ना हों. लेकिन जैसे ही खाते में रकम आयी, किसानों के माथे पर बल पड़ गए. बीमा कंपनियों ने किसानों को दो से चार रुपये तक फसल बीमा नुकसान का भुगतान किया है.
खाते में आए 2 से 10 रूपये
मानसून के दस्तक देने में हफ्ता दो हफ्ता ही बचा है. राज्य के किसान फसल बुआई की तैयारी में जुटे हैं. कोई खाद्य बीज का इंतजाम कर रहा है, तो कोई खाली खेतों में हल चला कर मिट्टी की उर्वरता बढ़ाने में जुटा है. ऐसे समय किसानों को उम्मीद थी कि फसल बीमा से मिलने वाली रकम उनकी बड़ी सहायता करेगी. लेकिन जब यह रकम उनके खातों में आयी तो उनके होश उड़ गए. अब दो, चार और दस रुपये का भुगतान देख कर वो सरकार और बीमा कंपनियों को कोसने लगे हैं.
राज्य के धमतरी जिले की सूखाग्रस्त चार तहसीलों में 70 हजार 169 किसानों ने बीमा करवाया था. इनमें से सिर्फ 8722 किसानों को बीमा क्लेम मिला. इनमें से 2435 ऐसे किसान हैं, जिनके खाते में मात्र दो से चार रुपये की बीमा क्लेम की रकम आयी है.
इसके अलावा 272 ऐसे किसान है जिनके खाते में सात से दस रूपये आये हैं. यही हाल राज्य के दूसरे जिलों का भी है. छत्तीसगढ़ में पिछले खरीफ सीजन में औसत से कम बारिश के चलते 21 जिलों की 96 तहसीलों को सूखा ग्रस्त घोषित किया गया था. इस दौरान राज्य सरकार ने इफ्को और रिलायंस कंपनी के जरिये किसानों का फसल बीमा करवाया था. इफ्को ने बीस जिलों में और रिलायंस ने सात जिलों में बीमा किया. इन कंपनियों को किसानों की ओर से 127 करोड़ से ज्यादा का प्रीमियम चुकाया गया. इसके अलावा छत्तीसगढ़ सरकार ने 85 करोड़ और केंद्र सरकार की ओर से भी 85 करोड़ की प्रीमियम का भुगतान जरूरतमंद किसानों की ओर से किया गया.
बीमा कंपनियों ने प्रति एकड़ लगभग 70 रुपये प्रीमियम चुकाने वाले किसानों को बतौर मुआवजा मात्र दो से चार रुपये दिए. उधर इस मामले को लेकर सरकारी अफसरों और कृषि मंत्री का अपना-अपना तर्क है. कृषि मंत्री बृजमोहन अग्रवाल के मुताबिक किसानों को कम से कम एक हजार रुपये से कम की रकम ना दिए जाने के निर्देश बीमा कंपनियों को दिए गए हैं. जबकि कृषि और प्रशासन के अफसरों की दलील है कि बीमा कंपनियों ने नियम के मुताबिक क्लेम की रकम दी है.
दरअसल बीमा कंपनियों ने फसल बीमा योजना से लाभ कमाने के लिए पीड़ित किसान के बजाए गांव की पंचायत को यूनिट माना है. इसके चलते बीमा क्लेम तभी मंजूर होगा जब पूरे गांव की फसल ख़राब होगी. गांव के एक तिहाई से ज्यादा इलाके में फसल का नुकसान होने पर ही बीमा कंपनियां क्लेम तैयार करती है. फिलहाल छले गए किसान अदालत का दरवाजा खटखटाने की तैयारी में हैं.
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