उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में एक बार फिर खाद के बढ़ते दाम को लेकर हडकंप मचता दिखाई दे रहा है. एक तरफ जहाँ डीजल की बढ़ती महंगाई से किसान परेशान होते दिखाई दे रहे थे, वहीँ अब किसानों पर खाद महंगी होने की मार पर रही है.
आपको बता दें कि 1 अप्रैल से डीएपी खाद के दामों में 150 रुपये प्रति बोरी (50 किलो) की वृद्धि कर दी गई है. यह ख़बर मिलते ही बांदा के किसानों ने जमकर इसका विरोध किया. ख़बरों के मुताबिक, जायद व खरीफ फसलों की खेती के लिए किसानों को बढ़े दामों में ही खाद मिलेगी. चित्रकूटधाम मंडल के चारों जनपदों की बात की जाए, तो लहलहाती फसल पाने के लिए किसानों को फसल खाद के लिए 22 करोड़ रुपये और खर्च करने होंगे. वहीँ मंडल में करीब 3 लाख पंजीकृत किसान हैं जो डीएपी (DAP) का इस्तेमाल करते हैं.
मंडल में 3 लाख पंजीकृत किसान
मंडल के पंजीकृत किसानों की संख्या तीन लाख है. वहीँ 3 लाख किसानों के पास कृषि भूमि लगभग 11 लाख हेक्टेयर से भी अधिक दर्ज की गयी है. यहां किसान सिंचाई संसाधनों के अभाव में खरीफ व रबी यानी दो फसलें लेता है. खरीफ में 1 लाख 98 हजार व रबी में 5 लाख 37 हजार क्विंटल डीएपी की जरूरत पड़ती है. डीजल के दामों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी के बाद अब खाद की बोरी में एकमुश्त 150 रुपये की बढ़ोत्तरी हुई है. ऐसे में किसानों के कंधे पर लगातार बोझ बढ़ने लगा है.
इससे बांदा के किसानों पर 22 करोड़ रुपये सालाना का सीधा बोझ बढ़ गया है. ऐसे में किसानों का कहना है कि बीज, सिंचाई, डीजल, खाद आदि में जितना पैसा खर्च हो जाता है उस हिसाब से उन्हें मुनाफा नहीं मिल पाता ना ही उतनी पैदावार होती है.
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मीडिया रिपोर्ट के मुताबिक, संयुक्त कृषि निदेशक चित्रकूटधाम मंडल उमेश कटियार ने कहा कि किसानों को बढ़े हुए दामों पर नई आने वाली खाद मिलेगी. हालाँकि हमारे पास पहले के कुछ खाद भी हैं जो की पुराने दामों पर ही किसानों को दिया जाएगा. नई खाद की बोरी में नए दाम प्रिंट होंगे.
किसानी छोड़ने के कगार पर हैं किसान
प्रदेश के कई किसानों का कहना है कि एक तरफ सरकार कृषि-कार्य को बढ़ावा देने को बढ़ावा देने की बात करती है दूसरी तरफ खाद, बीज, डीजल के दामों में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी से किसान खेती छोड़ने को मजबूर हो रहे है. किसानों का कहना है कि हमारी जितनी लागत लगती है उसका आधा भी खेती से नहीं निकल पाता है.
ऐसे में हम खाएंगे क्या और बचाएंगे क्या? इसी सवाल के साथ उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों के किसानों के मन में लगातार आक्रोश बढ़ता जा रहा है.
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