भारतीय वैज्ञानिकों ने मूंगफली की एक नई किस्म विकसित की है जो कि तेल की अधिक मात्रा युक्त एक नई किस्म विकसित की है। वैज्ञानिकों को मानना है कि आज के दौर में अधिक मुनाफा कमाने के दृष्टिकोण से यह किस्म काफी फायदेमंद साबित हो सकती है। यह किस्म देश में छोटे किसानों के लिए काफी फायदेमंद मानी जा रही है। इसका उत्पादन कर वह कनफेक्शनरी के लिए उच्चवसीय अम्लयुक्त मूंगफली की बाजार में बढ़ती मांग के फलस्वरूप अच्छे दाम प्राप्त कर सकेंगे।
इस किस्म का विकास हैदराबाद स्थित अंतर्राष्ट्रीय फसल अनुसंधान केंद्र के वैज्ञानिकों एवं देश के कई अन्य संस्थानों के वैज्ञानिकों के शोध द्वारा विकसित किया गया है। जिनमें जूनागढ़ मूंगफली अनुसंधान केंद्र, जूनागढ़ कृषि विश्वविद्दालय (ऑयलसीड्स अनुसंधान केंद्र), पालेम रिसर्च स्टेशन तेलंगाना राज्य कृषि विश्वविद्दालय, ऑयलसीड्स विभाग( तमिलनाडु कृषि विश्वविद्दालय, आचार्य एन.जी रंगा कृषि विश्वविद्दालय के अथक प्रयासों से विकसित किया गया है। भारतीय किसानों को अब तक कनफेक्शनरी के लिए अच्छी किस्म नहीं मिल पाई थी लेकिन इस किस्म के द्वारा वैश्विक स्तर पर कनफेक्शनरी बिजनेस में फायदा मिल सकेगा। कनफेक्शनरी के लिए यह एक उच्च तेल युक्त किस्म है। इसे भारतीय जलवायु के अनुरूप ही विकसित किया गया है। इसकी भंडारण क्षमता भी अच्छी है साथ ही ओमेगा-9 वसायुक्त होने के कारण यह स्वास्थय के लिहाज से अच्छा माना जा रहा है।
मूंगफली की इस किस्म विकसित करने के लिए 2011 से प्रयास करने वाले डॉ. जनीला का कहना है कि बाजार में उच्च तेल युक्त मूंगफली की किस्म की मांग बढ़ने के मद्देनज़र इस किस्म को एक अमेरिकन किस्म सनोलिएक-95R के क्रास द्वारा विकसित किया गया है। आजकल विकसित क्राप इंप्रूवमेंट टूल्स एवं माल्यूक्यूलर रिसर्च की सहायता से इसे विकसित करने में सहायता मिली है। यह खेतों में अच्छी उपज व इंडस्ट्री के लिए अच्छी विकसित किस्म साबित होगी।
वर्तमान कनफेक्शनकरी के उत्पादों के लिए उच्च तेल वाली मूंगफली को ऑस्ट्रेलिया से मंगाकर एशिया की बाजारों के लिए उपलब्ध कराया जा रहा था। इस किस्म के विकसित हो जाने से एशिया के लिए मूंगफली की अच्छी किस्म की उपलब्धता आसानी से हो सकेगी।
भारतीय किसान आज वर्षा आधारित मूंगफली की किस्में की उपज ले रहें हैं। जो कि कम वसायुक्त( 40-45%) होती हैं। जबकि अमेरिका व ऑस्ट्रेलिया में लगभग 80 प्रतिशत वसा अम्ल युक्त किस्में विकसित हैं। भारत में इस बीच 16 उच्च वसीय तेल लाइनों के लिए ट्रायल किया गया है। जिसके अन्तर्गत किस्मों की एग्रीनोमिक एवं मार्केट की गुणवत्ता आंकी गई है।
इस दौरान एक विश्वस्तरीय कनफेक्शनरी के आपसी सहयोग से सेंसर द्वारा भी इन वसायुक्त मूंगफली किस्मों का परीक्षण किया गया है। देश भर में एक साथ किए जा रहे परीक्षण के दौरान वैज्ञानिकों ने इस वर्ष से प्रमाणित बीजों की ही बुवाई का सुझाव दिया है।
इस बीच माना जा रहा है कि छोटे किसानों को इससे काफी फायदा मिलेगा। इस प्रकार की किस्मों की बुवाई करके वह मार्केट में अच्छी मूंगफली बेचकर अच्छे दाम प्राप्त कर सकेंगे।
हैदराबाद स्थित इक्रीसेट संस्थान गुजरात के एक अग्रणी फार्म फूड कंपनी खेद्दुत के साथ मिलकर काम कर रहा है यह कंपनी लगभग 8000 छोटे किसानों के साथ मिलकर काम कर रहा है। इस दौरान किसानों को अच्छे एवं प्रमाणित बीज का प्रयोग कर अच्ची उपज एवं आमदनी लेने के लिए काम कर रही है। देश के लगभग 4.8 मिलियन हैक्टेयर मूंगफली उत्पादन बेल्ट में इन उच्च वसायुक्त किस्म के लिए भारत सरकार की तरफ से राष्ट्रीय मिशन ऑयलसीड्स एण्ड ऑयल पाम भी वित्तीय मदद कर रहा है।
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