पारिजात एक ऐसा वृक्ष है जिसे पौराणिक कथाओं के मुताबिक आस्था से जोड़ा जाता है. इस पारिजात वृक्ष के सुल्तानपुर, हमीरपुर, कानपुर आदि में कई दुर्लभ प्रजातियों के वृक्ष है. इन पेड़ों पर समय से फूल तो आते हैं परंतु वह फल के रूप में पूरी तरह तब्दील नहीं हो पाते . इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि इसमें समय पर बीज नहीं बन पाता है. वैज्ञानिकों ने इस प्रजाति के पौधे पर शोध करने की योजना भी विकसित की है और इस पर शीघ्र फल भी न आने पर इसके उपचार को लेकर शोध करने पर विचार हो रहा है.
परिजात का नाम और पहचान अलग
अगर हम पारिजात की प्रजातियों की बात करें तो उत्तर प्रदेश समेत कई जगह इसकी प्रजातियां पाई जाती है. उत्तर प्रदेश के बाराबांकी समेत कुछ जिलों में आज भी पारिजात की दुर्लभ प्रजातियां काफी मात्रा में पाई जाती हैं. इसे मुख्य रूप से हरसिंगार या फिर कल्पवृक्ष के नाम से जाना जाता है. इसके फल और फूलों का आकार भी काफी बड़ा होता है. इस पेड़ के फूलों की खास बात यह है कि यह फूल रात में आसानी से खिल जाते है और दिन में यह फूल गिर जाते है.
पारिजात है उपयोगी
पारिजात फूल काफी उपयोगी होता है. इसके फूल के अंदर सफेद रंग का बीज होता है. इसे पीसकर पानी में घोल कर पिया जाता है. विदेश में इसके बीज से एनर्जी ड्रिंक भी तैयार किए जाते है. इसमें बहुत सारे औषधीय गुण भी होते है. औषधी के रूप में इसका प्रयोग किया जाता है. अफ्रीका में इसकी एक प्रजाति के वृक्ष में तो चाकू मारने पर पानी निकलने लगता है
पारिजात के फूल
पारिजात के फूलों से फल और बीज के बनने की प्रक्रिया बेहद ही ज्यादा रोचक है. दरअसल पारिजात एक ऐसा वृक्ष होता है जिस पर चमकादड़ों का बसेरा होता है. उससे पॉलीनेशन होता है. इसके बाद इसमें फल आने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है.
पारिजात का है अहम महत्व
उत्तर प्रदेश के बारांबकी शहर से करीब 38 किमी दूर बसे किंतूर गांव में दुर्लभ पारिजात है. ऐसा कहा जाता है कि पांडवों ने माता कुंती के साथ कुछ समय यहां पर बिताया था. यह वृक्ष वहां आस्था का केंद्र है. इसकी ऊंचाई करीब 45 फीट होती है. माता कुंती भगवान शिव की पूजा करती थी. इसके अलावा लखनऊ के केजीएमयू परिसर, कानपुर, हमीरपुर और इलाहाबाद में दुर्लभ प्रजाति के पारिजात हैं. वहां भी ये वृक्ष लोगों की आस्था के प्रतीक हैं.
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