देश में धान की कटाई करने के बाद पराली जलाने और उससे पैदा होने वाले प्रदूषण की समस्या कोई नई नहीं है, लेकिन आम जनजीवन के लिए यह घातक जरुर है. भारत में धान की खेती पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर की जाती है और तमाम कोशिशें करने के बाद भी यहां पर पराली जलाने की समस्या का समाधान नहीं हो रहा है जिसका एक सबसे बड़ा कारण सरकार और किसानों के बीच में कमजोर बातचीत है.
बता दें कि धान की पराली कोई कचरा नहीं है इसका प्रयोग कई प्रकार से किया जा सकता है जिसमें किन्नू के बागों में पराली की मल्चिंग करना भी एक तरीका है.
पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी ने खोजा ये सामाधान
किसानों के हित में काम करने वाली पंजाब एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी कृषि के क्षेत्र में नई किस्मों और नई तकनीकों के आविष्कार के लिए जानी जाती है. यहां के वैज्ञानिकों ने हाल ही में एक रिसर्च की है, जिससे उन्होंने यह सिद्ध किया है कि किन्नू में धान और गेहूं की पराली का उपयोग करने से न केवल उत्पादन बढ़ता है बल्कि फलों की क्वालिटी और मिठास भी बढ़ जाती है.
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इस प्रकार से काम करती है पराली
रिसर्च के दौरान वैज्ञानिकों ने पाया कि किन्नू के जिन पेड़ों की जड़ों पर मल्चिंग की वहां पराली गल जाती है और प्राकृतिक खाद में बदलकर पेड़ को पोषण देती है. इसके साथ ही रिसर्च में ये भी देखा गया कि पराली से जिस क्षेत्र को कवर किया गया है वहां पर खरपतवार भी नहीं उगता है. इसके अलावा गर्मियों में मिट्टी में नमी रहती है जिससे धरती का तापमान नहीं बढ़ता और भूजल स्तर कायम रहता है और सिंचाई की भी बचत होती है.
जमीन पर नहीं गिरते हैं फल
पराली की मल्चिंग करने से फलों की उत्पादन क्षमता बढ़ने के साथ-साथ पेड़ों से फलों का गिरना भी कम हुआ है. रिसर्च में सामने आया है कि पहले की अपेक्षा 10 फीसदी फल गिरना कम हुए हैं. पीएयू के वैज्ञानिकों द्वारा इस प्रयोग में 3 टन पराली का उपयोग किया गया था.
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