भारत सरकार के नीति आयोग के सदस्य और आर्थिक विकास संस्थान, नई दिल्ली के अध्यक्ष प्रो. रमेश चंद ने कृषि उत्पादन की बढ़ती वास्तविक लागतों, जो किसानों की आय को प्रभावित करती हैं को संबोधित करने की आवश्यकता पर प्रकाश डाला. अपनी चार दिवसीय यात्रा के दौरान प्रो रमेश चंद ने प्राकृतिक खेती करने वाले प्रगतिशील किसानों और डॉ. यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, नौणी के वैज्ञानिकों से बैठक की.
मंगलवार को प्रोफेसर चंद ने मशोबरा में विश्वविद्यालय के क्षेत्रीय बागवानी अनुसंधान और प्रशिक्षण स्टेशन में प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के साथ एक इंटरैक्टिव सत्र में भाग लिया. उन्होंने बताया कि जहां भोजन कभी स्वास्थ्य का पर्याय था, वहीं आज के उपभोक्ता अक्सर उपलब्ध खाद्य उत्पादों के लिए चिंतित होते है. उन्होंने उपभोक्ता विश्वास के पुनर्निर्माण के लिए पर्यावरण अनुकूल और टिकाऊ कृषि पद्धतियों की ओर बदलाव का आह्वान किया.
प्रोफेसर चंद ने प्राकृतिक खेती/ Natural Farming को रासायनिक खेती का एक व्यवहार्य विकल्प साबित करने का आग्रह किया. उन्होंने प्राकृतिक खेती पर वैज्ञानिक डेटा संग्रह की आवश्यकता और रासायनिक खेती के विकल्प के रूप में इसकी प्रभावशीलता बढ़ाने के लिए आधुनिक विज्ञान के एकीकरण पर जोर दिया. उन्होंने मशोबरा और विश्वविद्यालय में एक वैज्ञानिक के रूप में बिताए गए अपने समय को भी याद किया.
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने उपस्थित लोगों का स्वागत किया और प्राकृतिक खेती अपनाने वाले किसानों की प्रशंसा की. उन्होंने कहा कि इन किसानों ने न केवल प्राकृतिक खेती के बारे में प्रारंभिक शंकाओं का समाधान किया है, बल्कि अपने खेतों में उत्कृष्ट परिणाम भी प्रदर्शित किए हैं. हिमाचल प्रदेश के बागवानी सचिव सी पॉलरासु ने राज्य के छोटे और सीमांत किसानों के लिए संभावित विकल्प के रूप में प्राकृतिक खेती की सराहना की. उन्होने बताया कि हिमाचल प्रदेश में लगभग 70 प्रतिशत खेत एक हेक्टेयर से भी कम आकार के हैं. उन्होंने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने और अनुसंधान परीक्षणों के माध्यम से वैज्ञानिक सहायता प्रदान करने में विश्वविद्यालय की भूमिका की सराहना की.
इस अवसर पर शिमला जिले के विभिन्न हिस्सों से आए किसानों ने प्राकृतिक खेती पर अपने अनुभव और प्रतिक्रिया साझा की. चर्चाओं में प्राकृतिक कृषि उपज का विपणन, कुशल जल उपयोग, सहकारी समितियों, किसान उत्पादक कंपनियों, उत्पादों की ब्रांडिंग और लेबलिंग और स्थानीय खपत पर भी चर्चा हुई. इससे पहले, कृषि विज्ञान केंद्र शिमला की समन्वयक डॉ. उषा शर्मा ने मशोबरा केंद्र में चल रहे प्राकृतिक खेती के अनुसंधान परीक्षणों और परिणामों को प्रस्तुत किया. मशोबरा केंद्र के सह निदेशक डॉ. दिनेश ठाकुर ने धन्यवाद प्रस्ताव दिया.
कार्यक्रम का समापन स्टेशन पर प्राकृतिक खेती सेब प्रदर्शन ब्लॉक के क्षेत्र दौरे के साथ हुआ. प्रोफेसर चंद ने विश्वविद्यालय के अनुसंधान प्रयासों और कृषक समुदाय के समक्ष उनके व्यावहारिक प्रदर्शन की सराहना की.
Share your comments