गन्ना बकाया की बढ़ती समस्या के दौरान सरकार ने कई अहम फैसले लिए हैं। देश में गन्ना भुगतान लगभग 22,000 करोड़ रुपए हो गया है। जिसमें से अधिकांश उत्तर प्रदेश का 12,000 करोड़ रुपए है।
इस दौरान राष्ट्रीय किसान मजदूर संगठन के अध्यक्ष एवं किसान नेता वीएम सिंह ने सरकार द्वारा घोषित इस पैकेज को किसानों के साथ छलावा करार दिया है। उनका कहना है कि इस पैकेज से किसानों को लाभ नहीं होगा। कैराना उपचुनाव में गन्ना बकाया भुगतान का मुद्दा उठाया गया था। जिसके बाद केंद्र सरकार ने 6 जून 2018 को कैबिनेट की मंजूरी से सात हजार करोड़ रुपए के पैकेज की घोषणा की है। गन्ना भुगतान समय पर न होने के लिए उन्होंने कहा कि सरकार ने गन्ना किसानों को चीनी मिल को आवंटित क्षेत्र में गन्ना देने के लिए बाध्य किया है, ठीक उसी प्रकार किसान को सही समय पर भुगतान मिलने के लिए कानून बनाकर चीनी मिलों को बाध्य करना चाहिए।
वीएम सिंह के अनुसार, सरकार द्वारा 30 लाख टन चीनी का बफर स्टाक करने का फैसला किया है। इसके रख-रखाव के लिए चीनी मिलों को 1,175 करोड़ रुपए का भुगतान किया जाएगा। इस पैसे में से बफर स्टाक के बीमा या परिवहन लागत आदि भी न कटे, और पूरा का पूरा पैसा गन्ना किसानों के भुगतान के लिए इस्तेमाल हो तो तब वो एक चीनी मिल के हिस्से में केवल 2 करोड़ रुपया ही आएगा, जबकि चीनी मिलों के भुगतान का औसत करीब 50 करोड़ रुपए है। अधिकांश चीनी मिलों पर किसानों का 200 करोड़ से उपर का बकाया है। बागपत जिले के बड़ौत की मलिकपुर चीनी मिल ने तो किसानों का पिछले साल का बकाया पैसा नहीं दिया है। वैसे भी यह पैसा रख-रखाव का है तथा 1,175 करोड़ रुपया केवल 3.4 महीने तक ही मिलेगा।
सरकार ने एथेनाल का उत्पादन बढ़ाने के लिए चीनी मिलों को 4,440 करोड़ रुपए का जो आवंटन किया है, यह पैसा चीनी मिलों को बैंकों से ऋण के रूप में मिलेगा और उस पर 1,320 करोड़ रुपए की सब्सिडी-ब्याज केंद्र सरकार वहन करेगी। यह पैसे चीनी मिलों को तब मिलेगा, अगर वह एथनाल का उत्पादन बढ़ाएंगी।
सरकार ने 1,500 करोड़ रुपए का इनसेंटिव मिल मालिकों को देने का निर्णय किया है, पर शर्त यह है कि वह 20 लाख टन चीनी का निर्यात करें। यह पैसा उचित एवं लाभकारी मूल्य ( एफआरपी) के हिसाब से गन्ना भुगतान के लिए 5.50 रुपए प्रति क्विंटल के आधार पर दिया जाएगा। यह इसलिए भी संभव नहीं है क्योंकि विश्व बाजार में चीनी के भाव 22 से 24 रुपए प्रति किलो हैं जबकि घरेलू बाजार में चीनी के भाव 28 से 32 रुपए प्रति किलो हैं।
इस बीच वीएम सिंह का मानना है कि चीनी के भाव में गिरावट के दौर में गन्ना भुगतान की कोई समस्या मिलों के सामने नहीं है। क्या चीनी के दाम ऊंचा होने के समय पर वह भुगतान करते हैं? उन्होंने कहा कि 2007-08 में चीनी के दाम 14 रुपए से बढ़कर 40 रुपए प्रति किलो हो गया था तो उस समय भी किसानों को अपने मुनाफे का हिस्सेदार नहीं बनाया था।
चीनी के भाव का संकट रंगराजन कमेटी की वजह से हुआ है। क्योंकि रिलीज़ आर्डर समाप्त कर दिया गया था और इसकी वजह चीनी डिकंट्रोल करना बताई गयी थी। हालांकि गन्ना किसानों के द्वारा इसका विरोध किया गया था।
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