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"भारतीय बीज उद्योग के विकास और चुनौतियां"- NSAI

एनएसएआई की 17वीं वार्षिक आम बैठक में हरित काल को विकसित करने के लिए विचारों, नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देने पर अधिक जोर दिया गया.

लोकेश निरवाल
Growths and Challenges of the Indian Seed Industry
Growths and Challenges of the Indian Seed Industry

नेशनल सीड एसोसिएशन ऑफ इंडिया (NSAI) ने बीते कल यानी 4 सितंबर, 2023 को नई दिल्ली में "भारतीय बीज उद्योग के विकास और चुनौतियां" पर एक तकनीकी सत्र का आयोजन किया. इस कार्यक्रम में एनएसएआई की 17वीं वार्षिक आम बैठक भी देखी गई, जिसमें हरित कल को विकसित करने के लिए विचारों, नवाचार और सहयोग को बढ़ावा देने पर जोर दिया गया. इस दौरान इसमें कई प्रमुख हस्तियां भी शामिल हुई.

सत्र में निम्नलिखित प्रमुख हस्तियां हुई शामिल

आरके त्रिवेदी, कार्यकारी निदेशक, एनएसएआई

डॉ. बीबी पटनायक, महासचिव, एनएसएआई

डॉ. डीके यादव, एडीजी (बीज), आईसीएआर-एनबीपीजीआर , क्षेत्रीय स्टेशन, जोधपुर

सम्मानित अतिथि - डॉ. पीके सिंह, कृषि आयुक्त, कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, भारत सरकार

मुख्य अतिथि - एके सिंह, निदेशक, प्रधान वैज्ञानिक, ICAR-IARI

एम प्रभाकर राव, अध्यक्ष, एनएसएआई

दिनेशभाई पटेल, उपाध्यक्ष, एनएसएआई

वैभव आर काशीकर, कोषाध्यक्ष, एनएसएआई

नई बीज नीति पर सरकार की योजना - डॉ. पीके सिंह

भारत सरकार , कृषि एवं किसान कल्याण विभाग, कृषि आयुक्त डॉ. पीके सिंह ने "अमृत काल के महत्व पर जोर देते हुए कहा कि,  भारत सरकार एक नई बीज नीति पेश करने की योजना बना रही है जो समावेशी हो सकती है, जहां निजी और सार्वजनिक दोनों हितधारक बढ़ावा दे सकते हैं और किसान अपेक्षाकृत सस्ती गुणवत्ता वाले बीजों का सर्वोत्तम उपयोग कर सकते हैं.

आगे उन्होंने कहा, "जब नई किस्में स्थापित की जाती हैं, तो यह महत्वपूर्ण है कि उनके बीज किसानों को तुरंत उपलब्ध हों. इसमें न केवल अनाज बल्कि सब्जियां, चारा और अन्य प्रकार की फसलें भी शामिल हो सकती हैं. वर्ष 2047 के साथ, हम इच्छा है कि भारत पूरी तरह से आत्मनिर्भर बने और अपने निर्यात को अच्छी संख्या में बढ़ाए. इसमें फूलों के बीज, सब्जी के बीज आदि के लिए अच्छी गुंजाइश है. नई नीति में आवश्यक बुनियादी ढांचे, बीज उत्पादन के लिए आवश्यक क्षेत्र और किसानों की क्षमता निर्माण. आने वाले 2-3 महीनों में नीति आने की उम्मीद है."

ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन 35% तक कम- एके सिंह

एके सिंह, निदेशक, प्रधान वैज्ञानिक, ICAR-IARI ने कहा कि जब हम धान की फसल में रोपाई विधि अपनाते हैं, तो इसमें बहुत अधिक पानी की खपत होती है. 1 किलो चावल उगाने में लगभग 3000L पानी का उपयोग होता है. इसलिए, उन्हें सीधे बीज देना आवश्यक हो जाता है क्योंकि इससे पानी की काफी बचत होती है, यह लागत है- प्रभावी, और ग्रीनहाउस गैसों का उत्पादन 35% तक कम हो जाता है.

उन्होंने आगे कहा, "हालांकि, अधिकांश किसान अवांछित घास के उत्पादन के कारण इस तकनीक का उपयोग करने से बचते हैं. चूंकि उन्हें प्रबंधित करना कठिन हो गया है, इसलिए पूसा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी ने बासमती चावल की 2 नई किस्में बनाई हैं, जिनमें अवांछित घास से छुटकारा पाने की क्षमता है."

English Summary: NSAI addresses "Growths and Challenges of the Indian Seed Industry" Published on: 05 September 2023, 12:14 PM IST

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