नई दिल्ली: नेशनल इंस्टीट्यूशन फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया आयोग ने "जैविक और जैव उर्वरकों का उत्पादन और संवर्धन" शीर्षक की रिपोर्ट जारी की. नीति आयोग के चंद सदस्यों ने इस बात पर प्रकाश डाला कि दक्षिण एशियाई कृषि की अनूठी ताकत फसलों के साथ पशुधन का एकीकरण है. उन्होंने कहा, “पिछले 50 वर्षों में अकार्बनिक उर्वरक और पशुधन खाद के उपयोग में गंभीर असंतुलन सामने आया है. यह मिट्टी के स्वास्थ्य, खाद्य गुणवत्ता, दक्षता, पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है.”
इसे देखते हुए सरकार स्थायी कृषि पद्धतियों जैसे जैविक खेती और प्राकृतिक खेती को बढ़ावा दे रही है. उन्होंने कहा कि जैव और जैविक आदानों की आपूर्ति के लिए संसाधन केंद्रों के रूप में कार्य करके गौशालाएं प्राकृतिक और टिकाऊ खेती को बढ़ाने में एक अभिन्न अंग बन सकती हैं.
गौशालाओं को आर्थिक रूप से उपयोगी बनाने, आवारा और परित्यक्त मवेशियों की समस्या का समाधान करने और कृषि और ऊर्जा क्षेत्रों में गाय के गोबर और गोमूत्र के प्रभावी उपयोग के उपाय सुझाने के लिए नीति आयोग द्वारा टास्क फोर्स का गठन किया गया था.
“मवेशी भारत में पारंपरिक कृषि प्रणाली का एक अभिन्न अंग थे और गौशालाएँ प्राकृतिक खेती और जैविक खेती को बढ़ावा देने में बहुत मदद कर सकती हैं. मवेशियों के कचरे से विकसित कृषि-इनपुट- गाय का गोबर और गोमूत्र आर्थिक, स्वास्थ्य, पर्यावरण और स्थिरता कारणों से पौधों के पोषक तत्वों और पौधों की सुरक्षा के रूप में कृषि रसायनों को कम या प्रतिस्थापित कर सकते हैं.
डॉ. वाईएस परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय, सोलन के कुलपति डॉ. राजेश्वर सिंह चंदेल ने हिमाचल प्रदेश के अनुभवों पर प्रकाश डाला और बताया कि टास्क फोर्स की रिपोर्ट जैविक और जैव उर्वरकों के उपयोग को बढ़ावा देकर कचरे से धन बनाने की पहल को मजबूत करेगी. उन्होंने गौशालाओं की आर्थिक सुधार के लिए संस्थागत सहयोग के महत्व पर भी जोर दिया.
हाल के वर्षों में जैविक और प्राकृतिक खेती की ओर बदलाव पर प्रकाश डालते हुए, प्रिय रंजन, संयुक्त सचिव, कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय ने उल्लेख किया कि केंद्रीय बजट 2023 में प्राकृतिक खेती को विशेष महत्व दिया गया है और नीति आयोग की रिपोर्ट इस कार्य को और भी आगे बढ़ाएंगी.
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