बिहार में हालिया बाढ़ और रोगों के प्रकोप ने एक बार फिर राज्य में धान की खेती की संवेदनशीलता को उजागर कर दिया है. लेकिन इस संकट के बीच किसानों के लिए राहत भरी खबर सामने आई है. बिहार कृषि विश्वविद्यालय (BAU), सबौर द्वारा विकसित नई धान किस्मों ने इन प्रतिकूल परिस्थितियों में न केवल जीवित रहने की क्षमता दिखाई, बल्कि अच्छी उपज भी दी.
हाल ही में बाढ़ के बाद BAU के खेतों में आयोजित फील्ड निरीक्षण के दौरान माननीय कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने धान की नई किस्मों- सबौर श्री सब-1, सबौर कतरनी धान-1, और सबौर विभूति धान- के प्रदर्शन का जायजा लिया. उनके साथ निदेशक अनुसंधान डॉ. ए.के. सिंह, निदेशक (बीज एवं फार्म) डॉ. फ़ैज़ा अहमद तथा धान अनुसंधान दल के अन्य वैज्ञानिक उपस्थित थे.
सबौर श्री सब-1 (BRR0266/IET32122)
मार्कर-असिस्टेड ब्रिडिंग के माध्यम से विकसित इस किस्म ने 14 दिनों तक जलमग्न रहने के बावजूद 30-35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर की उपज दी, जबकि सामान्य परिस्थितियों में यह 50–55 क्विंटल तक उपज देती है. 140–145 दिनों में परिपक्व होने वाली यह किस्म बिहार के बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों के लिए आदर्श है.
सबौर कतरनी धान-1 (BRR0215)
पारंपरिक कतरनी धान अक्सर बारिश और गिरने से नष्ट हो जाती है. यह उन्नत किस्म केवल 110-115 सेमी ऊँची है, जिससे गिरने की संभावना कम होती है. साथ ही, यह भागलपुर की GI टैग वाली कतरनी की सुगंध और गुणवत्ता को भी बरकरार रखती है. इसकी उपज 42-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है और यह 135–140 दिनों में तैयार हो जाती है.
सबौर विभूति धान
इस बार की बाढ़ में 7–8 दिन जलमग्न रहने के बावजूद इस किस्म को केवल 5–10% क्षति हुई. इसमें बैक्टीरियल लीफ ब्लाइट (BLB) के खिलाफ तीन प्रतिरोधी जीन मौजूद हैं, साथ ही यह ब्लास्ट रोग को भी सहन करती है. महसूरी-प्रकार की यह अर्ध-बौनी किस्म 135–140 दिनों में परिपक्व होती है और औसतन 55–60 क्विंटल की उपज देती है. अनुकूल परिस्थितियों में यह 85 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक उपज दे सकती है.
टिप्पणियां
कुलपति डॉ. डी.आर. सिंह ने कहा,"हालिया बाढ़ और रोगों की बढ़ती घटनाएं दर्शाती हैं कि ऐसी किस्में समय की मांग हैं. BAU की ये धान किस्में किसानों को जलवायु संकट और रोगों के दबाव से सुरक्षा प्रदान करते हुए उनकी आमदनी सुनिश्चित करती हैं."
डॉ. ए.के. सिंह, निदेशक अनुसंधान ने कहा, "सबौर श्री सब-1, कतरनी धान-1 और विभूति धान वैज्ञानिक अनुसंधान और फील्ड परीक्षण का परिणाम हैं. हाल की आपदाओं में इनकी सफलता यह प्रमाणित करती है कि ये किस्में बिहार के किसानों के लिए वरदान हैं."
बिहार के लिए महत्त्व
बिहार में 30 लाख हेक्टेयर से अधिक क्षेत्र में धान की खेती होती है, लेकिन हर साल बाढ़, जलमग्नता और BLB जैसी बीमारियाँ किसानों की उपज और आय पर असर डालती हैं. BAU सबौर द्वारा विकसित ये उन्नत किस्में न केवल इन समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करती हैं, बल्कि जलवायु-संवेदनशील कृषि के लिए भी आशा की नई किरण हैं.
इन उपलब्धियों के साथ, BAU सबौर एक बार फिर किसानों की आवश्यकताओं के अनुरूप, नवाचारी और टिकाऊ कृषि समाधान प्रदान करने वाले अग्रणी राष्ट्रीय संस्थान के रूप में अपनी भूमिका को सिद्ध करता है.
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