डॉ यशवन्त सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय हिमाचल प्रदेश के सोलन में स्थित एक विश्वविद्यालय है, यह एशिया का ऐसा पहला विश्वविद्यालय है, जिसमें औद्यानिकी और वानिकी की शिक्षा, अनुसंधान एवं विस्तार किया जाता है. इसकी नौणी की 26वीं अनुसंधान परिषद की बैठक कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल की अध्यक्षता में आयोजित की गई. बैठक दिल्ली में हुई जिसमें सुशील कुमार सिंगला (रेजिडेंट कमिश्नर, हिमाचल प्रदेश), सुदेश कुमार मोखटा (निदेशक, बागवानी विकास परियोजना, हिमाचल प्रदेश), बसु कौशल (वन संरक्षक, सोलन) सहित प्रगतिशील किसानों और विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने भाग लिया.
अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान ने पिछले वर्ष की गई अनुसंधान गतिविधियों का अवलोकन प्रस्तुत किया. उन्होंने सेब में बड म्यूटेंट की पहचान करने और नई किस्मों को विकसित करने के लिए चल रहे परीक्षणों में विश्वविद्यालय की सफलता पर प्रकाश डाला.
उन्होंने बताया कि विश्वविद्यालय ने प्राकृतिक खेती में अपने अनुसंधान के लिए व्यापक अंतरराष्ट्रीय मान्यता प्राप्त की है और इस विधि का एक अग्रणी अनुसंधान केंद्र बनकर उभरा है. डॉ. चौहान ने कहा कि विश्वविद्यालय ने क्लोनल रूटस्टॉक्स के बड़े पैमाने पर गुणन के लिए मॉड्यूल विकसित किए. इसके अलावा, उन्होंने ड्रैगन फ्रूट, जूजूबे बेर, कॉफी, ब्लूबेरी और एवोकोडा जैसे नए फलों को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय की पहल को साझा किया, जिसके लिए राज्य के विभिन्न स्थानों पर ट्रायल शुरू कर दिए गए है.
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प्रोफेसर राजेश्वर सिंह चंदेल ने वन और बागवानी विभागों की प्राथमिकता वाली प्रजातियों को ध्यान में रखकर बागवानी और वानिकी पौधों के लिए विशिष्ट रोपण सामग्री विकसित करने की आवश्यकता पर जोर दिया. उन्होंने ऐसे मॉडल बनाने के महत्व पर जोर दिया जो कम पानी वाली परिस्थितियों में अच्छा काम कर सकें. उन्होंने वैज्ञानिकों से छोटे मॉडल विकसित करने का आग्रह किया जिन्हें किसानों के खेतों में आसानी से दोहराया जा सके. प्रोफेसर चंदेल ने जलवायु-लचीली कृषि के महत्व और इस लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए और प्राकृतिक खेती की क्षमता पर प्रकाश डाला. उन्होंने कम उपयोग वाले और कम प्रसिद्ध देसी फलों को लोकप्रिय बनाने के प्रयासों के बारे में बताया.
सुशील कुमार सिंगला ने सदस्यों को संबोधित करते हुए अनुसंधान परियोजनाओं के वित्तपोषण में निजी क्षेत्र को शामिल करने के महत्व और किसी भी परियोजना की सफलता में सामुदायिक भागीदारी की महत्वपूर्ण भूमिका पर जोर दिया.
सुदेश कुमार मोखटा ने राज्य के विकास को बागवानी की प्रगति से जोड़ा. उन्होंने कहा कि जहां टेम्परेट बागवानी काफी आगे बढ़ चुकी है वहीं सब ट्रोपिकल बागवानी को आगे बढ़ाने से राज्य भी आगे बढ़ेगा. उन्होंने क्षेत्र में आने वाली चुनौतियों से निपटने के लिए बागवानी और गुणवत्तापूर्ण उत्पादन में राज्य के समृद्ध ज्ञान आधार का लाभ उठाने की आवश्यकता पर जोर दिया.
बैठक में लैंटाना जैसी आक्रामक प्रजातियों से निपटने के लिए हस्तक्षेप, जल संरक्षण के लिए स्प्रिंगशेड पारिस्थितिकी तंत्र प्रबंधन दृष्टिकोण और जंगल की आग के प्रबंधन के लिए सिल्वीकल्चर हस्तक्षेप पर भी चर्चा हुई. चर्चाओं में विभिन्न वन पौधों की नर्सरी तैयार करने की प्रथाओं का पैकेज ऑफ प्रैक्टिस शामिल रहा. किसानों ने बढ़ते सेब मोनोकल्चर के बारे में अपनी चिंता व्यक्त की और विविधीकरण विकल्पों पर किसानों को शिक्षित करने का आह्वान किया. बीज उत्पादन में आत्मनिर्भरता, स्प्रे शेड्यूल कार्यान्वयन, कोल्ड चेन नेटवर्क का शोधन, जोखिम शमन जैसे विषय भी बैठक का हिस्सा रहे.
बैठक के दौरान, छह प्रकाशन का विमोचन किया गया, जिनमें उच्च घनत्व वाले सेब बागानों और प्रबंधित परागण पर पैकेज शामिल था. बैठक में प्रगतिशील किसान उमेश सूद, शैलेन्द्र शर्मा, सुभाष शार्दू, बांके बिहारी, विनय नेगी और मोहिंदर कुमार सहित जी॰आई॰जेड॰ सलाहकार अजीत भोर, कृषि विवि पालमपुर से डॉ. एमसी राणा, विश्वविद्यालय के वैधानिक अधिकारियों और वैज्ञानिकों ने भाग लिया.
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