वर्तमान परिपेक्ष में मानव सभ्यता बहुत ही तेजी से नया आयाम ले रही है, हर कोई अपने काम में व्यस्त है. इस भागदौड़ वाली जिंदगी में मनुष्य अपने स्वस्थ पर उचित घ्यान नहीं दे पा रहे हैं. जीवन में सफलता पाने तथा एक खुशहाल जीवन के लिए स्वस्थ शरीर का होना बहुत आवश्यक हैं अगर हम स्वस्थ रहते है तो हमारे काम करने का नजरिया ही अलग और आसान होता है.
लोगों को स्वस्थ शरीर एवं स्वस्थ भोजन के महत्व के बारें में जागरूक करने के लिए प्रत्यके वर्ष 1 से 7 सितंबर को राष्ट्रीय पोषण सप्ताह मनाया जाता है. इस वर्ष भारत सरकार 1 से 30 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण माह मना रही है जिस का संपूर्ण विवरण महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार के वेबसाइट पर देखा जा सकता है. भारत सरकार 2018 से राष्ट्रीय पोषण माह मना रही है जिसका लक्ष्य 0-6 वर्ष के आयु के बच्चों के स्टंटिंग को 38 प्रतिशत से 25 प्रतिशत तक, 2022 में लाना है. पोषण के साथ ही शुद्ध और ताजा आहार मनुष्य के समुचित शारीरिक एवं मानसिक विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. परंतु आज भी हमारे देश में पोषण की कमी का आंकड़ा अपने चरम पर है. आज भी न जाने कितने परिवार और छोटे बच्चे कुपोषण का शिकार हो रहे और अपनी जान गवा रहें है. क्रिस्टोफर टर्नर के अनुसार- कुपोषण अपने सभी रूपों में वर्तमान में विश्व स्तर पर, तीन में से एक व्यक्ति को प्रभावित करता है और इसे हमारे समय की सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौतियां में, सबसे बड़े में से एक माना जाता है.
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह एवं माह का विहंगम एवं भव्य इतिहास
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह सर्वप्रथम मार्च 1975 में एडीए (अमेरिका डायटेटिक एसोसिएशन, अब पोषण और आहार विज्ञान अकादमी) के सदस्यों द्वारा पोषण शिक्षा की आवश्यकता के बारें में जनता के बीच जागरूकता बढ़ाने के साथ ही आहार विशषज्ञों के पेशे को बढ़ावा देने के लिए शुरू किया गया था. जनता की इस अभियान के सदर्भ में सकरात्मक प्रतिक्रिया को देखते हुए 1980 में इसे एक महीने तक चलाया गया था. इसके पश्चात भारत में 1982 में इसे शुरू किया गया तब से 1 से 7 सितम्बर तक राष्ट्रीय पोषण सप्ताह के रूप में मनाया जाने लगा. भारत सरकार एक कदम और आगे बढ़ते हुए, इस वर्ष 1 से 30 सितंबर तक राष्ट्रीय पोषण माह मना रही है. इस अभियान के माध्यम से लोगों में पोषण के महत्व को जागरूक किया किया जा रहा है.
भारत में पोषण के स्थिति की सिंहावलोकन
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (एनएफएचएस-5), 2019–21, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय, भारत सरकार के मार्च 2022 रिपोर्ट के अनुसार पांच साल से कम उम्र के 36 प्रतिशत बच्चे स्टंटेड हैं; 19 प्रतिशत वेस्टेड हैं (उनकी ऊंचाई के अनुसार वे पतले हैं); 32 प्रतिशत कम वजन के हैं (उनकी उम्र के अनुसार वे पतले हैं); और 3 प्रतिशत अधिक वजन वाले हैं. बिना स्कूली शिक्षा और कम धन वाले परिवार की माताओं से पैदा हुए बच्चे में कुपोषित होने की सबसे अधिक संभावना है. 6-59 महीनों के दो तिहाई से अधिक बच्चे एनीमिया से ग्रसित हैं (हीमोग्लोबिन का स्तर 11.0 ग्राम / डीएल से नीचे), जो कि एनएफएचएस-4 के 59 प्रतिशत के अनुमान से अधिक है. यह सारे बिंदु भारत में पोषण के चिंतनीय स्थिति को परिलक्षित करता है.
भारत सरकार के विभिन्न योजनाओं द्वारा पोषण सुरक्षा
आंगनवाड़ी सेवा योजना
भारतवर्ष में वर्तमान परिदृश्य में आंगनवाड़ी सेवा योजना सरकार के सबसे बड़े और अनूठे कार्यक्रमों में से एक है. इस योजना के लाभार्थी 0-6 वर्ष के आयु वर्ग के बच्चे, गर्भवती महिलाएं और स्तनपान कराने वाली माताएं एवं 14-18 वर्ष की आयु वर्ग की किशोरियां हैं. यह एक तरफ स्कूल पूर्व अनौपचारिक शिक्षा प्रदान करने की चुनौती का जवाब देने और दूसरी ओर कुपोषण, रुग्णता, कम सीखने की क्षमता और मृत्यु दर के दुष्चक्र को तोड़ने के लिए अपने बच्चों और स्तनपान कराने वाली माताओं के प्रति देश की प्रतिबद्धता का एक दृढ़ संकल्प का उदाहरण है.
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम (एनएफएसए), 2013
राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम प्रत्येक गर्भवती महिला और स्तनपान कराने वाली मां को बच्चे के जन्म के 6 महीने बाद तक, और प्रत्येक बच्चे को 6 महीने से 6 वर्ष के आयु वर्ग में (कुपोषण से पीड़ित लोगों सहित) पूरक पोषण के प्रावधान को अनिवार्य करता है .
पोषण अभियान का द्वितीय संस्करण
पोषण 2.0 संस्करण, 6 वर्ष तक के बच्चों, किशोरियों (14-18 वर्ष) और गर्भवती और स्तनपान कराने वाली माताओं के बीच कुपोषण की चुनौतीपूर्ण स्थिति का समाधान करने के लिए कटिबद्ध है.
विभिन्न आयु वर्गो के पोषण सुरक्षा के लिए जरूरी कदम
गर्भवती महिलाओं के लिए जरूरी आवश्यक सुझाव
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गर्भावस्था के दौरान और गर्भावस्था के बाद ‘आयरन और फोलिक एसिड (आईएफए)’ टैबलेट का सेवन करें.
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गर्भवती महिलाएं: दूसरी तिमाही के दौरान 1 डी-वर्मिंग (कृमि) टैबलेट अवश्य ले.
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दस्त आने पर ओआरएस, जिंक की खुराक का सेवन करें.
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टीकाकरण: गर्भवती महिलाओं को दो टेटनस टॉक्सोइड इंजेक्शन अवश्य लगवाएं.
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गर्भवती महिलाओं के लिए एक संपूर्ण पोस्टिक थाली.
बढ़ते शिशु के लिए जरूरी आवश्यक सुझाव
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6 महीने से 5 साल के बच्चे के लिए आयरन सिरप: 1 मिली हफ्ते में दो बार जरूर दें.
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12 महीने से 5 साल के बच्चे: 6 महीने में एक बार कृमिनाशक गोली अवश्य ले.
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9 महीने से 5 साल के बच्चे को द्विवार्षिक विटामिन ए की खुराक अवश्य दे.
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टीकाकरण: स्वास्थ्य अनुसूची के तहत शिशु को सभी टीके अवश्य लगवाएं.
शिशु के लिए परामर्श सेवाएं:
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गंभीर रूप से कुपोषित शिशु को अस्पताल या पोषण पुनर्वास केंद्र के लिए भेजा जाना चाहिए.
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बीमार बच्चों की देखभाल अति आवश्यक है.
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निष्कर्ष
राष्ट्रीय पोषण माह मनाने का उदेश्य हमारे देश की पोषण स्थिति को सुधारने के लक्ष्य से लोगों को पोषण से लाभ एवं कम पोषण से होने वाले समस्या से अवगत कराना है. यदि, इस संबंध में हमलोंग सतर्क नहीं हुए एवं प्रभावी कदम नहीं उठाएं तो इसका दुष्परिणाम देश की भावी पीढ़ी को भुगतान पडे़गा. इसलिए हमें गर्भवती माताओं के भोजन में पोषक तत्वों की मौजुदगी सुनिश्चित करना होगा एवं माताओं द्वारा स्तनापन कराए जाने के संबंध में जागरूकता फैलाने पर भी बल देना होगा ताकि भविष्य में होनेवाले कुपोषण जैसी समस्या से भावी पीढ़ी को बचाया जा सके.
निर्देश: यहां दी गई जानकारी महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, भारत सरकार एवं विभिन्न विश्वसनीय स्रोतों पर आधारित है परंतु फिर भी इसे अपनाने से पहले चिकित्सीय सलाह जरूर लें.
लेखक:
डॉ सुधानंद प्रसाद लाल एवं रीचा कुमारी,
सहायक प्राध्यापक सह वैज्ञानिक, प्रसार शिक्षा विभाग (पीजीसीए), डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125, यंग प्रोफेशनल, कृषिरत महिलाओं पर अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना, सामुदायिक विज्ञान महाविद्यालय, डा0 राजेन्द्र प्रसाद केन्द्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा, समस्तीपुर (बिहार)-848125
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