कहते हैं परिश्रम किसी की मोहताज नहीं होती। अगर खूब मन लगाकर परिश्रम किया जाए तो सफलता खुद शोर मचा देती है। परिश्रम से मुश्किल काम भी बेहद आसानी से हो जाता है। इसी बात को महान कवि श्री रामधारी सिंह दिनकर जी ने कुछ यूं कहा है कि ‘मानव जब जोर लगाता है पत्थर पानी बन जाता है।‘
जी हां, इस उक्ति को ‘कृषि जागरण’ के संस्थापक और मुख्य संपादक श्री एम.सी. डोमिनिक एवं निदेशक श्रीमती शाइनी इमानुवल व एम.जी. वासन ने चरितार्थ किया है। यह उनके परिश्रम का ही परिणाम है कि आज ‘कृषि जागरण’ पत्रिका का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ है। यह ‘कृषि जागरण’ परिवार के लिए बहुत ही गौरवान्वित करने वाला क्षण है। ज्ञात हो कि कृषि क्षेत्र में अनूठा काम करने व भारत की 12 क्षेत्रीय भाषाओं में कृषि पत्रिका प्रकाशित करने के लिए कृषि जागरण का नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज हुआ।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड क्या है?
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में प्रति वर्ष विश्व के जाने माने व्यक्तियों, संगठनों, संस्थाओं की उपलब्धियों को आंकलन करने के बाद उनका नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होता है। शिक्षा, साहित्य, कृषि, चिकित्सा विज्ञान, व्यापार, खेल, प्रकृति सेवा, रेडियो एवं सिनेमा के क्षेत्र में अनूठा काम करने वाले प्रतिष्ठित व्यक्तियों या संस्थाओं के नाम लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में दर्ज होते हैं। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स अनूठा काम करने वाले व्यक्तियों द्वारा बनाये गए रिकार्ड्स को दर्ज करने वाली विश्व की दूसरी सबसे बड़ी प्रतिष्ठित किताब है।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड का इतिहास
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड की शुरूआत सन् 1990 में सॉफ्ट पेय बनाने वाली कंपनी कोका कोला द्वारा हुई। इस बुक का प्रकाशन पहले कोका कोला कंपनी द्वारा ही संपन्न होता था लेकिन कालांतर में आते-आते इसका प्रकाशन लिम्का ने खुद अपने हाथों में ले लिया। गौरतलब है कि लिम्का कोका कोला का एक पेय उत्पाद है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड की शुरूआत करने का श्रेय रमेश चौहान को जाता है।
लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में कृषि जागरण का नाम क्यों?
कृषि जागरण 22 वर्ष पुरानी पत्रिका है जो अंग्रेजी, हिन्दी समेत पंजाबी, असमी, बंगाली, उड़िया, तेलुगू, तमिल, मलयालम, कन्नड़, गुजराती और मराठी में प्रकाशित होती है। यह विश्व की एकमात्र ऐसी पत्रिका है जो 12 भाषाओं में प्रकाशित होती है और पूरे भारत में 1 करोड़ से भी ज्यादा नियमित पाठक पत्रिका से जुड़े हुए हैं | कृषि जागरण ने बदलते समय के अनुरूप अपने प्रसार में भी बदलाव किया जिसके चलते कृषि जागरण की मांग अब देश में ही नहीं वरन् विदेशों में भी है। कृषि जागरण के अंग्रेजी अंक की विदेशों में खूब मांग है।
कृषि जागरण का यात्रा वृतांत
कृषि जागरण के संस्थापक एवं मुख्य संपादक एम.सी. डोमिनिक शुरु से ही किसानों के लिए कुछ अलग करने की सोच रहे थे कि किस तरह किसानों को शिक्षित व प्रशिक्षित किया जाए क्योंकि किसान ही इस देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ की हड्डी हैं। इस विचार के साथ उन्होंने इस दिशा में अथक परिश्रम करना शुरू किया। आखिरकार 5 सितंबर 1996 को विधिवत् कृषि जागरण की शुरूआत हुई । खेती की समुचित जानकारी होने के कारण किसानों ने इसे हाथों-हाथ लिया।
कृषि जागरण का सिलसिला यहीं नहीं थमा बल्कि अनवरत बढ़ता ही गया। हिन्दी भाषी राज्यों के अलावा अन्य राज्यों के किसान इसकी मांग करने लगे जिसके चलते अन्य भाषाओं में भी इस पत्रिका के प्रकाशन की जरूरत महसूस की जाने लगी। इसके तहत क्रमशः पंजाबी, गुजराती, मराठी, अंग्रेजी, कन्नड़, बंगाली, तेलुगू, असमी, तमिल, उड़िया और मलयालम भाषाओं में पत्रिकाओं का प्रकाशन शुरू हुआ। आज आलम यह है कि सभी राज्यों में कृषि जागरण का नाम अव्वल है।
इतनी बड़ी उपलब्धि हासिल करने के उपरांत भी कृषि जागरण की बढ़ती रफ्तार ने कम होने का नाम नहीं लिया। इलेक्ट्रॉनिक गैजेट्स के माध्यम से पढ़ने लिखने वालों को ध्यान में रखते हुए कृषि जागरण ने हिन्दी व अंग्रेजी पोर्टल की शुरुआत भी की । पोर्टल को शुरू से लेकर आज तक खूब पसंद किया जा रहा है। आपको जानकर आश्चर्य होगा कि प्रतिदिन लगभग दो लाख लोग कृषि जागरण के पोर्टल पर विजिट करते हैं। इन सबके इतर कृषि जागरण के सभी राज्यों के नाम से फेसबुक व व्हाट्सएप ग्रुप हैं जिनमें अलग-अलग राज्यों के किसान जुड़े हुए है और कृषि की नवीनतम जानकारियों से लाभ प्राप्त कर रहे हैं।
सही काम की सही पहचान-
कृषि जागरण कृषि क्षेत्र की एक मात्र ऐसी पत्रिका है जो पूरे भारत के किसानों द्वारा पढ़ी जाती है। कृषि जागरण अन्य पत्रिकाओं के लिए मील का पत्थर साबित हो रही है। लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में इसका नाम दर्ज होना इसी बात का परिचायक है। अभी तो शुरूआत है और न जाने अभी कितने अवार्ड्स व रिकार्ड्स कृषि जागरण की झोली में आने बाकी है। कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन को अपना आदर्श मानते हुए कृषि जागरण कृषि क्षेत्र में काम करती चली जा रही है। मुझे उम्मीद है वह दिन दूर नहीं जब कृषि जागरण विश्व पटल पर सूरज की भांति चमकेगा।
प्रस्तुति : विपिन मिश्र
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