
किसान अब फसल चक्र में परिवर्तन करने लगे हैं। 6 गांव के 150 किसानों ने पहले आलू की खेती कर रहे थे, लेकिन मौसम की वजह से नुकसान हो गया। अब किसानों ने पायलेट प्रोजेक्ट बनाकर औषधीय पौधों की खेती शुरू की है। जिसमें सफलता मिलने लगी है। पहली बार 20 एकड़ में नेपाली सतावर की खेती कर रहे हैं। आगे 100 एकड़ में खेती करने का लक्ष्य बनाया है। किसानों के प्रयास को देखते हुए डाबर कंपनी ने औषधीय पौधों को खरीदने के लिए अनुबंध भी कर लिया है।
कोरबा ब्लाक के किसानों ने मिलकर जय मां सर्वमंगला उत्पादक संघ बनाया था। जिसमें 13 गांव के 541 किसान शामिल हैं। केराकछार, ठाकुरखेता, पतरापाली, मुढुनारा व सरदुकला के किसानों ने जब सतावर के पौधे लगाए तो डर बना हुआ था कि यहां का वातावरण में तैयार होगा कि नहीं लेकिन सफलता मिल गई। अभी खेत में पौधे लहलहा रहे हैं। साथ ही प्रयोग के तौर पर 5 एकड़ में श्योनाक, पाढ़ल, बेल व गम्भारी की भी खेती कर रहे हैं।
उत्पादक संघ के अध्यक्ष गोविंद सिंह राठिया ने बताया कि और भी किसानों को औषधीय पौधे की खेती के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसमें नाबार्ड का भी काफी सहयोग रहा है। डाबर कंपनी ने कुछ और पौधों की खेती करने सलाह दी है। लेकिन पहले शुरूआत सतावर से ही की गई है।
बाजार में 250 से 400 रुपए किलो: नेपाली सतावर का मार्केट में प्रोसेसिंग के बाद 250 से 400 रुपए किलो है। यह फसल डेढ़ साल में तैयार हो जाता है। नगदी फसल में किसानों को बेहतर आय होने की संभावना है। पौधे तैयार होने के बाद नुकसान होने का खतरा भी नहीं रहता है।
किसानों ने ग्राम केराकछार में 20 टन क्षमता का कोल्ड स्टोरेज बनाने का निर्णय लिया है। इसके लिए उद्यान व कृषि विभाग भी सहयोग कर रही है। स्टोरेज में वनौषधियों के साथ ही जैविक खेती से तैयार फसल को भी रखेंगे ताकि बाजार में अच्छी कीमत मिल सके।
वनांचल में 400 से अधिक औषधीय पौधों को पहचान की गई है। लेकिन जिन पौधों की डिमांड है उसका कलेक्शन भी करेंगे। इसमें 10 प्रकार के पौधे शामिल हैं। केवाच के पौधे बहुतायत है। इसका फल औषधी के रूप में उपयोग होता है। इसी तरह बेल भी मिल जाता है।
Share your comments