आपने खाना खाते समय बहुत तरह की मिर्चियां खाई होंगी. कभी लाल तो कभी हरी तो कभी पीली. इसे मिर्चियों का राजा बताया जाता है.जिसका उत्पादन नागालैंड में किया जाता है. इसे भूत झोलकिया और घोस्ट पेपर के नाम से भी जाना जाता है. यह मिर्ची इतनी तीखी होती है कि लोग इसे खाने में उपयोग करने से परहेज करते हैं, लेकिन पूर्वोत्तर राज्यों के लोगों के द्वारा यह व्यापक स्तर पर उपयोग में लाई जाती है. इस लेख में जानिएं इस मिर्ची की खासियत.
मिर्ची की खासियत
यह मिर्ची कितनी तीखी होती है. इसका अंदाजा वही लोग लगा सकते हैं, जिन्होंने कभी इसका सेवन किया होगा. यह मिर्ची अपने तीखेपन की वजह से अब पूरे विश्व में विख्यात होती जा रही है. अभी हाल ही में इसे लंदन भी निर्यात किया गया है. पहले महज भारत के लोगों को ही अपने तीखेपन से बेहाल करने वाली यह मिर्ची अब लंदन भी पहुंच चुकी है. अब ऐसे में लोगों की क्या कुछ प्रतिक्रिया रहती है. यह तो फिलहाल भविष्य के गर्भ में छुपा है.
मुश्किल होता है इसका निर्यात करना
इसे दूसरों में देशों में निर्यात करना इसलिए मुश्किल माना जाता है, क्योंकि इसके निर्यात में खर्चा ज्यादा आता है, इसलिए आमतौर पर सरकार इसे निर्यात करने से परहेज करती है, लेकिन पहली बार इसे दूसरे देशों में भेजने का प्रयोग किया गया है. यह प्रयोग कितना सफल होता है. यह तो फिलहाल आने वाला वक्त ही बताएगा. अगर यह प्रयोग सफल रहा तो सरकार इसे निर्यात करती रहेगी.
पीएम मोदी ने भी जताई हैरानी
सर्वाधिक तीखे स्वाद की वजह से इस मिर्च की तारीफ खुद पीएम मोदी भी कर चुके हैं. वे इस मिर्ची की तारीफ करने के साथ-साथ इस पर हैरानी भी जता चुके हैं. उन्होंने इस मिर्ची के लंदन में निर्यात करने को सही कदम बताया. यह मिर्ची कितनी तीखी होती है. ये महज वही लोग बता सकते हैं, जिन्होंने इसका सेवन किया होगा.
भारत से लंदन भेजी गई ये तीखी मिर्च
इसकी खेती नागालैंड में ही होती है. नागालैंड सरकार को इस मिर्च के लिए साल 2008 में जीआई टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडेक्स हासिल हुआ था. असम का तेजपुर और नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम का इलाका भूत जोलोकिया की खेती के लिए मशहूर है. पूर्वोत्तर क्षेत्र के जीआई संबंधी उत्पादों के निर्यात को बढ़ावा देने के मकसद से नागालैंड के ‘राजा मिर्च’, जिसे किंग चिली भी कहा जाता है, की एक खेप को हवाई मार्ग से गुवाहाटी के रास्ते लंदन निर्यात किया गया. किंग चिली की इस खेप को स्कोविल हीट यूनिट्स (एसएचयू) के आधार पर दुनिया की सबसे तीखी मिर्ची भी माना जाता है. इस खेप को नागालैंड के पेरेन जिले के एक हिस्से, तेनिंग, से मंगवाया गया था और उसे गुवाहाटी में एपीडा से सहायता प्राप्त पैकहाउस में पैक किया गया था.
वर्ल्ड रिकॉर्ड में आया है नाम
भूत झोलकिया दुनिया की दूसरे नंबर की सबसे तीखी मिर्च है. यह मैक्सिको की रेड सैविना मिर्च से भी दोगुनी तीखी तो कैयानिन मिर्च जिसे हाबैनेरो मिर्च के तौर पर जानते हैं, उससे तीन गुनी तीखी है. साल 2007 में इस मिर्च को गिनीज वर्ल्ड रिकॉर्ड्स में जगह मिली थी. यह मिर्च उस समय टोबैसको सॉस से भी 400 गुना ज्यादा तीखी थी. डॉक्टर पॉल बोस्लैंड जिन्होंने इस मिर्च की खोज की थी, उनके मुताबिक इस मिर्च की एक सही मात्रा बहुत कम समय में किसी की भी जान ले सकती है. इस मिर्च का बायोलॉजिकल नाम कैपसिकम चीनेंस है.
साल 2008 में मिला GI टैग
नागालैंड सरकार को इस मिर्च के लिए साल 2008 में जीआई टैग यानी ज्योग्राफिकल इंडेक्स हासिल हुआ था. असम का तेजपुर और नागालैंड, मणिपुर, मिजोरम का इलाका भूत झोलकिया की खेती के लिए मशहूर है. भूत झोलकिया की फसल ज्यादा बारिश में खराब हो जाती है, बिल्कुल बारिश न हो तो भी सूख जाती है. पक जाने के बाद भूत झोलकिया का आकार 6 से 8 सेंटीमीटर का होता है. अक्सर यह पकने पर लाल रंग की होती है, पर कभी कभी संतरा और चाकलेट के रंग की भी दिखाई देती है.
मिर्ची से बना बम
भूत झोलकिया मिर्च सिर्फ खाने का स्वाद बढ़ाती हो ऐसा नहीं है. इस मिर्च का प्रयोग हथियार के तौर पर भी करते हैं. चटनी और सब्जियों का स्वाद बढ़ाने के लिए इसका इस्तेमाल किया जाता है. साल 2009 में डिफेंस रिसर्च डिजाइन ऑर्गनाइजेशन (डीआरडीओ) ने भूत झोलकिया के हैंड ग्रेनेड में इस्तेमाल पर विचार किया. तेजपुर स्थित डीआरडीओ की लैब ने इस मिर्च से प्रेरित होकर एक चिली ग्रेनेड या मिर्ची बम बनाया था. वहीं, साल 2016 में पैलेट गन में भी इसके इस्तेमाल के प्रस्ताव पर विचार किया गया, जिससे कि उग्रवादियों को तुरंत तितर-बितर किया जा सके.
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