जी हाँ, किसान भाइयों आप भी जलकुंभी से जैविक खाद बनाकर अच्छी कमाई कर सकते हैं। हर जगह पर जहां पानी जमा होता है वहां कुंभी जमती है। इसके कई तरह से उपयोग में लाकर एक आमदनी का जरिया बनाया जा सकता है। सामान्य तौर पर यह एक खरपतवार है लेकिन इसके कई एक उपयोग हैं। इससे हमें पर्याप्त मात्रा में खाद मिलती है। इसका बना कंपोस्ट 15 रुपए प्रति किलो बिकता है। मशीन की मदद से इसे काट कर कई टुकड़ों में बांट लिया जाता है और अच्छी कंपोस्ट खाद बनायी जा सकती है।
इसमें मौजूद नाइट्रोजन, फॉस्फोरस व पोटाश का उपयोग करके हम खाद बना सकते हैं। जो कि फसल के लिए काफी लाभकारी है। जलकुम्भी में नाइट्रोजन 2.5 फीसदी,फास्फोरस 0.5 फीसदी,पोटेसियम 5.5 फीसदी और कैल्शियम आक्साइड 3 फीसदी में मौजूद रहती है। बताते हैं कि रसायन उर्वरकों के साथ इसका उपयोग कर मिट्टी को काफी फायदा मिलता है। इसके अलावा इसमें तकरीबन ४२ फीसदी कार्बन होता है। इसकी सहायता से जलकुम्भी का इस्तेमाल करने पर मिट्टी के भौतिक गुणों पर इसका बड़ा असर पड़ता है। नाइट्रोजन और पोटेशियम का अच्छा जरिया होने की वजह से आलू के लिए जलकुम्भी का महत्व और भी ज्यादा हो जाता है।
अभी तक इसके उपयोग का सही मायनों में नहीं किया गया है, सिंचाई विभाग ने इस वित्त वर्ष में पोखरों और तालाब की सफाई और पानी में उगे हाइसिंथ यानि की जलकुंभी के खात्मे के लिए खर पतवार नाशक के छिड़काव के मद में 5.5 करोड़ रुपए का बजट तय किया है। खरपतवार नाशक की मदद से जलकुंभी को पानी में ही नष्ट किया जाता है। लेकिन इस पूरी प्रक्रिया को उस सौर ऊर्जा की बर्बादी के रूप में देखा जाता है जो कि जैव पदार्थ में तब्दील होता है। इसके साथ ही खरपतवार नाशक पारिस्थितीकीय तंत्र के लिए भी हानिकारक साबित होता है। इस प्रकार इसकी बनी खाद को 15 रुपए किलो के दर से बेचा जा सकता है। साथ ही इसके द्वारा कई प्रकार की बीमारियों में इसकी बनी औषधि से फायदा होने से इसको बेचकर अच्छा लाभ कमाया जा सकता हैं क्योंकि अस्थमा, खाँसी, एन्जाइमा में इन औषधियों के इस्तेमाल से काफी मदद मिलती है।
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