झारखंड (Jharkhand) के कुछ इलाकों को जहां एक तरफ नक्सलवादीयों के लिए जाना जाता है. वहीं दूसरी ओर कृषि क्षेत्र में भी यह अपने जुगाड़ से लोगों को चौंका रहा है. जी हां झारखंड में सबसे ज्यादा नक्सल प्रभावित जिलों में से एक है खूंटी (Khunti) जो अवैध रूप से अफीम की खेती और तस्करी के लिए भी मशहूर है, लेकिन अब लेमनग्रास की खेती (Lemongrass farming) की ओर यह अग्रसर है.
यह एक आदिवासी बेल्ट क्षेत्र भी है जहां स्थानीय लोग मुख्य रूप से अपनी आजीविका के लिए कृषि Agriculture) में हैं. हालांकि, खूंटी में आदिवासी और गैर-आदिवासी किसान अब अवैध अफीम की खेती (Opium Cultivation) को छोड़ने और लेमनग्रास (Lemongrass Farming) को अपनाने के लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं.
लेमनग्रास की खेती का लाभ (Benefits of Lemongrass Cultivation)
स्थानीय किसानों ने 700 एकड़ भूमि में लेमनग्रास उगाने का कार्य किया है. एक किसान ने कहा, "लेमनग्रास की खेती (Lemongrass Cultivation) बहुत आसान है, इसे एक बार लगाया जा सकता है और 6-7 साल तक लाभ कमाया जा सकता है और यह पहाड़ों पर आसानी से उगता है साथ ही इसे खाद और पानी की जरूरत नहीं होती है. यह देखकर दूसरे गांवों के लोग भी प्रेरित हो रहे हैं.
माओवादियों और आपराधिक गठजोड़ ने लंबे समय से खूंटी में अफीम की खेती को बढ़ावा दिया है, जिसके कारण पुलिस को नक्सलियों के खिलाफ लंबी दूरी की गश्त और तलाशी अभियान के दौरान लगातार अंतराल पर इन फसलों को नष्ट करना पड़ता था. बता दें, कि अफीम एक नशीला मादक पदार्थ है और खसखस की फली को सुखाकर प्राप्त किया जाता है.
माओवादियों का गढ़ खूंटी, आदिवासी आइकन बिरसा मुंडा का जन्मस्थान भी, कुख्यात अफीम की खेती से लेमनग्रास तेल उत्पादन की ओर बढ़ रहा है. एक ऐसा कदम जो झारखंड के गरीबी से त्रस्त जिले में लोगों की किस्मत बदल सकता है. स्थानीय एनजीओ सेवा वेलफेयर सोसाइटी की मदद से, दोनों पिछले साल से अपनी तीन एकड़ जमीन में लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं, जबकि मिट्टी बंजर और ज्यादातर मलबे से भरी हुई है.
स्वदेशी तकनीक (Indigenous technology)
खूंटी के नागरिक अब न केवल लेमनग्रास की खेती कर रहे हैं बल्कि तेल निकालने के लिए स्वदेशी तकनीक का भी इस्तेमाल कर रहे हैं.
उनके काम को राज्य के कृषि और पशुपालन मंत्री बादल पत्रलेख ने नोट किया है, जिन्होंने जड़ी-बूटियों की खेती को बढ़ावा देने के लिए किसानों को अधिक बजटीय संसाधन और प्रशिक्षण देने का वादा किया है.
“हमने खूंटी में अन्य ग्रामीणों को पोस्त (अफीम) के बजाय लेमनग्रास के रोपण के लिए प्रेरित करने के लिए मुंडा बंधुओं के केस स्टडी का उपयोग किया है. हमें न केवल झारखंड बल्कि अन्य राज्यों से भी तेल की मांग मिल रही है, ”सेवा वेलफेयर सोसाइटी के अध्यक्ष अजय शर्मा कहते हैं, जिन्होंने उन्हें लेमनग्रास की खेती में सलाह दी है.
कैसे निकालते है लेमनग्रास का तेल (How to extract lemongrass oil)
लेमनग्रास ऑयल निकालने के लिए किसानों ने बताया कि हम दो डिगची (Aluminum Stewpots) एक के ऊपर एक रखते हैं और ऊपरी डिगची को एक प्लास्टिक पाइप से जोड़ते हैं ताकि भाप उसमें से गुजर सके. दोनों बर्तनों में लेमनग्रास भरकर चूल्हे (Clay Stove) पर रख दिया जाता है.
वाष्प पाइप से होकर गुजरती है और पानी से भरे टब में रखी और लकड़ी के बक्से से ढकी हुई दूसरी डिगची में जमा हो जाती है. इस डिग्ची में साइड में एक छेद होता है जो प्लास्टिक की बोतल से जुड़ा होता है. इस बोतल में तेल एकत्र किया जाता है.
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