देश में किसनों के भविष्य को संवारने के लिए कई तरह के प्रयास किए जा रहे हैं. अनेक तरह के कार्यों और योजनाओं के द्वारा किसानों को उचित लाभ पहुंचाने के प्रयास किए जा रहे हैं. वहीं किसानों को प्रशिक्षण और उनको फसलों की जानकारी देने में कृषि विज्ञान केंन्द्र अग्रिम भूमिका निभा रहे हैं . इसी कड़ी में राष्ट्रीय डेरी अनुसंधान संस्थान, करनाल के कृषि विज्ञान केन्द्र द्वारा जिले के गांव बाँसा में फसल अवशेष प्रबंधन पर एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया. प्रशिक्षण कार्यक्रम में कृषि विज्ञान केन्द्र के प्रभारी डॉ. सुरेन्द्र कुमार ने किसानों से फसलों के अवशेष न जलाने का आह्वान किया. उन्होंने बताया कि फसल अवशेष जलाने से कई प्रकार की समस्या खड़ी होती है, इससे वातावरण को नुकसान तो पहुंचता ही है इसके साथ ही भूमि पर भी असर पड़ता है. पराली जलाने से प्रदूषण की मात्रा काफी बढ़ जाती है और इससे भूमि की उर्वरा शक्ति में कमी आ रही है जिससे फसल उत्पादन काफी प्रभावित हो रहा है.
फसल अवशेष के लिए उपयोग होने वाली मशीनों के बारे में दी गई जानकारी
डॉ सुरेन्द्र कुमार ने किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन में उपयोग आने वाली मशीनों व उनकी उपयोगिता को बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा चलाई जा रही योजनाओं के बारे में भी जानकारी दी. पिछले कुछ समय से देश में फसल अवषेशों के जलाने के मामले लगातार सामने आ रहे हैं. पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र इन जगहों में पराली जलाने के सबसे ज्यादा मामले सामने आ रहे हैं. और इसी को ध्यान में रखते हुए कई तरह के कृषि यंत्र बनाए जा रहे हैं जिससे पराली की होने वाली समस्या को रोका जा सके.
कृषि विज्ञान केन्द्र के सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी व कृषि विशेषज्ञ मोहर सिंह ने किसानों को बताया कि फसलों के अवशेष जलाने से भूमि में पोषक तत्व, कार्बनिक पदार्थ व लाभदायक सूक्ष्म जीवों की संख्या में काफी कमी आ रही है तथा भूमि की उर्वरता भी प्रभावित हो रही है उन्होंने आने वाले रबी मौसम में किसानों को फसल अवशेष प्रबंधन में उपयोग होने वाली मशीन हैप्पीसीडर व जीरो टिलेज मशीन के अधिक उपयोग करने का आह्वान किया जिससे फसल अवशेषों को भूमि में मिलाकर इसकी उर्वरा शक्ति को बढ़ाया तथा पर्यावरण को भी प्रदूषित होने से बचाया जा सके.
वहीं कृषि विज्ञान केन्द्र के द्वारा किसानों को दिया जाने वाला प्रशिक्षण काफी लाभकारी साबीत हो रहा है.
गांव के सरपंच ने प्रशिक्षण कार्यक्रम की सराहना की
बांसा गांव के सरपंच सरदार हरजिन्दर सिंह ने कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा किए गये कार्यों की काफी सराहना की. साथ ही उन्होंने केन्द्र के अधिकारियों के द्वारा किए गये कार्यों की सराहना करते हुए कहा कि इस तरह के कार्यक्रम का आयोजन समय-समय पर होना जरूरी हैं और इससे किसानों को काफी लाभ होता है.
गांव के लगभग 45 किसानों ने भाग लिया
गांव में कृषि विज्ञान केंद्र के द्वारा कराये जा रहे इस कार्यक्रम को लेकर किसानों के बीच काफी उत्साह दिखा और कार्यक्रम में कुल 45 किसानों ने हिस्सा लिया. इसमें गांव के प्रगतिशील किसान प्रगट सिंह, अंग्रेज सिंह, हरभजन सिंह व अमृतपाल उपस्थित थे. इस अवसर पर कृषि विज्ञान केन्द्र के राजेश्वर दयाल, सहायक मुख्य तकनीकी अधिकारी भी मौजूद थे.
पराली जलाने के मामले 4 राज्यों में सबसे ज्यादा सामने आते हैं
धान की खेती के बाद किसानों को रबी फसल की बुवाई करनी होती है. ऐसे में किसान खेतों में पराली जला देते हैं, ताकि जल्दी अगली बुवाई कर सकें. देश में पराली जलाने की सबसे ज्यादा मामले पंजाब, उत्तर प्रदेश, हरियाणा और राजस्थान में सामने आते हैं. इन राज्यों में आधे से ज्यादा जिलों में पराली जलाई जाती है.
2017 में किसानों से वसूला गया था जुर्माना
वर्ष 2017 में पराली को लेकर सुप्रीम कोर्ट तथा नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेशों के मद्देनज़र राज्य के पर्यावरण विभाग ने पराली जलाने के मामलों पर सख्त रुख अख्तियार किया गया था. उस दौरान राज्य में लगभग 1011 किसानों को पराली जलाते पकड़ा था और लगभग 455 किसानों से कार्रवाई करते हुए लगभग 11 लाख 89 हजार 500 रुपए का जुर्माना वसूला गया है. वहीं राज्य में उस दौरान सबसे ज्यादा पराली जलाने का मामला सीएम मनोहर लाल खट्टर के निर्वाचन क्षेत्र करनाल में सामने आया था. यहां लगभग 310 किसानों के खिलाफ कार्रवाई की गई थी.
जिम्मी,
पत्रकार
कृषि जागरण (दिल्ली)
Share your comments