जिले की अन्य प्रयोगशालाओं में किसी में चार तो किसी में छह मिट्टी के तत्वों की जाँच होती है। आधुनिक और वैज्ञानिक जानकारी देने के उद्देश्य से जिलों में खुले कृषि विज्ञान केन्द्र किसानों की उम्मीदों पर खरे नहीं उतर रहे है। स्थिति यह है कि सरकारी मशीनरी की अनदेखी के कारण पूर्वांचल के 17 मृदा परीक्षण प्रयोगशाला बन्द पड़ी है इन प्रयोगशालाओं में दस वर्षों से कोई परीक्षण ही नहीं हुआ है। ऐसे में किसानों की आय व उनकी मिट्टी की उर्वरा शक्ति बढ़ाने का दावा बेमानी साबित हो रहा है।
चंदौली जिले की प्रयोगशाला को ही ले तो दस वर्षों में यहाँ एक मृदा परीक्षण के नाम कोई प्रगति नहीं है। जबकि इस अवधि में यहाँ मृदा वैज्ञानिकों ने कागजों पर मौज से नौकरी की है। आश्चर्य की ही बात है कि प्रयोगशाला में तमाम संयंत्र होने के बाद भी उन्हें देखा तक नहीं गया।
कृषि विज्ञान केन्द्र चंदौली में 13 तत्वों की जाँच के लिये दस साल पूर्व लगभग 12 लाख रूपये की लागत से प्रयोगशाला बनाई गई इसमें स्पेटोमीटर, पीएच मीटर, इलेक्ट्रिकल कंडक्विटी मीटर, फ्लेल फोटोमीटर के अलावा अन्य उपकरण लगाए गए। लैब बनने के बाद यहाँ काम शुरू होना था पर पहले मृदा वैज्ञानिक के नाम पर जितने वैज्ञानिक आ रहे है। सभी नाम के वैज्ञानिक बनकर रह गए है। लैब का बंद ताला न खोलने में ही वैज्ञानिक अपनी बड़ाई समझ रहे है। स्थिति यह हो गई है कि लैब के सारे संयंत्र कूड़ा बन चुके है।
मिट्टी में जिंक और आयरन की कमी दूर करने की कौन कहे अब तो उपजाऊ जमीन भी पथरीली हो रही है। जागरूकता कार्यक्रमों के अभाव में मिट्टी की छह से सात इंच नीचे की परत कड़ी हो रही है। उसकी जोताई न होने पर वह पथरीली हो रही है। आधुनिक जानकारी देने के लिए विशेषज्ञों की तैनाती की गई है पर कोई जागरूकता कार्यक्रम न होने से पहले से आयरन और जिंक की कमी से जूझ रही मिट्टी अब पथरीली जमीन की ओर अग्रसर है।
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