कर्नाटक उच्च न्यायालय ने हाल ही में फैसला सुनाया कि मुर्गीपालन एक कृषि गतिविधि है, इसे किसी भी प्रकार के व्यावसाय में शामिल नहीं किया जा सकता है. कोर्ट ने कहा, मूर्गीपालन करने वाला कोई भी किसान ग्राम पंचायत और पंचायत राज अधिनियम के तहत किसी भी प्रकार का कर नहीं दे सकता है. न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने बताया है कि पोल्ट्री फार्मिंग खेती का ही हिस्सा है. इसको शुरु करने के लिए किसानों को किसी भी व्यावसायिक उद्देश्य के लिए भूमि को परिवर्तित करने की आवश्यकता नहीं है.
याचिकाकर्ता के नरसिम्हामूर्ति, जिनके पास कर्नाटक के रहने वाले हैं. उनकी नागासंद्रा गांव में चार एकड़ की जमीन है और उन्होंने संपत्ति के एक हिस्से में बनी इमारत के लिए बिजली कनेक्शन प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत से संपर्क किया था, जहां उन्होंने मुर्गी पालन करने की योजना बनाई थी.
याचिकाकर्ता की मांग
इस दौरान ग्राम पंचायत अधिकारियों ने बिजली के लिए एनओसी जारी करने के लिए 1.3 लाख रुपये मांगे और नरसिम्हामूर्ति ने उस मूल्य का भूगतान कर दिया क्योंकि ग्राम पंचायत अधिकारियों ने इसे एक मूर्गी पालन को एक उद्योग के रूप में स्वीकृति दी थी. नरसिम्हामूर्ति के पास कोई विकल्प न होने के कारण उन्हें 59,551 रुपये का भुगतान करन पड़ा, लेकिन उन्हें एहसास हुआ कि ग्राम पंचायत के पास ऐसा कोई अधिकार नहीं है कि वह इस पालन पर कर वसूल सकें तो उन्होंने यह दावा करते हुए उच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया और वहां मुर्गी पालन को एक व्यवसायिक कार्य की जगह कृषि का कार्य बताया.
1993 अधिनियम के प्रावधान
सरकार ने तर्क दिया कि मुर्गीपालन एक व्यावसायिक गतिविधि है और यह 1993 अधिनियम के प्रावधानों के तहत अनुसूची IV के माध्यम से इस पर कर लगता है, लेकिन 1993 अधिनियम के प्रावधानों पर विचार करने के बाद, न्यायमूर्ति सूरज गोविंदराज ने कहा कि अनुसूची IV में पोल्ट्री फार्मों का कोई वर्गीकरण नहीं है जो पंचायतों को कर लगाने की अनुमति देता है.
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न्यायाधीश ने कहा, इस मामले को ध्यान में रखते हुए, कृषि भूमि पर चलाया जा रहा पोल्ट्री फार्म एक व्यावसायिक गतिविधि नहीं है और पंचायत के पास अधिनियम की धारा 199 के साथ पढ़ी जाने वाली अनुसूची IV के संदर्भ में कर लगाने की कोई शक्ति नहीं होगी.
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