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भारत-अमेरिका ट्रेड डील में 'नॉन वेज' गायों का दूध बना विवाद की जड़, आस्था बनाम व्यापार का मुद्दा गरमाया

भारत और अमेरिका भले ही 2030 तक द्विपक्षीय व्यापार को 500 अरब डॉलर तक बढ़ाने का लक्ष्य रख रहे हों, लेकिन ‘मांसाहारी दूध’ जैसे मुद्दे ट्रेड डील में सबसे बड़ी बाधा बनकर सामने आ रहे हैं. यह साफ है कि भारत की प्राथमिकता केवल व्यापारिक लाभ नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और धार्मिक मान्यताओं की रक्षा भी है.

लोकेश निरवाल
Dairy Controversy
भारत-अमेरिका ट्रेड डील में रोड़ा बना ‘मांसाहारी दूध’ (सांकेतिक तस्वीर)

भारत और अमेरिका के बीच चल रही व्यापार समझौता वार्ता अब केवल व्यापार तक सीमित नहीं रही, बल्कि यह भारत की सांस्कृतिक और धार्मिक भावनाओं से जुड़ गई है. खासकर डेयरी उत्पादों को लेकर भारत का रुख बेहद सख्त है. भारत ने साफ कर दिया है कि वह ऐसा कोई समझौता नहीं करेगा जो उसकी आस्था, परंपरा और किसानों के हितों को नुकसान पहुंचाए.

अमेरिका चाहता है कि भारत अपना डेयरी बाजार खोले, लेकिन भारत की मांग है कि ऐसे उत्पाद सिर्फ उन्हीं गायों से आएं जिन्हें मांस या खून से बनी चीजें नहीं खिलाई गई हों. सरकार इसे अपनी सांस्कृतिक लक्ष्मण रेखा मान रही है.

धार्मिक और सांस्कृतिक वजहें

भारत में दूध और उससे बने उत्पाद केवल खाद्य वस्तुएं नहीं हैं, बल्कि पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और सामाजिक परंपराओं का अभिन्न हिस्सा हैं. यहां करोड़ों लोग शुद्ध शाकाहारी जीवनशैली अपनाते हैं और ऐसे किसी भी उत्पाद को स्वीकार नहीं करते जो मांसाहारी तरीके से पाले गए पशु से प्राप्त हो.

थिंक टैंक GTRI के अजय श्रीवास्तव ने इस मसले को लेकर कहा, "कल्पना कीजिए कि आप उस गाय के दूध से बना मक्खन खा रहे हैं जिसे किसी दूसरी गाय के मांस और खून से बने चारे पर पाला गया हो. भारत शायद इसकी कभी अनुमति न दे."

अमेरिका की स्थिति और दबाव

अमेरिका, जो दुनिया के सबसे बड़े डेयरी उत्पादक और निर्यातक देशों में शामिल है, भारत में अपना बाजार खोलना चाहता है. वहां गायों को सस्ते और मांस से बने चारे पर पाला जाना आम बात है. अमेरिकी रिपोर्टों में बताया गया है कि गायों को सूअर, मुर्गी, मछली, घोड़े और यहां तक कि कुत्तों-बिल्लियों के अंगों से बने मिश्रित चारे दिए जाते हैं.

द सिएटल टाइम्स की एक रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका में पशुओं को ऐसे मिश्रित चारे दिए जाते हैं जिसमें जानवरों के अंग, खून और यहां तक कि मुर्गियों की बीट तक शामिल होती है. भारत में इस प्रकार के उत्पादों का धार्मिक विरोध है और इन्हें अशुद्ध माना जाता है.

किसानों के हितों की रक्षा

भारत का डेयरी उद्योग 8 करोड़ से ज्यादा लोगों को रोजगार देता है और ग्रामीण अर्थव्यवस्था का आधार है. इस क्षेत्र का कुल मूल्य लगभग 7.5 से 9 लाख करोड़ रुपये आंका गया है. अमेरिका से सस्ते डेयरी उत्पादों का आयात शुरू होने पर घरेलू कीमतों पर असर पड़ सकता है और छोटे किसानों को भारी नुकसान हो सकता है.

एसबीआई की एक रिपोर्ट के मुताबिक, अगर भारत ने डेयरी सेक्टर को विदेशी प्रतिस्पर्धा के लिए खोल दिया, तो देश को हर साल लगभग 1.03 लाख करोड़ रुपये का नुकसान हो सकता है.

भारत का सख्त रुख

सरकार ने दो टूक कह दिया है कि डेयरी क्षेत्र में किसी तरह की रियायत की गुंजाइश नहीं है. एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने बताया, "यह क्षेत्र हमारी रोजमर्रा की जरूरतों और आस्था से जुड़ा है. डेयरी के मामले में कोई नरमी नहीं बरती जाएगी. यह एक सांस्कृतिक लक्ष्मण रेखा है."

English Summary: India us trade deal milk from non veg cows sparks controversy faith vs trade debate Published on: 17 July 2025, 05:00 PM IST

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