केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा कृषि निर्यात नीति को मंजूरी मिलने के साथ ही वाणिज्य मंत्री सुरेश प्रभु ने बताया कि जैविक और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थों के निर्यात से सभी प्रकार के प्रतिबंध हटा दिए जायेगें. ऐसा करने से इस क्षेत्र के विकास में सुगमता आएगी. मंत्रिपरिषद ने नीति के क्रियान्वयन पर निगरानी के लिए एक केंद्रीय व्यवस्था बनाने के प्रस्ताव को भी मंजूरी दी है.
एसोचैम द्वारा खाद्य प्रसंस्करण में सूक्ष्म, मध्यम और लघु उद्यम (एमएसएमई) पारिस्थितिकी तंत्र को मजबूती देने के लिए आयोजित सम्मलेन को सम्बोधित करते हुए श्री प्रभू ने कहा कि पूरी नीति के एक हिस्से के रूप में, राज्य सरकारों की पूर्ण भागीदारी के साथ शीत शृंखला आधारभूत संरचना के निर्माण पर काम किया जायेगा. इसके लिए प्रत्येक राज्य में एक नोडल अधिकारी नियुक्त करने का फैसला लिया गया है. यह अधिकारी इसके आधारभूत संरचना बनाने के लिए काम करेगा.
नई नीति के बारे में प्रभु ने कहा कि केन्द्र सरकार प्रत्येक राज्य में उत्पादित प्राकृतिक उत्पादों के आधार पर कृषि, बागवानी, मांस, डेयरी और अन्य उत्पादों के लिए संकुल(क्लस्टर) विकसित करेगी. फिलहाल सरकार उपस्कर (लॉजिस्टिक्स) पर काम कर रही है. उन्होंने कहा कि भारत में लगभग 30 फ़ीसदी फल संस्करण और रखरखाव की उचित सुविधा के अभाव में माल बरबाद हो जाता है जबकि भारत दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा फल-सब्जी उत्पादक देश है.
साथ ही उन्होंने कहा कि खाद्य प्रसंस्करण बहुत ही महत्त्वपूर्ण है और भारत में इसे बड़े पैमाने पर बढ़ाने की जरूरत है. इसके लिए आबू धाबी निवेश प्राधिकरण ने भारत में इस क्षेत्र के वित्तपोषण के लिए प्रतिबद्धता जताई है. समुद्री उत्पाद निर्यात की संभावनओं पर जोर देते हुए प्रभु ने बताया कि केंद्र सरकार गोवा सहित 13 तटीय राज्यों के साथ मिलकर समुद्री उत्पाद निर्यात को दोगुना करने के लिए काम करेगी. उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र में जापान और कोरिया जैसे देशों से निवेश की उम्मीद है.
प्रभाकर मिश्र, कृषि जागरण
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