देश के लोगों को रसायन मुक्त खाद्य सामग्री मिल सकें इसके लिए केंद्र व राज्य सरकार जैविक खेती पर ज़ोर दे रही है. जैविक खेती से न सिर्फ रसायन मुक्त सब्ज़ी, फल और अनाज मिलता है बल्कि इसके साथ ही जमीन की उर्वरता क्षमता बनी रहती है. ऐसे में जैविक खेती हर तरह से लाभकारी है. सरकार की यह पहल विगत कुछ वर्षों में काफी कारगर भी साबित हुई है. लेकिन उस तरह से नहीं हुई है जिस तरह से होना चाहिए. क्योंकि, अभी भी कुछ लोग फलों को पकाने के लिए रसायन का इस्तेमाल कर रहें है. अब इसी कड़ी में दिल्ली उच्च न्यायालय (Delhi High Court) ने कहा है कि फलों को पकाने के लिए कीटनाशकों और रसायनों का उपयोग उपभोक्ता को जहर देने के समान है तथा दोषियों के खिलाफ दंडात्मक प्रावधानों को लागू करने से प्रतिरोधक असर पड़ेगा.
कार्बाइड जैसे रसायनों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति को जहर देने जैसा
दरअसल न्यायमूर्ति जीएस सिस्तानी और न्यायमूर्ति एजे भंबानी की पीठ ने कहा, 'आमों को पकाने के लिए कैल्शियम कार्बाइड (Calcium carbide) जैसे रसायनों का इस्तेमाल किसी व्यक्ति को जहर देने जैसा है. उनके खिलाफ भारतीय दंड संहिता क्यों नहीं लागू की जानी चाहिए?' पीठ ने कहा, 'ऐसे व्यक्तियों को जेल भेजें, भले ही दो दिनों के लिए और इसका प्रतिरोधक प्रभाव होगा.'
बता दे कि पीठ फलों और सब्जियों पर कीटनाशकों के उपयोग की निगरानी के लिए अदालत द्वारा शुरू की गई एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी. पीठ ने भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (एफएसएसएआई) से पूछा कि क्या कैल्शियम कार्बाइड का इस्तेमाल अब भी आम जैसे फलों को पकाने के लिए किया जा रहा है? अदालत ने सहायता के लिए सुनवाई की अगली तारीख पर प्राधिकरण के मुख्य कार्यकारी अधिकारी को उपस्थित रहने को कहा.
दिल्ली के विभिन्न बाजारों से नमूने एकत्र किए जा रहे हैं
अदालत ने कृषि मंत्रालय से सवाल किया कि क्या ऐसा कोई उपकरण (किट) मौजूद है जिससे उपभोक्ता खुद ही अपने घरों में कैल्शियम कार्बाइड की जांच कर सकें. मंत्रालय ने कहा कि ऐसी कोई किट उपलब्ध नहीं है और कैल्शियम कार्बाइड की मौजूदगी की जांच केवल प्रयोगशालाओं में ही उचित उपकरणों और अतिरिक्त रसायनों की मदद से की जा सकती है. दिल्ली सरकार ने अदालत को बताया कि वह राष्ट्रीय राजधानी के विभिन्न बाजारों से नमूने एकत्र कर रही है ताकि जांच की जा सके.
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