अकाली दल नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल ने तीनों कृषि कानूनों पर सरकार को जमकर घेरा. मोदी सरकार को असंवेदनशील और अहंकारी बताते हुए उन्होंने कहा कि जब पूरा देश कोविड-19 से लड़ रहा था और लोग घरों में थे, तब एक अध्यादेश लाकर इन कानूनों को जबरन थोपा गया. राष्ट्रपति के अभिभाषण के बाद धन्यवाद प्रस्ताव पर बोलते हुए हरसिमरत ने कहा कि अनाज उत्पादन का पवित्र काम करने वाले किसानों को ठिठुरती ठंड में छोड़ दिया गया है, वो पिछले 70-75 दिनों से वहां बैठे हैं, जिनमें बच्चे, बुजुर्ग और महिलाएं भी हैं, लेकिन सरकार ने आंख, कान और मुंह बंद कर रखा है.
सरकार की अमानवीयता को बर्दाश्त नहीं
हरसिमरत ने बताया कि किसी भी तरह से किसानों के साथ अन्याय को होता देख, वो नहीं रह सकती है. उन्होंने कहा कि वह खुद सरकार में थी, लेकिन अमानवीयता को बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है, ऐसे सरकार में क्या रहना जो किसी की संवेदनाओं और भावनाओं को नहीं जानना चाहती. दो महीने से अधिक समय से चल रहे किसान आंदोलन को शांतिपूर्ण बताते हुए हरसिमरत ने पीएम मोदी पर भी कई सवाल किए.
हमारी बात पर गौर नहीं किया गया
हरसिमरत ने कहा कि नए कृषि कानूनों पर किसानों में डर था कि उनकी एमएसपी खत्म न हो जाए, उस समय मैंने सरकार के मंत्रियों से कहा था कि वो उनकी शंका का निवारण करें, लेकिन कोई ध्यान नहीं दिया गया. हम हम सबसे पुराने सहयोगी थे और हमेशा से सरकार के साथ खड़ें थे, लेकिन आज जब किसान ही इन कानूनों को नहीं चाहती, तो सरकार क्यों ‘काले कानून’ वापस नहीं ले रही.
26 जनवरी की घटना सरकार की विफलता
26 जनवरी की घटना को दुखद बताते हुए हरसिमरत ने इसे सरकार की नाकामी बताई. उन्होंने कहा कि आंदोलन को बिचौलियों, माओवादियों और खालिस्तानियों के नाम से बदनाम किया जा रहा है, 26 जनवरी को लाल किले पर जो हुआ, वो नहीं होना चाहिए था, लेकिन खुफिया विभाग को इसकी जानकारी क्यों नहीं लगी.
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