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ओडिशा के रसगुल्ले को मिला जीआई तमगा

ओडिशा के रसगुल्ले को अब जियोग्राफिकल इंडीकेशन यानि कि भौगोलिक सांकेतिक के टैग की मान्यता मिल गई है. भारत सरकार के जीआई रजिस्ट्रेशन की तरफ से इस बात की मान्यता रसगुल्ले को दी गई है. रसगुल्ले को जीआई टैग मान्यता को लेकर चेन्नई जीआई रजिस्ट्रार की तरफ से विज्ञप्ति जारी करके इस बारे में बताया है. स्वाद और रंगरूप के आधार पर जीआई प्रमाणन ने ओडिशा रसगुल्ला को वैश्विक पहचान को प्रदान कर दिया है. इस संबंध में जीआई एंजेसी ने अपनी बेवसाइट पर इसकी जानकारी को पोस्ट कर दिया है. अपने यहां के रसगुल्ले को वैश्विक पहचान मिलने से ओडिशा राज्य के लोगों में खुशी की लहर है. राज्य के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने प्रमाण पत्र की प्रति ट्विटर पर जारी कर दी है.

किशन
RASGULLA

पश्चिम बंगाल के साथ लड़ाई थी

बता दें कि साल 2015 से, ओडिशा और पश्चिम बंगाल के बीच रसगुल्ले को लेकर चल रही जंग चल रही है. बंगाल राज्य को वर्ष 2017 में अपने रसगुलल्ले के लिए जीआई टैग का प्रमाण पत्र प्राप्त हो गया था. इसी के अगले साल ओडिशा लघु उद्योग निगम लिमिटेड ने रसगुल्ला कारोबारियों के समूह उत्कल मिष्ठान व्यवसायी समिति के साथ मिलकर ओडिशा रसगुल्ले को जीआई टैग देने हेतु आवेदन दिया था.

पंद्रहवी सदी के ग्रंथ में जिक्र

बंगाल के लोगों का तर्क है कि रसगुल्ले का आविष्कार 1845 में नबीन चंद्रदास ने किया था. वह कोलकाता के बागबाजार में हलवाई की दुकान चाने का कार्य करते थे. उनकी दुकान आज भी वहां केसी दास के नाम से संचालित है.ओडिशा का तर्क है कि उनके राज्य में 12वीं सदी से रसगुल्ला बनता आ रहा है, उड़िया के एक विद्वान ने एक शोध में साबित किया है कि 15वीं सदी में बलराम रचित उड़िया ग्रंथ दांडी रामायण में रसगुल्ले की चर्चा है.

ODISHA RASGULLA

बंगाली और रसगुल्ले में अंतर

बंगाली रसगुल्ला बिल्कुल सफेद रंग और स्पंजी होता है जबकि ओडिशा रसगुल्ला हल्के भूरे रंग का और बंगाली रसगुल्ला की तुलना में मुलायम होता है. यह रसगुल्ला मुंह में जाकर आसानी से घुल जाता है. ओडिशा रसगुल्ले के बारे में यह दावा है कि यह 12वीं सदी से भी भगवान जगन्नाथ को भोग के रूप में चढ़ाया जा रहा है. इसे खीर मोहन भी कहते है.

English Summary: GI tag status received by Rasgulla of Odisha Published on: 30 July 2019, 02:15 PM IST

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