Gaddi Dog: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) के राष्ट्रीय पशु आनुवंशिक संसाधन ब्यूरो (NBAGR) ने हिमालय की खास गद्दी कुत्ता नस्ल को आधिकारिक मान्यता दी है. यह मान्यता इस नस्ल को बचाने और बढ़ावा देने की दिशा में एक बड़ा कदम है. गद्दी कुत्ता अब चौथी स्वदेशी कुत्ता नस्ल बन गया है, जिसे पंजीकरण मिला है. इससे पहले तमिलनाडु के राजापलयम और चिप्पीपरई और कर्नाटक के मुधोल हाउंड को यह मान्यता मिल चुकी है.
गद्दी कुत्ता: हिमालय का सुरक्षा गार्ड
गद्दी कुत्ता, जिसे 'इंडियन पैंथर हाउंड' भी कहते हैं, हिमालयी क्षेत्रों में बर्फीले तेंदुओं जैसे जानवरों से सुरक्षा के लिए मशहूर है. यह नस्ल हिमाचल प्रदेश के गद्दी जनजाति से जुड़ी है, जो परंपरागत रूप से पशुपालन और ऊन बनाने का काम करते हैं. इस कुत्ते का शरीर मजबूत होता है, इसकी गर्दन बड़ी और झुकी हुई होती है, और इसका रंग काला होता है, जिसमें कभी-कभी सफेद निशान भी दिखते हैं.
खतरे में है यह खास नस्ल
गद्दी कुत्ता, जो कभी पहाड़ों में चरवाहों का सबसे भरोसेमंद साथी था, अब धीरे-धीरे लुप्त होने की कगार पर है. आज इसकी संख्या 1,000 से भी कम है. इसके प्रजनन में कमी और जीन पूल की समस्या के कारण इसकी नस्ल कमजोर हो रही है. इसे अभी तक बड़े केनल क्लबों से पहचान नहीं मिली है, जिससे इसके संरक्षण में मुश्किलें आ रही हैं.
चरवाहों का साथी
गद्दी कुत्ते का वजन नर में लगभग 39 किलो और मादा में 32 किलो होता है. यह कुत्ता हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में चरवाहों का सबसे बड़ा सहारा है. ये कुत्ते भेड़-बकरियों को इकट्ठा करने और शिकारी जानवरों से उनकी सुरक्षा में मदद करते हैं.
संरक्षण के लिए हो रहे प्रयास
पालमपुर में स्थित हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में गद्दी कुत्तों को बचाने के लिए खास प्रोजेक्ट चलाया जा रहा है. यह प्रोजेक्ट इन कुत्तों की नस्ल को बचाने और उनकी संख्या बढ़ाने पर काम कर रहा है. गद्दी कुत्ता सिर्फ एक नस्ल नहीं, बल्कि हिमालय की परंपरा और धरोहर का हिस्सा है. इसे बचाने के लिए किए जा रहे प्रयास आने वाले समय में इस खास नस्ल को सुरक्षित रखने में मदद करेंगे.
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