भारत कृषि एक प्रधान देश है. कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मूल आधार है. भारत को लगभग 65-70 प्रतिशत आबादी प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन इस बदलते परिवेश में जहाँ बढ़ती आबादी के कारण कृषि जोत सिकुडती जा रही है. वहीं, बदलती हुई जलवायुवीय परिस्थितियों ने कृषि स्थति को और भयावाह बना दिया है. आने वाला समय, कृषि, किसान और देश के लिए बहुत चुनौतीपूर्ण होने वाला है.
भविष्य में कृषि के समक्ष आने वाली चुनौतियां अग्रलिखित है
बहुमूल्य पादप जीवद्रव्य का अपक्षय: आज देश में अत्यंत दुर्लभ पादप प्रजातियाँ या तो विलुप्त हो गयी है या विलुप्त होने के कगार पर हैं या संकटग्रस्त है. भारत की बढ़ी हुई आबादी व मानव दखल ने पादप जीवद्रव्य को अपूर्णीय क्षति पहुँचाया है. भारत एक पादप जैव-विविधतों का केंद है, लेकिन संरक्षित स्थानों पर भी जंगली पादप प्रजातियों के अपक्षय के कारण फसलों, मसालों, सुगधित पौधों व औषधियों पौधो को काफी नुकसान पहुँचाया है, जिसके कारण ये जंगली प्रजातियो जिनमें अनेको लक्षण थे. जो कि किस्मों के सुधार में काम आते है उनको खोज पाना मुष्किल हो गया है. इसी प्रकार इनमें प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से ऐसे अनेको गुण थे, जो कि मनुष्य के लिए बेशकीमती थे. जो वो लगभग विलुप्त हो गये हैं. जो आने वाले समय में भारत के लिए बहुत संकट ला सकता है, क्योंकि तब इन बेशकीमती गुणों वाली पादप प्रजातियां मनुष्य के कल्याण के लिए उपलब्ध नहीं रहेगी.
भूमिजोत का आकार छोटा होनाः भारत में आज कृषि जोत का आकार छोटा हो गया है. भारत में 80 प्रतिशत ऐसे किसान है, जिनके पास 2 हेक्टेयर से कम जमीन है और उसमें से भी 90 प्रतिशत ऐसे किसान है, जो फसलों के लिए मानसून की वर्षा पर निर्भर है. जलवायु परिर्वतन ने मानसून को बुरी तरह से प्रभावित किया है. अतः भारत में बढती आबादी, छोटे होते हुए कृषि जोत का आकार व मानसून के कारण आज किसानों के लिए खेती घाटे का सौदा हो गया है जिसमें लागत ज्यादा व पैदावार कम या नही के बराबर जैसा है. अतः आज किसान कृषि व्यवसाय को छोड़कर अन्य व्यवसायों की ओर पलायन कर रहा है. अतः कृषि की ऐसी स्थिति ने न केवल भारत में खाद्य सुरक्षा की स्थति को खतरे में डाल दिया है, बल्कि बेरोजगारी दर भी बढा दी है, जो कि भविष्य में ओर भयानक होने वाली है.
फसलों की दीप्ति कलिता का परिवर्तन होनाः सामान्यतया खरीफ फसलों में पुष्पन होने व बीज बनने के लिए प्रकाश की अवधि कम होनी चाहिए. इसी प्रकार रबी फसलों में पुष्पन व बीज बनने के लिए लम्बी अवधि तक प्रकाश की आवश्यकता होती है. मगर जलवायुवीय परिवर्तन ने वातावरण के तापमान व दीप्तिकालिता दोनों को प्रभावित किया है. जिसके कारण पौधों का विकास, उनमें पुष्प आने की प्रक्रिया व परिपक्वता पर असर पड़ा है. जिसके कारण रबी व खरीफ फसलों की पैदावार क्षमता भी प्रभावित हुई है व आने वाले समय में बढते तापमान की वजह से परिस्थतियाँ और भी जटिल हो जायेगी. रबा व खरीफ मौसम में उगने वाली फसलों के अंकुरित होने, वानस्पतिक वृद्धि होने, पुष्प उत्पन्न होने व परिस्थितियां होने के लिए उपयुक्त तापमान व दीप्तिकालिता की आवश्यकता होती है, जो कि भविष्य में तेजी से जलवायुवीय परिवर्तन होने से बुरी तरह से प्रभावित होगी.
बाढ़ व सूखे की परिस्थतियाँ: कृषि मुख्यतया जलवायु पर निर्भर करती है. जलवायुवीय परिवर्तन के कारण देश में सूखा ग्रसित क्षेत्र तेजी से बढते जा रहे हैं व भूमिगत जल का भी तेजी से दोहन हुआ है. इसी प्रकार भारत में तेजी से अचानक बाढ़ आने की परिस्थितियों भी बढी है. अतः भारत में पडने वाले सूखे, बढते सूखाग्रस्त क्षेत्रों व बाढ़ की परिस्थितियों ने देश के लाखों किसानों को जिनकी आजिविका का मुख्य साधन कृषि है, उनको खतरे में डाल दिया है. अत्यधिक सूखे के कारण भूमि बंजर बनती जा रही है.
बढती ऊष्मा- ऐसा अनुमान है कि आने वाले 30-50 वर्षो में पृथ्वी का तापमान कम से कम 1 डिग्री सेल्सियस बढ जायेगा. जिसके कारण राते गर्म हो जायेगी. गर्म हवाएं व तरगें बहेंगी, जो कि रबी मौसम में पाला पडने की संभावनाओं को कम कर देगा. जिससे फसलें प्रभावित होंगी. इसी प्रकार अत्याधिक उष्मा के कारण भूमि का भी अपरदन होगा. भूमि बंजर होती जायेगी तथा भूमि में उपस्थित मृदा को अपघटित करने वाले सुक्ष्मजीव भी बुरी तरह से प्रभावित होगे.
बेरोजगारी दर में वृद्धि- भारत एक कृषि प्रधान देश है, क्योंकि भारत की 65-70 प्रतिशत व अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन बदली हुई जलवायुवीय परिस्थितियों के कारण कृषि के प्रभावित होने की वजह से कृषि से प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रूप से जुड़े लोगों का व्यवसाय भी बुरी तरह से प्रभावित हुआ है. आने वाले समय में बेरोजगारी दर में वृद्धि भयावह होने वाली है जो देश में अराजकता व हिंसा को बढ़ावा दे सकती है.
भारतीय अर्थव्यवस्था पर प्रभाव - भारतीय अर्थव्यवस्था मुख्य रूप से कृषि पर निर्भर है, लेकिन घटते कृषि जोत का आकार बढ़ती जनसंख्या व जलवायु परिवर्तन ने भारतीय अर्थव्यवस्था को काफी प्रभावित किया है. जलवायु परिवर्तन का प्रतिवर्ष 4-9 प्रतिशत कृषि पर प्रभाव पड़ रहा है. कृषि का भारत की जी.डी.पी. में 15 प्रतिषत योगदान है, लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण भारत की जी.डी.पी. में 1.5 प्रतिशत की हानि हुई है, जो भविष्य में ओर कम हो जायेगी. एक अनुमान के अनुसार, 2030 तक जलवायु परिवर्तन के कारण गेहूँ व चावल की पैदावर 6-10 प्रतिशत तक कम हो जायेगी.
अतः भविष्य में भारत कृषि के समक्ष खाद्य सुरक्षा, बेरोजगारी दर, बाढ़, सूखा इत्यादि अनेकों चुनौतियाँ है.
डॉ. शेषनाथ मिश्रा एवं डॉ. लोकेश गौड़ (सहायक प्रोफेसर)
फेकल्टी औफ ऐगी्रकल्चर सांईसेज़
मन्दसौर विश्वविद्यालय, मन्दसौर, 458001
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