वैसे तो आयुर्वेदिक दवा और हर्बल प्रोडक्टस तैयार करने से लेकर विभिन्न तरह के कॉस्मेटिक्स और परफ्यूम आदि चीजें बनाने में एलोवेरा की धाक पहले से ही है. लेकिन अब कोरोना काल में सैनिटैइजर बनाने में भी इसका इसका इस्तेमाल होने लगा है. सैनिटाइजर की मांग इतनी तेजी से बढ़ी है कि बाजार में इसकी कमी महसूस होने लगी है. बढ़ती मांग को पूरा करने के लिए कई कंपनियां सैनिटाइजर का उत्पादन बढ़ाने में जुट गई हैं. आत्म निर्भर भारत अभियान को सफल बनाने के लिए कई उद्यमियों ने भी स्टार्टअप के रूप में सैनिटाइजर तैयार करने का काम शुरू कर दिया है. जाहिर है इसका उत्पादन बढ़ाने के लिए कच्चे माल की भी अधिक से अधिक जरूरत पड़ेगी. सैनिटाइजर तैयार करने के लिए अब एलोबेरा भी कच्चे माल के रूप में इस्तेमाल होने लगा है और इसलिए इसकी मांग और बढ़ने लगी है. ऐसी स्थिति में किसान परंपरागत कृषि के साथ एलोवेरा की खेती कर अधिक से अधिक मुनाफा कमा सकते हैं.
मैं आपकों यहां एलोवेरा के पत्ते का इस्तेमाल कर सैनिटाइजर तैयार करने का उदाहरण दूंगा ताकि इस उद्देश्य से अगर आप खेती करना चाहतें हैं तो इसके लिए आपकी तैयारी अच्छी तरह से हो जाएगी. पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले के सिउड़ी में बागानों में पैदा हुए एलोवेरा का इस्तेमाल सैनिटाइजर तैयार करने में किया जा रहा है. जिला प्रशासन ने किसानों से 21 क्विंटल एलोवेरा खरीद कर उसका इस्तेमाल सैनिटाइजर तैयार करने में किया है. अच्छी बात यह है कि स्वयं सहायता समूह द्वारा की गई एलोवेरा की खेती की अच्छी कीमत भी मिली है. वीरभूम जिला प्रशासन ने सिउड़ी के किसानों द्वारा उगाए एलोवेरा के पौधे से तैयार सैनिटाइजर की खपत सरकारी दफ्तरों में करने की व्यवस्था की है. वीरभूम में 15 बीघा जमीन में एलोबेरा के बागान तैयार किए गए हैं जिसमें करीब 40 हजार एलोवेरा के पौधे रोपे गए हैं. अब आप समझ गए होंगे कि एलोवेरा की खेती करने के बाद उसे बिक्री करने के लिए आपको सरकारी सहयोग से बाजार भी उपलब्ध हो जाएंगे.
प्रत्येक राज्य की सरकारें कृषि उपज की खपत करने में सहयोग करती है. इसलिए एलोवेरा की व्यवसायिक खेती करने से पहले आपको अपने जिले के निकटवर्ती कृषि केंद्र से संपर्क कर लेना ज्यादा उचित होगा. इसलिए कि एलोवेरा एक औषधीय पौधा है. किसानों को को आमतौर पर व्यवसायिक एजेंसियों/ कंपनियों के साथ करार कर एलोवेरा की खेती करने की सलाह दी जाती है ताकि उनका उत्पाद खेत से निकलते ही बिक जाए और उन्हें फसल की उचित कीमत प्राप्त हो जाए. लेकिन कोरोना से उत्पन्न परिस्थिति में किसान इसकी खेती करने के लिए अपने जिले के सरकारी कृषि केंद्र या कृषि विज्ञान केंद्र से संपर्क कर सकते हैं. कृषि विज्ञान केंद्र से आपको एलोवेरा की खेती पर विधिवत प्रशिक्षण की भी जानकारी मिल जाएगी. आत्म निर्भर भारत अभियान के तहत तहत सरकार किसानों को व्यवसायिक खेती के लिए प्रोत्साहित कर रही है. खेती करने की विधिः गर्म जलवायु व रेतीली मिट्ट वाले क्षेत्र में एलोवेरा की पैदावार अच्छी होती है. देश के अधिकांश हिस्सों में एलोवेरा की खेती होती है. लेकिन विशेष रूप से राजस्थान, गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और पश्चिम बंगाल में रेतिली भूमि पर इसकी पैदावार अच्छी होती है. इसके लिए ज्यादा पानी की जरूरत नहीं पड़ती है.
इसलिए एलोवेरा का पौधा रोपने के लिए ऊंची जमीन का चयन करना चाहिए जहां पानी और नमी की मात्रा न हो. जून-जुलाई का समय एलोवेरा की खेती के लिए अच्छा माना जाता है. इसलिए मानसून के पहले ही खेत की जोताई कर देनी चाहिए. 12-15 टन वैजिवक खाद मिलाकर दोबारा भी खेत की जोताई कर देनी चाहिए. गोबर के खाद के साथ उसमें यूरिया, फास्फोरस, पोटाश भी समान रूप से डालना चाहिए. इसके बाद खेत में 50×50 सेमी. की दूरी पर पर क्यारियां बना लेनी पड़ती है. एलोवेरा के पौधों को इन्हीं क्योरियों में रोप दिया जाता है. एक हेक्टेयर जमीन में 50 हजार रुपए की लागत से कम से कम पांच वर्ष तक लगातार 8-10 लाख रुपए की कमाई हो सकती है.
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