कृषि कानून (Farmer's Bill) समाप्त होने के बाद भी किसानों को आश्वस्त नहीं किया गया है. अब वे चाहते हैं कि सरकार एमएसपी (MSP) को कानूनी समर्थन दे. अगर दूसरे शब्दों में कहा जाए, तो वे एक ऐसे कानून की मांग कर रहे हैं, जिसमें किसी के लिए भी एमएसपी से कम कीमत पर किसानों से खरीदारी करना गैरकानूनी हो.
किसानों का धरना है जारी (Farmer's Protest is still going on)
कृषि कानूनों के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध शुरू हो गया था, क्योंकि किसानों ने सरकार द्वारा उनके द्वारा उत्पादित विभिन्न फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की घोषणा अंत की आशंका जताई थी. विरोध तब भी जारी रहा जब मोदी सरकार (Modi Government) ने बार-बार स्पष्ट किया कि इसे वापस नहीं लिया जाएगा और पिछले 12 महीनों में एमएसपी पर खरीद में वृद्धि हुई है. बता दें कि अभी आंदोलन सिर्फ रोका गया है ना की खत्म किया गया है.
कम दाम पर फसल बेचने पर किसान क्यों हैं मजबूर (Why are farmers forced to sell crops at low prices?)
प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एम.एस.स्वामीनाथन (Agricultural Scientist MS Swaminathan) ने 15 साल पहले ही बताया था कि खेती भारत में सबसे जोखिम भरा पेशा था. यह आज भी सच है. किसान प्रकृति की दया पर बने हुए हैं - सूखा और बाढ़ और उनकी घटनाएं केवल जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ी हैं. फसल बीमा ने इस जोखिम को केवल आंशिक रूप से कम किया है.
किसानों को पर्याप्त दाम ना मिलने का डर ही एमएसपी पर लटकने को मजबूर कर रहा है. एक किसान को लाभकारी मूल्य मिलने की संभावना बहुत कम है. इसका कारण यह है कि कृषि बाजार अपूर्ण हैं. बिचौलिए एक कार्टेल बनाते हैं और कीमतों को कम करते हैं, क्योंकि किसानों के पास अपनी उपज बेचने के लिए कई सारे विकल्प नहीं होते हैं. वे आम तौर पर स्थानीय मंडी से बंधे होते हैं.
एमएसपी का इतिहास (History of MSP)
एमएसपी की घोषणा पहली बार 1966-67 में की गई थी. यह वह समय था, जब भारत गंभीर खाद्य कमी का सामना कर रहा था और हरित क्रांति जड़ें जमा रही थी. सरकार चाहती थी कि किसान गेहूं और धान की अधिक उपज देने वाली किस्में लगाएं. उन्हें ऐसे प्रेरित करने के लिए दो फसलों पर न्यूनतम मूल्य की पेशकश करना शुरू कर दिया गया था.
पांच दशक बाद, भारत न केवल खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया है, बल्कि अधिशेष के प्रबंधन के लिए संघर्ष कर रहा है. हालांकि, एमएसपी की प्रणाली जारी है और तब से इसे 23 फसलों तक बढ़ा दिया गया है. बता दें कि वित्त वर्ष 21 में 2.1 करोड़ लाभार्थी थे.
किसानों की भूमिका (Role of farmers)
इस स्थिति के लिए किसान भी जिम्मेदार है. उन्होंने अपनी कृषि पद्धतियों का आधुनिकीकरण नहीं किया है. इससे उनकी लागत अधिक और उपज कम रहती है. इसमें कोई योजना शामिल नहीं है कि वे प्रत्येक मौसम में किस फसल को उगाएंगे.
देश में किसानों का एक बड़ा हिस्सा इस प्रकार गरीब बना हुआ है, जो अक्सर एक दुष्चक्र में फंस जाता है और कुछ दुर्भाग्यपूर्ण लोग अपनी जान लेने में असमर्थ होते हैं. इन परिस्थितियों में, एमएसपी उन्हें कुछ बचाए रखने के लिए उम्मीद देता है.
23 फसलों पर लागू होती है एमएसपी (MSP is applicable on 23 crops)
एमएसपी सभी फसलों पर लागू नहीं होता, बल्कि सिर्फ 23 पर लागू होता है. इसके अलावा, फल, सब्जियां और पशुधन, जो भारत के कृषि, वानिकी और मत्स्य उत्पादन का 45 प्रतिशत हिस्सा हैं, इसके अंतर्गत नहीं आते हैं. दूध उत्पादन जो धान और गेहूं के संयुक्त उत्पादन से अधिक है, वह भी एमएसपी से बाहर है. और जहां एमएसपी लागू होता है, वहां सभी किसानों को इसका लाभ नहीं मिलता है.
केंद्र एमएसपी पर केवल आठ फसलों की खरीद करता है और वह भी देश भर के चुनिंदा क्षेत्रों में हैं. देश के कई हिस्सों में 23 फसलों के लिए कीमतें एमएसपी से काफी नीचे हैं. कोई यह तर्क दे सकता है कि कानूनी समर्थन इस समस्या से निपटेगा लेकिन यह भानुमती का पिटारा न जाने कब खुलेगा.
क्या हो सकता है समाधान (What can be the solution)
बेहतर तरीका यह है कि किसानों के लिए अपनी प्रक्रिया को उन्नत करने और अधिक आय अर्जित करने के लिए परिस्तिथियां तैयार की जाये.
उन्हें अपनी उपज किसी को भी बेचने और बिचौलियों के चंगुल से बचने के लिए स्वतंत्र होना चाहिए. उन्हें खरीदारों के साथ अनुबंध खेती में प्रवेश करने में सक्षम होना चाहिए जो उन्हें आधुनिकीकरण में भी मदद करेंगे. मंडियों को कॉरपोरेट्स से प्रतिस्पर्धा करनी चाहिए ताकि किसानों को बेहतर डील मिल सके.
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