5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में कर्जमाफ़ी के मुद्दे से मिले नतीजों से यह साफ हो गया हैं कि ये मुद्दा आगामी लोकसभा चुनाव में भी बड़े मुद्दों में से एक होगा. राजनीतिक दलों का ये चुनावी मुद्दा कारगर साबित हो पाएगा या नहीं यह तो आने वाला वक्त बताएगा. गौरतलब है कि जिन पांच राज्यों पर पूरे कृषि कर्ज का 50 फीसद बाकी है उन्हीं राज्यों में लोकसभा की 40 फीसद सीटें हैं.
राज्य |
लोकसभा सीटें |
कृषि कर्ज में हिस्सा (फीसद में) |
उत्तर प्रदेश |
80 |
11.3 |
तमिलनाडु |
39 |
11.4 |
महाराष्ट्र |
48 |
9.0 |
कर्नाटक |
28 |
8.7 |
आंध्र प्रदेश |
25 |
8.5 |
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में लोकसभा की 220 सीटें हैं. किसान कर्ज का तकरीबन 50 फीसद हिस्सा इन्हीं राज्यों में बाकी है. हालांकि इन पांच राज्यों में राजनीतिक दलों का स्वरूप और रुख कुछ ऐसा है कि यहां कुछ भी कहना मुश्किल है कि जनता किस राजनीतिक दल का समर्थन करेंगी. कुछ राज्यों में तो लड़ाई ही ऐसे दलों के बीच है जो लगभग एक जैसे मुद्दे पर ही मैदान में उतरेंगी. फिर भी किसान कर्जमाफी को लेकर जिस तरह हर दल में हलचल बढ़ने लगी है उससे यह साफ होने लगा है कि इस मुद्दे के प्रभाव को लेकर हर कोई आशंकित है.
आंध्र प्रदेश और तमिलनाडु में तो भाजपा और कांग्रेस, दोनों ही शीर्ष राजनीतिक दलों की कोई खास पकड़ नहीं है. ऐसे में ये गठबंधन के सहारे ही इन राज्यों में चुनाव लड़ेंगे. उत्तर प्रदेश, महाराष्ट्र और कर्नाटक में पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा ने बड़ा अंतर बनाया था. इन पांच राज्यों की 220 सीटों में से भाजपा ने 114 पर कब्जा किया था. लेकिन एक दूसरा तथ्य यह है कि वर्ष 2008 में यूपीए की तरफ से किसानों के कर्ज माफ होने के बाद इन पांचों राज्यों में कांग्रेस 85 सीटें जीतने में सफल रही थी और काग्रेस ने दोबारा सत्ता में वापसी की थी.
महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, उत्तर प्रदेश और तमिलनाडु में से तीन राज्य -आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और महाराष्ट्र में किसानों की समस्या अभी सबसे ज्यादा गंभीर मानी जा रही है. आंध्र प्रदेश में विधान सभा चुनाव लोकसभा के साथ ही होंगे. आंध्र प्रदेश के अलावा ओडिशा, सिक्किम व अरुणाचल प्रदेश के विधान सभा चुनाव भी लोकसभा के साथ होने हैं. ओडिशा में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष की ओर से हाल ही में किसानों का कर्ज माफ करने का वादा किया गया है. इससे यह स्पष्ट है कि वहां के विधानसभा चुनाव में भाजपा के घोषणा पत्र में इसे शामिल भी किया जाएगा.
नीति आयोग के सदस्य और कृषि मामलों के विशेषज्ञ रमेश चंद ने हाल ही में कहा है कि ‘जिन राज्यों में कृषि कर्ज़ माफ़ किया गया हैं उससे राज्यों के मात्र 10 से 15 फीसद किसानों को ही फायदा हुआ हैं क्योंकि, इन राज्यों में कुछ ही किसान संस्थागत कर्ज हासिल कर पाते हैं. कई राज्यों में 25 प्रतिशत किसान भी संस्थागत कर्ज हासिल नहीं कर पाते. उन्होंने कहा कि जब अलग-अलग राज्यों में संस्थागत कर्ज लेने वाले किसानों के अनुपात में इतना अंतर है तो कृषि कर्जमाफी पर इतनी धनराशि खर्च करना सार्थक नहीं है.
विवेक राय, कृषि जागरण
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