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किसान कृषि कार्यों में बेधड़क ले रहे ड्रोन का साथ

कृषि में पैदावार बढाने तथा कृषि लागत को कम करने के लिए अब ड्रोन के माध्यम से अति उच्च क्षमता के कैमरों का उपयोग किया जा रहा है जिससे प्रकाश की अलग तरंगों को दर्शाने वाले उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें ली जा रही हैं जिससे समय से काफी पहले ही फसलों में होने वाली बीमारियों, कीड़ों के हमलों, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आदि का पता लगा लिया जाता है ।

नयी दिल्ली: कृषि में पैदावार बढाने तथा कृषि लागत को कम करने के लिए अब ड्रोन के माध्यम से अति उच्च क्षमता के कैमरों का उपयोग किया जा रहा है जिससे प्रकाश की अलग तरंगों को दर्शाने वाले उच्च गुणवत्ता की तस्वीरें ली जा रही हैं जिससे समय से काफी पहले ही फसलों में होने वाली बीमारियों, कीड़ों के हमलों, सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी आदि का पता लगा लिया जाता है ।

इस आधुनिक तकनीक के माध्यम से समय से पहले फसलों और जमीन की स्थिति की सटीक जानकारी किसानों को मिल जाती है जिससे वे जितनी जरुरत है, ठीक उसी अनुपात में उर्वरक तथा रसायनों का उपयोग करते हैं । इससे  उर्वरकों और रसायनों के उपयोग पर खर्च की जाने वाली राशि में 50 प्रतिशत तक की बचत होती है । कीट और बीमारियों से फसलों के उत्पादन में 20 प्रतिशत तक की कमी होती है जिसे भी कम किया जा सकेगा तथा फसलों के पूरी तरह से पक कर तैयार होने के पूर्व ही कटाई करने से होने वाले नुकसान से भी बचा जा सकेगा ।

महाराष्ट्र में गन्ना , अनार और अंगूर तथा कर्नाटक के गुलबर्गा में दलहनों की खेती करने वाले किसान दूर संवेदी सूचना सेवा का उपयोग कर रहे हैं । पश्चिम बंगाल के अलीपुरद्वार में चाय की भरपूर पैदावार लेने तथा उत्तर प्रदेश के बाराबंकी में मैंथा की खेती करने वाले किसान इस प्रौद्योगिकी का उपयोग कर चुके हैं। इस कंपनी ने सरसों, सूरजमुखी, मूंगफली और अरंडी की फसलों में अनुसंधान एवं विकास के लिए भारतीय तिलहन अनुसंधान संस्थान हैदराबाद के साथ इसे भागीदारी में बनाया है।

तकनीकि ने प्रकाश की अलग-अलग तरंगों को दर्शाने वाली उच्च गुणवत्ता वाली तस्वीरों के माध्यम से मौसमी बदलाव तथा फसलों के पौधों की रचना के अध्ययन के लिए अलग से अनुसंधान एवं विकास केन्द्र बनाया है । दुनिया भर में कृषि के क्षेत्र में बड़े पैमाने पर दूर संवेदी प्रद्योगिकी का उपयोग किया जाता है ताकि प्राकृतिक आपदाओं और बीमारियों से होने वाले नुकसान से बचा जा सके । इसके अलावा फसलों के विकास की निगरानी एवं उपज के आकलन के लिए भी इसका इस्तेमाल होता है ।

वर्ष 2015 में पंजाब के मालवा क्षेत्र में सफेद मक्खी के प्रकोप के कारण कपास की फसल का 60 प्रतिशत तक नुकसान हुआ था । करीब 6.75 लाख एकड़ में इस फसल को नुकसान हुआ था । यह नुकसान केवल सफेद मक्खी के कारण ही नहीं हुआ था बल्कि बाजार में नकली कीटनाशकों के भरमार होने तथा जाने अनजाने किसानों के इसका छिड़काव करने के कारण भी हुआ था ।

 

English Summary: Farmers engaged in drunken work in the field of agriculture Published on: 23 October 2017, 01:30 AM IST

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