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किसान दिवस 2025: भारत के छोटी जोत वाले किसान कैसे जलवायु लचीलेपन को दे रहे हैं बढ़ावा

इस लेख में भारत के छोटी जोत वाले किसानों की भूमिका को रेखांकित किया गया है, जो जलवायु परिवर्तन की चुनौतियों के बीच टिकाऊ खेती, नवाचार और वैज्ञानिक तकनीकों के माध्यम से खाद्य सुरक्षा, आय वृद्धि और पर्यावरण संरक्षण को मजबूती दे रहे हैं, और कृषि को जलवायु-लचीला बना रहे हैं.

KJ Staff

हर साल 23 दिसंबर को भारत अपने किसानों के सम्मान में किसान दिवस मनाता है. यह दिन पांचवें प्रधानमंत्री और किसानों के अधिकारों के आजीवन समर्थक चौधरी चरण सिंह की जयंती के उपलक्ष्य में मनाया जाता है. इस वर्ष का 25वां किसान दिवस केवल एक श्रद्धांजलि  नहीं है - बल्कि ये भारत के उन छोटी जोत वाले किसानों की मेहनत और क्षमता का उत्सव हैं जिन्होंने सफलतापूर्वक भारत को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा खाद्य उत्पादक बनाया है.

भूमि के छोटे टुकड़ों और जलवायु की अनिश्चितताओं के बावजूद, छोटे किसानों ने कृषि विकास को गति दी है, ग्रामीण अर्थव्यवस्थाओं को मजबूत किया है और अरबों लोगों के लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है. आज, वे केवल उत्पादक नहीं हैं, बल्कि वे नवाचारी हैं, जो टिकाऊ प्रथाओं को अपना रहे हैं और भविष्य के लिए लचीलापन बना रहे हैं. उनका प्रदर्शन वास्तव में प्रेरणादायक है.

भारत ने कृषि में उल्लेखनीय प्रगति की है, लेकिन जलवायु परिवर्तन चुनौतियां पैदा कर रहा है. पिछले चार दशकों में, 30% जिलों ने बार-बार कम बारिश का सामना किया, जबकि 38% ने अत्यधिक वर्षा झेली. इन बदलावों के कारण दक्षिण भारत में चावल की उपज में 8% और पूर्वी भारत में 5% की कमी आई है. जलवायु अनुमान आगे और अधिक गर्मी और अनियमित मौसम की ओर इशारा करते हैं, जिससे लचीलापन  महत्वपूर्ण हो जाता है.

खेतों को जलवायु समाधानों में बदलना

भारत ने लगभग 30 मान्यता प्राप्त सतत कृषि पद्धतियों (एसएपी) की पहचान की है. फसल चक्र, एग्रो फॉरेस्ट्री, वर्षा जल संचयन, एकीकृत कीट प्रबंधन और 'वैकल्पिक गीलापन और सुखाना' (एडब्ल्यूडी) जैसी महत्वपूर्ण पद्धतियां 5 से 30 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र को कवर करती हैं.

ऊर्जा, पर्यावरण और जल परिषद (सीईईडब्ल्यू) के शोध से पता चलता है कि एसएपी का उपयोग करने वाले किसानों की आय अधिक है, मिट्टी का स्वास्थ्य बेहतर है और पोषण सुरक्षा में सुधार हुआ है. ये पद्धतियां न्यूनतम जुताई और बहु-फसल प्रणाली के माध्यम से जलवायु लचीलापन बनाती हैं, जो एक स्वस्थ पारिस्थितिकी तंत्र का निर्माण करती हैं.

दुनिया भर में, किसान अपने खेतों को जलवायु समाधानों में बदल रहे हैं - पानी का संरक्षण कर रहे हैं, मिट्टी के स्वास्थ्य को पुनर्जीवित कर रहे हैं और उत्सर्जन को कम कर रहे हैं. 'नो-टिल' खेती और कृषि वानिकी जैसी तकनीकें वातावरण से कार्बन डाइऑक्साइड को मिट्टी में खींचती हैं, जिससे विशाल कार्बन सिंक बनते हैं. धान की खेती में, वैकल्पिक गीलापन और सुखाने के तरीके पानी की बचत के साथ-साथ मीथेन उत्सर्जन को काफी कम करते हैं. भारत लगभग 50 मिलियन हेक्टेयर में चावल की खेती करता है, जो वैश्विक क्षेत्र का लगभग एक-तिहाई है.

कम मीथेन वाले चावल उत्पादन पर केंद्रित कार्यक्रम किसानों को पारंपरिक 120 दिनों की निरंतर बाढ़ के बजाय 14-21 दिनों के सुखाने के अंतराल पर शिफ्ट होने में मदद कर रहे हैं. इससे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में लगभग 23% की कमी, जल उपयोग दक्षता में 40% सुधार और उपज व लाभप्रदता दोनों में 5% की वृद्धि हुई है.

गन्ने और मकई जैसी फसलों से बने बायोफ्यूल जीवाश्म ईंधन पर निर्भरता को कम करते हैं. खेती में वैश्विक मीठे पानी का 70% से अधिक उपयोग होता है, लेकिन ड्रिप सिंचाई और वर्षा जल संचयन जैसे तरीके अक्षम जल उपयोग को 60% तक कम कर सकते हैं.

परिवर्तन की कहानियां

आंध्र प्रदेश में, बुलीराजू ने पारंपरिक धान की खेती से हटकर जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को अपनाया. उन्होंने पानी का कुशलतापूर्वक उपयोग करना और वैकल्पिक गीलापन एवं सुखाने के तरीकों के माध्यम से अपने खेतों के जलवायु प्रभाव को कम करना सीखा.

एक महिला किसान सत्यवती ने आधुनिक कृषि विज्ञान और प्रशिक्षण को अपनाया, जिसने उनके दृष्टिकोण को बदल दिया और उनके गाँव के अन्य लोगों को प्रेरित किया. उनका अनुभव दिखाता है कि सशक्तिकरण व्यक्तिगत खेतों से पूरे समुदायों तक कैसे फैलता है.

किसानों को 'क्लाइमेट हीरो' के रूप में पहचानना

ब्राजील के बेलेम में 30वें संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP30) से पहले, UPL ने #AFarmerCan अभियान शुरू किया, जिसका शीर्षक है 'वह नायक जिसकी आपको ज़रूरत है पर आप जानते नहीं'. यह अभियान किसानों को जलवायु नायकों के रूप में सम्मानित करता है और विश्व नेताओं से उनके योगदान को पहचानने का आह्वान करता है. किसान लचीलेपन को मजबूत करने के लिए एक चार-स्तंभ प्रोत्साहन ढांचे का प्रस्ताव दिया गया है:

भुगतान: जलवायु-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए किसानों को पुरस्कृत करें.

सुरक्षा: जोखिमों से बचाने के लिए सब्सिडी और बीमा प्रदान करें.

खरीद: प्रमाणित टिकाऊ उत्पादों के लिए सार्वजनिक बाजारों तक किसानों की पहुंच मजबूत करें.

प्रोत्साहन: डिजिटल उपकरण, मृदा स्वास्थ्य डेटा और ज्ञान प्रशिक्षण का विस्तार करें.

आगे की राह

लचीले किसान मतलब स्वस्थ लोग. स्वस्थ लोग मतलब मजबूत राष्ट्र. जब राष्ट्र समावेशी और टिकाऊ कृषि नीतियों में निवेश करते हैं, तो वे ऐसे लचीले कृषि तंत्र का निर्माण करते हैं जहाँ लोग और प्रकृति दोनों फलते-फूलते हैं.

जैसे ही हम 25वां किसान दिवस मना रहे हैं, आइए हम अपने किसानों का सम्मान न केवल उनके उत्पादन के लिए करें, बल्कि एक खाद्य-सुरक्षित और जलवायु-लचीले भारत के निर्माण के लिए भी करें.

लेखक: जय श्रॉफ, अध्यक्ष और ग्रुप सीईओ, यूपीएल ग्रुप

English Summary: Farmers day 2025 how indias smallholder farmers are strengthening climate resilience Published on: 29 December 2025, 06:41 PM IST

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