देश में किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ एक साल से ज्यादा तक चले किसान आंदोलन में पंजाब की अहम भूमिका रही थी, लेकिन यह अहम भूमिका वोटों में तब्दील नहीं हुई. हालांकि आप सब लोग जानते हैं. कि पंजाब में आधे से ज्यादा यानि 75 प्रतिशत से अधिक आबादी खेती से जुड़ी हुई है.
पंजाब में साल 2022 का चुनाव किसानों के मुद्दे इर्द-गिर्द ही लड़े जाने की उम्मीद जताई जा रही थी. किसान आंदोलन के समय सभी सियासी राजनेता कृषि कानून के विरोध में किसान भाइयों के हमदर्द में हाथ खड़े थे, लेकिन जैसे ही पंजाब में चुनाव का माहौल बना, तो सभी हमदर्द राजनेताओं ने अपनी मुंह मोड़ लिया. इसी कारण से किसान भाइयों ने अपनी एक पार्टी का भी निर्माण किया. लेकिन उन्हें चुनाव में कोई खास सफलता नहीं मिली. जैसे कि आप सब लोग जानते हैं 14 महीने चले किसान आंदोलन ने विधानसभा चुनाव में खेती-किसानी बड़ा मुद्दा बनेगा. वहीं किसानों के समर्थन में खड़े अन्नदाताओं की पार्टी का पंजाब ने नहीं दिया कोई साथ. ऐसे में किसान बेहद उदास हैं.
किसानों को पूरी तरह से भुला दिया गया ( The farmers were completely forgotten)
आपको बता दें कि किसान आंदोलन के समय लगभग 700 से अधिक किसानों की मौत हुई थी और कई संपत्तियों को नुकसान पहुंचा था. जिसके चलते कई राजनीतिक व विपक्षी पार्टी ने केंद्र सरकार पर निशाना साधा और कई सवाल-जवाब किए. वहीं जब भारत सरकार ने किसानों की भलाई के लिए कृषि कानून के तीनों बिलों को जब रद्द करने का फैसला लिया, तो सभी किसान भाइयों में एक खुशी का माहौल रहा और कई राजनेताओं ने किसानों का समर्थन किया.
लेकिन वहीं जब 4 महीने के बाद हो रहे विधानसभा चुनाव में पूरी तरह से भुला दिया गया. देखा जाए तो राजनेता किसानों की भलाई के लिए बस कृषि कानून रद्द तक थे. जैसे ही कृषि कानून हटा तो राजनेता भी हट गए.
117 सीटों में से 77 सीटों पर किसानों का दबदबा (Farmers dominate 77 out of 117 seats)
पंजाब में विधानसभा की कुल 117 सीटों में से 77 सीटें ऐसी थीं, जिन पर किसानों का दबदबा था. पंजाब में यह भी देखा गया था कि वहां पर बस किसानों की सत्ता का ही दबदबा है, लेकिन विधानसभा के मतगणना ने सभी अनुमानों व भरोसे को ध्वस्त कर दिया. ऐसे में पंजाब के किसानों पर निराशा को साफ देखा जा सकता हैं.
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