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लाख रुपए में मशीन खरीदकर गोबर की लकड़ी बनाकर कमाएं शानदार मुनाफा!

भारत गावों का देश है. वहीं, यहां के 80 प्रतिशत लोग गावों में रहते हैं और खेती -किसानी ही उनके रोजगार का जरिया है. हर एक किसान के घर में पशुधन होता है जोकि उनके एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही रहता है. दूध तो अपने घर के लिए और पड़ोस में जिसे चाहिए, काम आ जाता है, लेक़िन गोबर जो इस पशुधन से आता है, उससे निपटने हेतु, घर आँगन की लिपाई, और जलाने के लिए उपले. कहीं कहीं तो गोबर गैस से बिजली एवं रसोई में खाना भी पकाया जाता है. गोबर से खाद भी बनती है, जो फसलों के लिए काफ़ी मुफीद होती है.

चन्दर मोहन
Cow Dung
Cow Dung

भारत गावों का देश है. वहीं, यहां के 80 प्रतिशत लोग गावों में रहते हैं और खेती -किसानी ही उनके रोजगार का जरिया है. हर एक किसान के घर में पशुधन होता है जोकि उनके एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही रहता है. दूध तो अपने घर के लिए और पड़ोस में जिसे चाहिए, काम आ जाता है, लेक़िन गोबर जो इस पशुधन से आता है, उससे निपटने हेतु, घर आँगन की लिपाई, और जलाने के लिए उपले. कहीं कहीं तो गोबर गैस से बिजली एवं रसोई में खाना भी पकाया जाता है. गोबर से खाद भी बनती है, जो फसलों के लिए काफ़ी मुफीद होती है.

हमारे देश में गौवंशीय पशुधन की संख्या 192.49 मिलियन है. इतना सारा पशुधन होने पर भी किसान गरीबी में ही गुजर बसर करता आ रहा है. प्रधानमंत्री मोदी ज़ी ने भी आह्वान किया था कि 2022 के अंत तक किसानों की आय को दोगुना करना है.

यह पशुधन ही है जिससे ऐसा संभव है, जिसमें डेयरी और गाय के गोबर से एवं उसके पेशाब से कई प्रकार की औषधि बनाई जा रही है. अब तो गायों के पेशाब से फिनायल, गोबर से अगरबत्ती भी बनाई जा रही है. गायें सच में हमारी माँ के समान ही मनुष्य का ख्याल रखती है. हिन्दू धर्म में इसीलिए तो गाय को माता ही मानते आये हैं. 

समय के बदलाव से मनुष्य की जरूरतों में भी बढ़ोतरी हुई है. हिन्दुओ में तो मृत शरीर की अंतिम क्रिया भी जलाने से ही होती है. पेड़ इतने उगाये नहीं जाते, जितने लकड़ी के लिए काट लिए जाते हैं. पिछले दिनों करोना महामारी में तो श्मशान भूमि में जगह और लकड़ी का तो मानो आकाल ही पड़ गया था.

जलाने के लिए उपले यदि रसोईघर में एक मर्यादित पदार्थ था, तो श्मशान में मृतशरीर के लिए उपला एक तजायत वस्तु बन कर रह गया.

गोबर से लकड़ी कैसे बनाई जाए इसके लिए जब हम मिले सरदार सुखदेव सिंह से तो उन्होंने एक ऐसी मशीन तैयार क़ी है, जिसमें गोबर से लकड़ी बनाई जा रही है.

सरदार सुखदेव सिंह, उत्तरप्रदेश के मवाना में मेरठ में रहते हैं और अब उनकी उम्र 67 वर्ष है और कोई इंजिनियर इत्यादि क़ी डिग्री ना होते हुए भी मशीन के कई मॉडल अभी तक बना चुके हैं.

जो मॉडल आजकल गोबर से लकड़ी बनाने का है, आम आदमी और किसानों में बहुत ही लोकप्रिय हो रहा है. गोबर से लकड़ी क़ी कीमत भी बहुत ही कम है और मशीन भी लगभग लाख रुपये में मिल जाती है. यहां आम के आम और गुठलियों के दाम वाली कहावत सच साबित होती है.

गाँव क़ी कच्ची पगडंडियों और सड़कों पर इन गोवंशीय पशुधन का गोबर भी अचानक से बहुत मूलयवान लगने लगा. गोबर से लकड़ी सुनने में अजीब तो लगता है पर है यह सच.

English Summary: Earn great profit by making dung wood Published on: 27 September 2021, 07:07 PM IST

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