भारत ही नहीं इस समय पूरे विश्व में भुखमरी एक बड़ी समस्या बनी हुई है. इस समस्या से लड़ने के लिए कई तरह के प्रयत्न किए जा रहे हैं, वैश्विक स्तर पर तरह-तरह के प्रस्ताव भी भेजे जा रहें हैं.
इसी क्रम में देश में फसल प्रणाली से संबंधित बदलाव की जरूरत महसूस की जा रही है. गहराते हुए जल संसाधनों एवं कुपोषण की समस्या को देखते हुए कई शोधों में भारत के लिए कम पानी में उगने वाली फसलों को महत्वपूर्ण बताया गया है.
ऐसा ही एक शोध अमेरिका के कोलंबिया विश्वविद्दालय द्वारा किया गया है. इस शोध को जर्नल सांइस एडवांस में छापा गया है, जिसमें भारत के लिए धान और गेहूं की फसलों को अधिक नुकसानदायक बताया गया है. शोध में कम पानी की खपत वाली फसलों को उगाने से सुझाव दिए गए हैं, जिससे भविष्य में होने वाले जल संकट को टाला जा सके.
जरूरी है फसल बदलाव (Crop change is necessary)
शोधकर्ताओं का मानना है कि हरित क्रांति के बाद चावल और गेहूं जैसे प्रमुख फसलों के कारण भारत को लाभ तो हुआ है, लेकिन इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान हुआ है. सबसे अधिक दोहन जल का हुआ है, जिसके कारण भूजल के स्तर में भारी गिरावट आई है.इसके साथ ही कृषि संयंत्रों के कारण ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन को भी बढ़ावा मिला है. कीटनाशकों के प्रयोग ने हर चीज को प्रदूषित कर दिया है.
2050 तक गेहूं की खेती बड़ी चुनौती (Wheat cultivation a big challenge by 2050)
शोधकर्ताओं के मुताबिक देश में चावल और गेहूं के अलावा किसानों को कई अन्य फसलों पर भी ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि 2050 तक जल के अभाव में चावल और गेहूं की खेती नहीं हो सकेगी.
जनसंख्या बड़ा कारण (Population big reason)
भारत के संसाधनों पर उसके बढ़ते हुए जनसंख्या का दबाव है.
साल 2050 तक जनसंख्या के मामले में हम चीन से बहुत आगे निकल जाएंगें. ऐसे में देश को 39.4 करोड़ अतिरिक्त लोगों के लिए खाद्य सामग्री की जरूरत पड़ेगी, जबकि भूमि कृषि योग्य भूमि के मुकाबले बहुत कम हो जाएगी. ऐसे में चावल या गेहूं के सहारे लोगों का पेट नहीं भरा जा सकेगा.
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