अकसर हम घास को देखते है तो उससे बचने की कोशिश करते हैं. लेकिन आज हम जिस आयुर्वेद और दवाईयों का इस्तेमाल करते हैं वो सब हमें घास से मिलता है. एक ऐसी ही एक लाभकरी घास है दूब इसको कई नामों से जाना जाता है. है. कहा जाता है कि महाराणा प्रताप ने वनों में भटकते हुए जिस घास की रोटियां खाई थीं, वह भी दूब घास से ही निर्मित थी. दूब या ‘दुर्वा’ वर्ष भर पाई जाने वाली घास है. हिन्दू संस्कारों एवं कर्मकाण्डों में इसका उपयोग होने के कारण इस घास का हिंदु धर्म में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है. दूब घास संपूर्ण भारत में पाई जाती है. दूब घास पशुओं के लिए ही नहीं बल्कि मनुष्यों के लिए भी पूर्ण पौष्टिक आहार है. अनेक औषधीय गुणों की मौजूदगी के कारण आयुर्वेद में इसे ‘महाऔषधि’ भी कहा गया है. दूब के पौधे की जड़ें, तना, पत्तियां सभी का चिकित्सा के क्षेत्र में विशिष्ट महत्व है. आयुर्वेद के अनुसार दूब का स्वाद कसैला-मीठा होता है. विभिन्न प्रकार के पित्त एवं कब्ज विकारों को दूर करने के लिए दूब का प्रयोग किया जाता है. दूब घास को पेट के रोगों, यौन रोगों, लीवर रोगों के लिए चमत्कारी माना जाता है. दूब में प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट पर्याप्त मात्रा में मिलते हैं. आइए इस स्लाइड शो के माध्यम से इसके औषधीय गुणों के बारे में जानते हैं.
रोगों में इसे लेने के उपाय
दूब का रस - 10-20 मिलीलीटर
जड़ का चूर्ण - 3-6 ग्राम
पानी - 40-80 मिलीलीटर
पत्तियों का चूर्ण - 1-3 ग्राम
सबको मिलाकर इसका काढ़ा बनाकर पीयें.
रोगप्रतिरोधक क्षमता बढाने में सहायक
दूब घास शरीर में प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ने में मदद करती हैं. इसमें मौजूद एंटीवायरल और एंटीमाइक्रोबिल गुणों के कारण यह शरीर की किसी भी बीमारी से लड़ने की क्षमता को बढ़ाता है. इसके अलावा दूब घास पौष्टिकता से भरपूर होने के कारण शरीर को एक्टिव और एनर्जीयुक्त बनाये रखने में बहुत मदद करती है. यह अनिद्रा रोग, थकान, तनाव जैसे रोगों में भी प्रभावकारी है.यह एक बहुत ही लाभकारी घास है.
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