लोकसभा चुनावों के परिणाम लोगों को संभावित रूप से मालूम ही थे और कहीं ना कहीं कांग्रेस भी यह बात जानती थी कि बीजेपी का मुकाबला अकेले नहीं किया जा सकता. यही कारण है कि इस बार पूरा विपक्ष एक ही मुद्दा लेकर इस लड़ाई में मोदी सरकार के खिलाफ उतरा. लेकिन पटखनी खानी पड़ी.लेकिन देश के एक राज्य में मुलाबला ऐसा भी था, जहां कांग्रेस को जीत की उम्मीद सबसे अधिक थी. जी हां, हम बात कर रहे हैं राजस्थान की. राजस्थान भारत का वो राज्य जिसने हाल ही में हुए विधानसभा के चुनाव में कांग्रेस के लिए संजीवनी का काम किया था. शायद इसलिए कांग्रेस कम से कम यहां से तो जीत की उम्मीद कर ही रही थी. लेकिन ऐसा क्या हुआ कि इस राज्य से भी कांग्रेस को मुंह की खानी पड़ी. कहीं ऐसा तो नहीं कि यहां राहुल को किसानों का प्रकोप सहना पड़ा.
गौरतलब है कि राजस्थान की 75.13 प्रतिशत से अधिक की जनता गांवों में निवास करती है, जिसके आय का मुख्य स्त्रोत खेती है. प्रदेश की कांग्रेस सरकार सत्ता में किसानों से बड़े-बड़े वादे करके आई, जिसमे सस्ते बीजों से लेकर कर्जमाफी तक के ऐलान किए गए थे. लेकिन आंकड़ों के मुताबिक यहां 35 लाख से ज्यादा किसानों को कर्जमाफी का कोई फायदा नहीं मिला और उनके लिए हालात आत्महत्या करने के समान हो गए. इन किसानों पर एक तो मौसम की मार पड़ी, वहीं दूसरी कामर्शियल बैंकों का. यह समस्या कितने बड़े स्तर पर है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि हनुमानगढ़ में कलेक्ट्रेट परिसर में ही एक किसान ने फांसी लगाकर आत्महत्या की कोशिश की. उसका दावा थी कि उसपर काॅमर्शियल बैंक का 6 लाख का कृषि ऋण है, जो कि माफ नहीं किया गया और ऊपर से पेनल्टी बढ़ाकर कुल इस पैसे को 8 लाख कर दिया गया.
बता दें कि राजस्थान के 32 लाख से ज्यादा किसान आज़ परेशान हैं. क्योंकि उनकी जमीनें व्यावसायिक बैंकों के पास गिरवी रखी हुई है. गज़ब की बात यह है कि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत द्वारा किसानों की कर्ज माफी की घोषणा के बाद भी जब यह प्रक्रिया शुरू नहीं हो सकी है.
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