14 से 18 अक्टूबर तक छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर में चल रहे अंतरराष्ट्रीय कृषि मड़ई “एग्री कार्निवल 2022” (Agri Carnival 2022) में 14 अक्टूबर को ‘भविष्य के लिए पर्याप्त खाने की उपलब्धता और इसके लिए इस्तेमाल होने वाली मॉर्डन तक़नीक की मदद से फ़सलों की पैदावार में वृद्धि’ विषय पर चर्चा के लिए कार्यशाला आयोजित की गई.’
भावी पीढ़ी को भोजन की कमी न हो इसे ध्यान में रखकर कार्यशाला में धान के लिए सस्ती, यूज़र फ़्रेंडली और रोग प्रतिरोधक वेरायटी के उत्पादन के लिए मॉडर्न तक़नीक पर चर्चा की गई साथ ही प्रेज़ेंटेशन के ज़रिये इसे समझाया भी गया.
कार्निवल में भारत व उसके पड़ोसी देश नेपाल, श्रीलंका, बांग्लादेश और दस अफ़्रीकी देशों युगांडा, घाना, माली, सेशेल्स, मेडाकास्कर, जिम्वाम्बे आदि सहित क़रीब 15 राष्ट्रों के कृषि वैज्ञानिक शामिल हुए.
ग़ौरतलब है कि फ़सल प्रजनन के इस कार्यक्रम का मक़सद एशिया और अफ़्रीकी उपमहाद्वीप में चावल प्रजनन कार्यक्रमों के आधुनिकरण में तेज़ी लाना था. इसका उद्देश्य अत्याधुनिक तक़नीकों के विषय में क्षमता निर्माण, स्मार्ट प्रजनन प्रौद्योगिकी, प्रजनन सूचना विज्ञान और लागत उपकरणों पर विशेषज्ञता विकसित करने के लिए विशेष व्यवहारिक ट्रेनिंग देना था.
मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक़ इस दौरान अंतरराष्ट्रीय कृषि अनुसंधान संस्थान, मनीला के कृषिविद् डॉ. संजय कटियार ने कहा- ‘हरित क्रांति के बाद क़रीब 60 वर्षों से धान की नई क़िस्में लाने पर काम जारी है. मौजूदा समय में जलवायु परिवर्तन की वजह से बाढ़, सूखे जैसी तमाम चुनौतियां दुनिया के सामने हैं. ऐसी परिस्थिति में रोग प्रतिरोधक और जल्द पैदावार देने वाली फ़सलों की क़िस्मों की ज़रूरत है, जिससे की भविष्य में जलवायु परिवर्तन (Global Climate Change), बढ़ती आबादी और भोजन की पर्याप्त उपलब्धता की चुनौतियों का मुक़ाबला किया जा सके. इन्हीं बातों के मद्देनज़र आधुनिक ब्रीडिंग प्रोग्राम के तहत कई नई क़िस्में लाई जा रही हैं.
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कार्यक्रम के दौरान डॉ. संजय बदलते जलवायु के ख़तरों को भांपते हुए खाद्य सुरक्षा के लक्ष्यों को पूरा करने के लिए विश्वभर में चावल आधारित कृषि प्रणालियों में बड़े बदलाव की ज़रूरत पर भी ज़ोर देते हैं. वो आगे कहते हैं कि किसानों को उच्च उत्पादकता, जलवायु परिवर्तन के अनुकूल और बेहतर पोषण वाले चावल की वेरायटी की ज़रूरत है. इन्हीं ज़रूरतों को पूरा करने के लिए धान की कई नई क़िस्में लाई जा रही हैं.
"छत्तीसगढ़ के लगभग सभी ज़िलों के किसानों के 130 एकड़ खेत में आठ-दस नई वेरायटी को पुरानी वेरायटी के साथ लगाकर उन्हें उत्पादन में फ़र्क़ समझाया जा रहा है. प्रदेश के किसानों को नई क़िस्मों को लगाने के लिए जागरुक करने के साथ ही उन तक सीड सिस्टम का नया एप्रोच पहुंचाया जा रहा है. कई देशों से कार्निवल में हिस्सा लेने छत्तीसगढ़ आए कृषि वैज्ञानिकों ने कहा कि वो ये तक़नीक सीख कर अपने देश में लागू करेंगे."
सीड ब्रीडिंग पर चर्चा करते हुए इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय रायपुर के असिस्टेंट प्राध्यापक डॉ. अभिनव साव ने बताया- ‘धान की क़िस्मों की नई वेरायटी तैयार कर किसानों तक पहुंचाने में पहले लगभग 12 साल का समय लग जाता था जबकि सीड ब्रीडिंग की अत्याधुनिक तक़नीक से किसानों तक नई वेरायटी अब 8 साल में ही पहुंचेगी.
उन्होंने आगे कहा कि इस समय को और कम करने की कोशिश हो रही है ताकि कम से कम समय में किसानों तक अच्छी, कॉस्ट इफ़ेक्टिव वेरायटी पहुंच सके.’
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