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आलू की कीमत में आई ताबड़तोड़ गिरावट, जानें कैसा रहेगा किसानों पर इसका असर

अब क्या ही कहे साहब! अब बस यह कहने को भर को ही कृषि प्रधान देश रह गया है. यहां किसानों की व्यथा कोई सुनने वाला नहीं बचा है. यहां कोई नहीं है, ऐसा जो उनकी बेचारगी, लाचारी और बेबसी पर कान लगाए. बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन काम के नाम पर क्या ही होता है, यह तो किसानों की वेदना से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है.

सचिन कुमार
Indian Farmer
Indian Farmer

अब क्या ही कहे साहब! अब बस यह कहने को भर को ही कृषि प्रधान देश रह गया है. यहां किसानों की व्यथा कोई सुनने वाला नहीं बचा है. यहां कोई नहीं है, ऐसा जो उनकी बेचारगी, लाचारी और बेबसी पर कान लगाए. बातें तो बड़ी-बड़ी होती हैं, लेकिन काम के नाम पर क्या ही होता है, यह तो किसानों की वेदना से स्पष्ट परिलक्षित हो रहा है. ऐसे आलम में जब पूरा देश कोरोना के खिलाफ जंग में एकाग्र हो चुका है. सबका एकमात्र ध्येय कोरोना को मात देना है. ऐस स्थिति में किसानों की बदहाली एक बार फिर अपने चरम पर पहुंच चुकी है.

बस! नाममात्र है ये छूट

बेशक, कोरोना के इस दौर में सरकार ने कृषि को तरजीह देते हुए किसानों को पाबंदियों के छूट से बाहर रखा हो, मगर इससे किसानों को कोई फायदा नहीं हो रहा है. हमारे किसान भाई परेशान हैं. उनकी परेशानी का आलम यह है कि वह उनकी फसलों को वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है. हमारे किसान भाइयों की बदहाली का अंदाजा आप महज इसी से लगा सकते हैं कि वे बड़ी मेहनत से उगाई अपनी फसलों को कम दाम पर बेचने पर बाध्य हो चुके हैं. बीते दिनों जिस तरह किसानों भाइयों ने व्यथ्ति होकर अपनी फसलों को आवेश में आकर फेंक दिया था, वे तस्वीरें भी सोशल मीडिया की दुनिया में खूब वायरल हुई थी.

वहीं, अब किसान भाइयों द्वारा उगाए गए आलू का भी कुछ ऐसा ही हाल है या फिर यूं कहें कि उससे भी बुरा हाल है. आलू बेचने पर किसान भाइयों को वाजिब दाम नहीं मिल पा रहा है. किसान भाई इसे कम दाम पर बेचने पर मजबूर हो चुके हैं. आमतौर पर इस माह हमारे किसान भाई अपनी फसलों को 20 से 22 रूपए में बेचते हैं, लेकिन इस बार वे इसे 11 से 12 रूपए में बेचने पर मजबूर हो चुके हैं. उन्हें आलू की फसल का उचित दाम नहीं मिल पा रहा है. नतीजतन, उन्हें भारी नुकसान का सामना करना पड़ रहा है. अगर हालात ऐसे ही रहे, तो किसान भाइयों की दुर्दिनी अपने चरम पर पहुंच जाएंगी.

बंद हैं सारी मंडियां

यहां हम आपको बताते चले कि कोरोना काल में देशभर की मंडियां बंद हो चुकी हैं. हालांकि, कुछ पाबंदियों के साथ निश्चित समय के लिए उनकी मंडियों को खोला भी जा रहा है, तो किसान भाइयों की फसलें बिक नहीं पा रही है. ऐसे में वाजिब दाम मिलना, तो दूर उनकी फसलें ही बिक जाए, यही पर्याप्त है. अभी बीते दिनों ही कोरोना के कहर को ध्यान में रखते हुए एशिया की सबसे बड़ी मंडी लासलगांव को बंद कर दिया गया था.

शादी-ब्याह भी है वजह

इसके इतर किसानों की फसलों के न बिकने की एक वजह शादी-ब्याह में पाबंदियों का सिलसिला भी है. जी हां...शादी ब्याह में जिस तरह कोरोना के कहर को ध्यान में रखते हुए सीमित संख्या में मेहमानों को तलब करने की रवायत शुरू हुई है, उसकी वजह से भी किसानों की फसलों की मांग कम हो चुकी हैं.

English Summary: Decrease in the price of potato know what will be the effect of farmer Published on: 19 May 2021, 03:01 PM IST

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