जलवायु परिवर्तन को लेकर हम ऐसी चिंताजनक स्थिति में आ खड़े हुए हैं, जिसका हमारी पृथ्वी पर बेहद गंभीर प्रभाव पड़ रहा है. पूरी दुनिया में तापमान के लगातार बढ़ने से विभिन्न घटनाएं देखने को मिल रही हैं, जो दुनिया के लगभग हर हिस्से को प्रभावित करने का कारण बन रही हैं. मौसम का अपने चरम पर पहुंचना आम होता जा रहा है, जो लोगों के जीवन और आजीविका को तेजी से प्रभावित कर रहा है. संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की नवीनतम रिपोर्ट से पता चलता है कि पेरिस समझौते के तहत किये गए वादे नाकाफी हैं और पृथ्वी की तापमान को इसी सदी में पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2.5 से लेकर 2.9 डिग्री सेल्सियस तक तक बढ़ा सकते हैं.
जलवायु का यह चिंताजनक परिवर्तन हम सभी को प्रभावित करेगा और हमारी आर्थिक गतिविधियों को भी बाधित करेगा, जिससे हमारा अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा.
कृषि भी इस स्थिति से बच नहीं पाएगी. जलवायु परिवर्तन के प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए नेशनल इनोवेशंस इन क्लाइमेट रेसिलिएंट एग्रीकल्चर प्रोजेक्ट के तहत भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् (आईसीएआर) द्वारा एक अध्ययन किया गया. यह स्पष्ट करता है कि:
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वर्ष 2050 और 2080 तक वर्षा आधारित चावल की पैदावार में तकरीबन 5% तक की कमी देखी जा सकती है.
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सिंचित चावल की पैदावार वर्ष 2050 तक 7% और वर्ष 2080 तक 10% घट सकती है.
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वर्ष 2100 तक गेहूं की पैदावार 6 से 25% तक कम हो सकती है.
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वर्ष 2100 तक मक्के की पैदावार 18 से 23% तक कम हो सकती है.
एक अध्ययन के अनुसार, वर्ष 2015 और 2021 के बीच बाढ़ और अत्यधिक बारिश की वजह से भारत 33.9 मिलियन हेक्टेयर कृषि भूमि खो चुका है. इसके अलावा, सूखे के कारण अन्य 35 मिलियन हेक्टेयर फसल क्षेत्र नष्ट हो चुका है. भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद् ने भारत के 573 ग्रामीण जिलों में कृषि जोखिम मूल्यांकन किया. इसमें पाया गया कि 109 जिले जलवायु प्रभावों के कारण गंभीर समस्याओं का सामना कर रहे हैं, जो 'बहुत अधिक जोखिम' श्रेणी में हैं और 201 जिले 'जोखिम' श्रेणी में हैं.
इस सच से कोई भी अनजान नहीं है कि अति मौसमी घटनाएं प्रबल होती जा रही हैं और बार-बार हो रही हैं, जिससे कृषि और फसल उत्पादन पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है. यह स्थिति किसानों को कर्ज और गरीबी की गर्त में धकेल सकती है. फसल के नुकसान और उसके परिणामस्वरूप होने वाली वित्तीय कठिनाई को कम करने का एक तरीका फसल बीमा है. क्षेमा का नया फसल बीमा उत्पाद, 'सुकृति' और ‘प्रकृति’ किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करते हैं. सुकृति एक स्वनिर्धारित फसल बीमा योजना है, जिसकी शुरुआती कीमत 499 रुपए प्रति एकड़ है. यह बीमा 100 से अधिक फसलों को कवर करता है. यह किसानों को 9 जोखिमों की पूर्वनिर्धारित सूची से एक प्रमुख और एक न्यून जोखिम चुनने का संयोजित विकल्प प्रदान करता है. यह सुविधा सुनिश्चित करती है कि किसान जलवायु, क्षेत्र, उनके खेत के स्थान, ऐतिहासिक प्रतिमान आदि घटकों पर आधारित ऐसे जोखिमों का चयन करें, जो वास्तव में उन्हें नुकसान पहुंचा सकते हैं.
चक्रवात, बाढ़ (जलप्रिय फसलों के लिए लागू नहीं), ओला-वृष्टि और भूकंप, भूस्खलन, बिजली गिरने से लगी आग, जानवरों के हमले (बंदर, खरगोश, जंगली सुअर, हाथी) और विमान दुर्घटना जैसी न्यून आपदाओं के लिए सुकृति बीमा योजना के तहत सुरक्षा प्रदान की जाती है.
किसान अपने वित्तीय हितों की रक्षा के लिए अतिरिक्त प्रीमियम का भुगतान करके अपना कवरेज बढ़ा सकते हैं. वे अपने घर से क्षेमा ऐप पर पंजीकरण करके आसानी से बीमा खरीद सकते हैं. ऐप पर नीति विवरण और क्षतिग्रस्त फसलों की तस्वीरें या वीडियो अपलोड करके भी क्लेम कर सकते हैं. क्षेमा त्वरित दावा निपटान सुनिश्चित करने के लिए जियो-टैगिंग, सैटेलाइट इमेजरी और एआई-आधारित एल्गोरिदम जैसी उन्नत तकनीक का उपयोग करता है.
फसल बीमा किसानों को वित्तीय सुरक्षा प्रदान करता है. समय के साथ, यह कृषि में उच्च निवेश और बेहतर प्रथाओं को प्रोत्साहित करता है, जिससे अंततः समग्र कृषि को बढ़ावा मिलता है. इसलिए, किसानों के लिए महत्वपूर्ण है कि वे इस खरीफ सीज़न में बीज, उर्वरक और उपकरण के साथ ही साथ फसल बीमा भी खरीदें. इससे न सिर्फ प्रतिकूल जलवायु घटनाओं से उनकी आय सुरक्षित रहेगी, बल्कि उन्हें अपनी कृषि यात्रा को समृद्धि की ओर अग्रसर करने में भी मदद मिलेगी.
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