राजधानी में जिस मीठे पान को खाने का चलन सबसे ज्यादा है इस साल वह आयातित नहीं होगा बल्कि इसे राज्य के खेतों में ही पैदा किया जाएगा। इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्य़ालय ने अपने रिसर्च सेंटर में छुईखदान और आसपास मीठीपत्ती समेत पान की अच्छी वैरायिटी को बर्बाद करने वाले कीट का तोड़ ढ़ूंढ लिया है। केवल यही नहीं कृषि विवि में दो माह में यहां पर एक रिसर्च सेंटर भी स्थापित किया जाएगा जिसमें केवल पान की खेती पर ही फोकस किया जाएगा। इस रिसर्च सेंटर में प्रदेश और वैराइटियों पर रिसर्च किया जाएगा। मीठी पत्ती की लोकल पैदावर से यहां पैदावार से यहां इसका रेट भी कम होगा और जिसका बीड़ा अभी सबसे महंगा (न्यूनतम 10 रूपए) है। कृषि विश्वविद्यालय के अफसरों के अनुसार पान के लिए रिसर्च सेंटर को मंजूरी मिल गई है जिसे जल्द ही शुरू किया जाएगा। इस सेंटर के शुरू होते ही आसपास के छुईखादान के इलाके पर फोकस रहेगा जहां पर बरसों से किसान सिर्फ पान की खेती करने का कार्य कर रहे है। इस सेंटर में छत्तीसगढ़ की बेहद ही प्रचलित किस्मों जैसे बंगाला और कपूरी पर कार्य किया जाएगा। इस साथ ही बहुत ही छोटे पान के पत्ते और छोटे मीठे पान की खेती पर ज्यादा फोकस किया जाएगा ताकि इसे ज्यादा मात्रा में पैदा किया जा सके।
300 किसानों को मिलेगा प्रशिक्षण
इस रिसर्च सेंटर में ना केवल रिस्र्च को लेकर काम होगा बल्कि किसानों को पान की खेती से जोड़ने के साथ ही इसके जरिए उनकी आय का जरिया बनाने पर भी तेजी से कार्य किया जाएगा। इसके लिए करीब 300 किसानों को कृविवि ने हाल ही में पान की उनन्त खेती का प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। वैज्ञानिकों ने यह भी बताया कि इस रिसर्च सेंटर से बाकी किसानों को भी जोड़ा जाएगा।
माउथ फ्रेशनर भी बनाऐंगे
अधिकारियों ने बताया कि पान के एक पौधे से करीब 70 से 80 पत्तियां निकलती है। इनमें से 60 से 70 फीसदी पत्तियां आसानी से बाजार में पहुंच जाती है। जबकि इनमें से कई छोटी पत्तियों का उपयोग किसान नहीं करते है और फेंक देते है। इस पर ही कार्य को शुरू किया जा रहा है। इन पत्तियों का उपयोग तेल निकालने के अलावा फ्रेशनर बनाने में किया जा रहा है, जिसके लिए विशेष तरीके से योजना को बनाया गया है।
किशन अग्रवाल, कृषि जागरण
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