केन्द्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री राधा मोहन सिंह ने देहरादून सहकारी सम्मेलन का उद्घाटन एवं विकास प्रदर्शनी का अवलोकन किया। इस अवसर पर मंत्री महोदय ने कहा कि मुझे यह जान कर अत्यंत हर्ष का अनुभव हो रहा है कि उत्तराखंड राज्य के सहकारिता विभाग द्वारा सहकारिता को प्रदेश में उद्यमशीलता को प्रोत्साहित करने हेतु एक माध्यम के रूप में चुना गया है एवं प्रदेश सरकार ने इस अंतरराज्यीय सहकारी निवेश प्रदर्शनी का आयोजन किया है।
उन्होंने कहा कि अपने देश के लिए सहकारिता कोई नई बात नहीं है। भारत में अनादिकाल से सहकारिता हमारे स्वभाव में है और सहकारिता आंदोलन का बीज गुजरात के एक गांव में पड़ा तथा गांव के किसानों ने सहकारी समिति बनाने का आग्रह जिला प्रशासन से किया। अंग्रेजी राज ने इस विषय पर आपत्ति उठायी तत्पश्चात् वर्ष 1904 में कॉपरेटिव केन्द्रीय सोसाइटी एक्ट बनाया। 112 वर्ष की अपनी यात्रा में आधुनिक सहकारिता ने विशाल वट वृक्ष का आकार ग्रहण कर लिया है। आज भारतीय सहकारी आंदोलन विश्व के सबसे बड़े सहकारी आंदोलनों में से है, भारत में 8 लाख सहकारी समितियां हैं जो ग्रामीण स्तरीय समितियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर के सरकारी संगठनों तक फैली हुई है। देश में सहकारी समितियों की कुल सदस्यता 274 मिलियन से भी अधिक है। इसमें लगभग 95 प्रतिशत गांव तथा लगभग 71 प्रतिशत कुल ग्रामीण परिवार शामिल हैं।
सहकारी समितियों में उत्तराखंड राज्य की सहभागिता प्रशंसनीय है। आज उत्तराखंड राज्य में 4381 समितियां हैं जो विभिन व्यवसायों से जुड़ी हैं । राज्य में 759 पैक्स कार्यरत हैं जिनकी कुल सदस्यता 12 लाख हैं एवं यह सराहनीय है कि शत प्रतिशत गांव पैक्स के अंतर्गत शामिल हैं।
उत्तराखंड के विकास में सहकारिता की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में उन्होंने कहा कि उत्तराखंड की महिला शक्ति कठोर परिश्रम कर जीवन यापन करने मे परिवार की मदद करती है, अतः महिलाओं से संबधित छोटे-छोटे उद्योग, वानिकी, साग सब्जी, फलोद्योग एंव सौर उर्जा में सहकारिता की भागीदारी से अपनी आर्थिक स्थिति और मजबूत कर सकती है।
माननीय प्रधानमंत्री द्वारा घोषित फसल बीमा योजना को उत्तराखंड राज्य में सहकारी समितियों द्वारा प्रभावी रुप से लागू कर प्रभावित कृषकों को लाभान्वित करना और भी आवश्यक है क्योंकि यहां कि कृषि भूमि मानसून पर ही निर्भर है।
भारत सरकार ने सहकारी समितियों के पुनरूद्धार करने के लिए कुछ ठोस उपाय शुरू किए हैं, ताकि उन्हें आर्थिक व्यवहार्यता और सदस्यों के सक्रिय सहभागिता से गतिशील लोकतांत्रिक संगठन बनाये जा सके जिससे वे प्रतिस्पर्धी वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियों का सामना कर सकें। ग्रामीण अर्थव्यवस्था में सहकारी समितियों के महत्व पर विचार करते हुए, सरकार विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से सहकारी समितियों की प्रगति करने के लिए प्रतिबद्ध है।
उत्तराखंड राज्य में सहकारिता के माध्यरम से पर्यटन विकास, परिवहन, हैण्डलूम, फल-सब्जी, आयुर्वेदिक जड़ी- बूटियां एवं उनका प्रसंस्कारण, फूलों की खेती आदि की प्रचुर संभावनाएं हैं। जिसके लिए देश में ही नहीं, बल्कि् विदेश में भी बाजार उपलब्ध हैं।अंत में मैं एक बार फिर, विभिन्न प्रदेशों के उपस्थित सहकारी समितियों के प्रतिनिधियों को सहकारी क्षेत्र में किए गये सराहनीय योगदान के लिए बधाई देता हूँ और यह उम्मीद करता हूँ कि इस प्रकार के आयोजन की परंपरा को देश के अन्य हिस्सों में भी बढ़ाया जाएगा।
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