भारत में अधिकांश केले दक्षिणी राज्यों में उत्पादित किए जाते हैं और देश के अन्य राज्यों में निर्यात किए जाते है. केले का उत्पादन दक्षिण भारत में बहुतायत में होता है. जब केले की खपत कम होती है, तो केले के फल से पाउडर बनाकर बच्चों के लिए पौष्टिक आहार बनाया जाता है. अभी हाल ही में पीएम मोदी ने अपने रेडियो कार्यक्रम "मन की बात" में भी इस बात को बताया कि कर्नाटक में केले के पाउडर से बर्फी व् और बड़े सारे स्वादिष्ट एवं पौष्टिक व्यंजन भी तैयार किये जाते हैं.
गौरतलब है कि भारत में केले का सबसे अधिक उत्पादन तमिलनाडु में होता है. गुजरात दूसरे व महाराष्ट्र तीसरे स्थान पर है. तमिलनाडु में केले का वार्षिक उत्पादन 5136200 टन है. केले के उत्पादन को देखें तो भारत का दूसरा क्रमांक है. भारत में लगभग दो लाख बीस हजार हेक्टेयर क्षेत्रफल पर केला की खेती होती है.
राष्ट्रीय केला शोध केंद्र (एनबीआरसी) ने तिरुचिरापल्ली में एक शोध किया. शोध में यह बात सामने आई है कि तमिलनाडु में फसल कटने के बाद केले का नुकसान करीब 30 फीसदी है. एनबीआरसी के एमएम मुस्तफा के मुताबिक, नुकसान को 10 फीसद के स्तर पर लाने की कोशिश की जा रही है, जिससे किसानों को फायदा हो सकता है.
मुस्तफा के मुताबिक, तमिलनाडु के कई हिस्सों में किसानों ने पहले से ही बेहतर गुणवत्ता वाले केले का उत्पादन शुरू कर दिया है और यह एनबीआरसी के शोधकार्य की वजह से ही मुमकिन हुआ है. केले का उत्पादन करने वाले प्रांतो में क्षेत्रफल की दृष्टी से महाराष्ट्र का तीसरा स्थान है फिर भी व्यापारी दृष्टि से या प्रांत में बिक्री की दृष्टि से होने वाले उत्पादन में महाराष्ट्र पहला है.
फिलहाल महाराष्ट्र में कुल 44 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में केले की फसल के लिए है, उसमें से आधे से अधिक क्षेत्र जलगांव जिले में है. इसलिए जलगांव जिले को केले का भंडार कहते है. मुख्यमतः उत्तर भारत में जलगांव भाग के बसराई केले भेजे जाते हैं. इसी प्रकार सौदी अरेबिया इराण, कुवेत, दुबई, जपान और यूरोप में बाजार पेठ में केले की निर्यात की जाती है. उससे बड़े पैमाने पर विदेशी मुद्रा प्राप्त होता है.
केले के 86 प्रतिशत से अधिक उपयोग खाने के लिए होता है. पके केले उत्तम पौष्टिक खाद्य होकर केले के फूल, कच्चे फल व तने का भीतरी भाग सब्जी के लिए उपयोग में लाया जाता है.
केले को लगाने का मौसम जलवायु के अनुसार बदलता रहता है. कारण जलवायु का परिणाम केले के बढ़ने पर, फल लगने पर और तैयार होने के लिए लगने वाली कालावधी पर निर्भर करता है. जलगाँव जिले में केले लगाने का मौसम बारिश के शुरू में होता है. इस समय इस भाग का मौसम गर्म रहता है.
फल से पाउडर, मुराब्बा, टॉफी, जेली आदि पदार्थ बनाते हैं. सूखे पत्तों का उपयोग आच्छँन के लिए करते हैं. केले के तने और कंद के टुकडे करके वह जानवरों के लिए चारा के रुप में उपयोग में लाते हैं. केले के झाड़ धार्मिक कार्य में मंगल चिन्ह के रुप में उपयोग में लाए जाते हैं.
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