कोरोना कॉल में जहां हर क्षेत्र में नुकसान हुआ है. इसमें किसान भी अछूते नहीं रहे है. लेकिन मंदसौर जिले के हजारों किसानो ने इस नुकसान से उभरने के लिए खरबूज जिसे जिले में मगज की खेती भी कहते है. उसकी बुवाई कर फसल से हजारों रूपए कमाए है. इस कोरोना कॉल में यह खेती इन हजारों किसानों के लिए संजीवनी की तरह काम कर रही है. इस खेती की यह विशेषता है कि यह खेती चंबल नदी के किनारे यानि डूब क्षेत्र में ही हो सकती है. ऐसे में वे ही किसान इसकी खेती करते है जिनका डूब क्षेत्र का पट्टा हो.
फायदें के साथ व्यवहार भी बढ़ाती है फसल
खरबूज की खेती में एक तरफ तो किसान को फायदा पहुंचाती है वहीं दूसरी ओर व्यवहार भी बढ़ाती है. क्योंकि किसान खरबूज के बीज निकाल कर उसका फल पड़ोसियों को खाने के लिए किसान दे देता है. यहां तक की नगरीय क्षेत्रों में भी बेचा जाता है. खरबजू की खेती डूब क्षेत्र में रेतीली दोमट मिट्टी व गर्म तापमान में होती है. जिसके चलते यह स्वास्थ्य के लिए बेहतर होती है. इसके बीज का उपयोग ड्राय फ़ूड में काम आता है. कम खर्च ओर ज़्यादा मुनाफ़ा होने से किसान खरबूज की खेती से लाभ कमा रहे है.
ऐसे होती है खरबूज की खेती
गर्म तापमान होने वाली खरबूज की खेती में 3 से 4 हज़ार रुपए प्रति बीघा का खर्च आता है ओर एक बीघा में एक क्विंटल बीज निकल जाता है जो की बाज़ार में लगभग 10 हज़ार रुपए से लेकर 12 हज़ार रुपए तक बिकता है. इसमें गर्मी ज़्यादा होने पर 2 से 3 बार ही सिंचाई करनी पड़ती है. किसानों को खरबूज के बीज के अधिकतम भाव 20 हज़ार रुपए से लेकर 25 हज़ार रुपए तक के भाव मिलते है. इसकी डिमांड सबसे अधिक हाथरस, दिल्ली, यूपी में ज्यादा होती है.
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